सजने लगे अजाखाने, मुहर्रम शुरू
(आजमगढ़) गम का महीना मोहर्रम का चांद शनिवार को दिखाई देने पर कस्बे में मोहर्रम को लेकर शिया समुदाय ने अपने कार्यक्रमों की तैयारियां पूरी कर ली हैं। क्षेत्र के सभी शिया समुदाय के इमामबाड़ों पर काले रंग का अलम का परचम लगा दिया और शिया परिवार की महिलाएं पुरुष सभी काले वस्त्र धारण कर नंगे पांव हो गए। इतना ही नहीं बल्कि शहीदाने कर्बला के गम में महिलाएं अपनी चूड़ियां भी तोड़ दीं। सभी इमामबाड़ों और इमाम चौक पर मजलिसों का दौर शुरू हो गया है।
जासं, मुबारकपुर (आजमगढ़) : गम का महीना मोहर्रम का चांद शनिवार को दिखाई देने पर कस्बे में मोहर्रम को लेकर शिया समुदाय ने अपने कार्यक्रमों की तैयारियां पूरी कर ली हैं। क्षेत्र के सभी शिया समुदाय के इमामबाड़ों पर काले रंग का अलम का परचम लगा दिया और शिया परिवार की महिलाएं, पुरुष, सभी काले वस्त्र धारण कर नंगे पांव हो गए। इतना ही नहीं बल्कि शहीदाने कर्बला के गम में महिलाएं अपनी चूड़ियां भी तोड़ दीं। सभी इमामबाड़ों और इमाम चौक पर मजलिसों का दौर शुरू हो गया है।
बता दें कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मोहर्रम का महीना गम का माना जाता है। इस माह की दस तारीख को यौमे आशूर भी कहा जाता है। इस दिन चौदह सौ वर्ष पूर्व इस्लाम धर्म के धर्म गुरु हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन रजिअल्लाहो अंहो के खानदान और तत्कालीन बादशाह यजीद के बीच बैयत को लेकर विवाद हुआ था। बादशाह यजीद अपने कानून को मनवाने और स्वीकार कर लेने के लिए अडिग रहा। रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन रजिअल्लाह अंहो अल्लाह और उसके रसूल के बनाए कानून पर अडिग रहते हुए यजीदी कानून को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसी बात को लेकर यजीदी सेना और हुसैनी सेना के बीच कर्बला के मैदान में मोहर्रम की 10 तारीख को एतिहासिक जंग हुई। जंग में हजरत इमाम हुसैन सहित परिवार के 72 लोगों ने कुर्बानी पेश करते हुए इस्लाम की आन, बान और शान को बचाया। तत्कालीन यजीदी सेना ने हजरत इमाम हुसैन के परिवार के 72 लोगों को शहीद कर दिया था। उन्हीं शहीदाने कर्बला की याद प्रत्येक वर्ष मुस्लिम समुदाय के लोग गम के तौर पर मनाते हैं। इस दिन वाकयाते कर्बला बयां कर नौहा ख्वानी कर शहीदाने कर्बला को मंजूम खिराजे अकीदत पेश करते हैं।