जनमानस को अपनी ओर खींचते हैं प्रेमचंद के पात्र
जागरण संवाददाता गाजीपुर प्रेमचंद आज भी इतने लोकप्रिय क्यों हैं। अगर इस बात पर मैं विश्लेषण क
जागरण संवाददाता, गाजीपुर : प्रेमचंद आज भी इतने लोकप्रिय क्यों हैं। अगर इस बात पर मैं विश्लेषण करती हूं तो यह पाती हूं कि उनके पात्र जनमानस को अपनी ओर खींचते हैं। उनके पात्रों की विशेषता हैं। उनकी सरलता और उनकी पारदर्शिता। प्रेमचंद को पढ़ने का अर्थ है अपने अंदर छुपे हुए पाखंडी मनुष्य को सामने लाना। उससे आंख मिलाना और फिर उसकी सत्ता को रौंदते हुए अपने ऊपर शर्मसार होना। प्रेमचंद को पढ़ने का अर्थ हैं स्वयं को पढ़ना है। हम रोज अखबार पढ़ते हैं कि कितने किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इस आत्महत्या को मैं किसानों का प्रतिरोध कहती हूं ठीक उसी तरह से जैसे भगत सिंह कहते थे कि वह पार्लियामेंट में बम इसलिए फोड़ रहे हैं ताकि बहरी सरकार बम के धमाकों से जागे और क्रांतिकारियों की आवाज सुने। यह कहना था कार्यशाला के समापन सत्र में मुख्य वक्ता आलोचक ं व लेखिका प्रोफेसर रोहिणी अग्रवाल का। वह राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित द्विसप्ताहिक राष्ट्रीय कार्यशाला प्रेमचंद को कैसे पढ़ें के समापन सत्र को संबोधित कर रहीे थीं।
कहा कि आज किसान जंतर-मंतर पर धरना देते हैं। उसके निष्फल होने पर वह आत्महत्या कर रहे हैं। यह इस बहरी सरकार को अपनी कराहो, चीत्कारों, रुदनों को सुनाने का एक बड़ा तरीका है। प्रेमचंद की रचनाओं से चलकर जब आज हम इस समय में पहुंचते हैं। तो हम यह देखते हैं कि गोदान में होरी को किसान से मजदूर और मजदूर से मजबूर बनना पड़ा। यह एक विघटन शील यात्रा की ओर बहुत प्रमाणित ढंग से संकेतन करते हैं। इसलिए प्रेमचंद को पढ़ने का अर्थ दरअसल प्रेमचंद को पढ़ना नहीं अपने समय को जानना है। इसलिए प्रेमचंद आज कल और आने वाले कल में भी प्रासंगिक रहेंगे। कार्यक्रम के दूसरे विशिष्ट वक्ता प्रो. गजेंद्र पाठक (हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद) थे। उन्होंने इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि-आप कल्पना करें कि शुक्ल जी के इतिहास में एक नहीं. दो त्रिवेणी है। एक त्रिवेणी है भक्ति आंदोलन की है और दूसरी है लोक जागरण की। रामविलास जी के शब्दों में कहे तो एक दूसरी त्रिवेणी है नवजागरण की। जिसमें तीन लोग हैं। एक भारतेंदु, दूसरे महावीर प्रसाद द्विवेदी और तीसरे प्रेमचंद। शुक्ल जी जिस आधुनिकता के मापदंड निर्मित कर रहे हैं। उस मानदंड के निर्माण में जितनी बड़ी भूमिका भारतेंदु की है, उससे कहीं ज्यादा भूमिका प्रेमचंद की है। प्रो. सदानंद शाही (निदेशक, प्रेमचंद साहित्य संस्थान गोरखपुर) ने 'प्रेमचंद को कैसे पढ़ें'' पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि.प्रेमचंद ने जिन समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई है। वह समस्याएं आज भी हमारे सामने मौजूद हैं। संचालन डा. निरंजन कुमार यादव, मीडिया प्रबंधन प्रभारी डा. शिवकुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. संगीता मौर्य विभागाध्यक्ष हिदी विभाग ने दिया।