परिवर्तन यात्रा में मोदी की रैली का पहला पड़ाव गाजीपुर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को गाजीपुर आ रहे हैं। चार दिशाओं से निकली 17 हजार किलोमीटर लंबी भाजपा की परिवर्तन यात्रा में यह उनका पहला पड़ाव है।
गाजीपुर (आनन्द राय)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को गाजीपुर आ रहे हैं। चार दिशाओं से निकली 17 हजार किलोमीटर लंबी भाजपा की परिवर्तन यात्रा में यह उनका पहला पड़ाव है। यहां परिवर्तन यात्रा की पहली रैली को वह संबोधित करेंगे। कभी बाढ़, कभी सूखा और कभी अतिवृष्टि से दो चार होने वाले इस अंचल को मोदी से बहुत उम्मीदें हैं। इस पड़ाव में विकास से जुड़ी जिन योजनाओं की वह आधारशिला रखेंगे वह पूर्वी उत्तर प्रदेश की हसरतों का मुकाम बनेंगी।
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वर्ष 1966 में राही मासूम रजा का 'आधा गांव' उपन्यास प्रकाशित हुआ। गाजीपुर की पृष्ठभूमि पर लिखे गए इस उपन्यास में दुख-दर्द शिद्दत से बयां है। गाजीपुर के तत्कालीन सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी संसद में यहां का करुण क्रंदन सुना चुके थे। इसी पीड़ा से द्रवित होकर प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पूर्वांचल के विकास के लिए पटेल आयोग का गठन किया। दशकों बाद भी पटेल आयोग की सिफारिशें जस की तस रह गईं। गाजीपुर विकास की राह में पीछे छूटा तो फिर कभी मुख्यधारा से जुड़ नहीं पाया। राही मासूम रजा के शब्दों में यह शहर क्षण-क्षण जीता है, क्षण-क्षण मरता है और फिर जी उठता है। कौन जाने इसकी यह घोर तपस्या कब खत्म होगी। गाजीपुर जिंदगी के काफिले के रास्ते पर नहीं है। कभी हवा इधर से होकर गुजरती है तो काफिलों की धूल आ जाती है और यह बस्ती उस धूल को इत्र की तरह अपने कपड़ों और अपने बदन पर मलकर खुश हो लेती है।
आजादी के दशकों बाद आज भी गाजीपुर को कोई मुकाम नहीं मिला। केंद्रीय संचार मंत्री मनोज सिन्हा ने मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद गाजीपुर के विकास का बीड़ा उठाया है। लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी गाजीपुर आए थे और प्रधानमंत्री बनने के बाद सिन्हा की पहल पर पहली बार आ रहे हैं। परिवर्तन यात्रा के प्रभारी और भाजपा के प्रदेश मंत्री कामेश्वर सिंह कहते हैं कि गाजीपुर के विकास के लिए भाजपा सरकार कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। उत्तर प्रदेश में विकास की कड़ी में गाजीपुर एक नया नाम होगा। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद यहां के सभी सपने पूरे होंगे।
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गंगा किनारे मेल्हते हुए इस शहर ने आजादी के बाद से न जाने कितने वादे सुने होंगे। पर सच यही है कि पहले कोलकाता की चटकलों में यहां के सपने सन के ताने-बाने में बुनकर चले जाते थे और फिर सिर्फ सूनी आंखें और वीरान दिल रह जाते। हर घर से विरह की वेदना सुनाई पड़ती। अब तक यह सिलसिला टूटा नहीं है। कोलकाता के अलावा मुंबई, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब .... और बहुत आगे बढ़कर दुबई, बैंकाक, सिंगापुर, दक्षिणी कोरिया तक गाजीपुर की हदें बढ़ गई हैं। सच यही है कि जब गजदार छातियों वाले यहां के नौजवान बेरोजगारी के कोल्हू में जोत दिए जाते हैं। वह अपने सपनों को पूरा करने की आस में इस शहर से उस शहर तक भटक कर रह जाते हैं। हाल के कुछ दशकों में गाजीपुर अंडरवल्र्ड को भी युवाओं की खेप आपूर्ति करने लगा। बेरोजगारी की जंग में जरायम की ओर मुड़ गए कदमों ने न जाने कितनी बेशुमार कहानियां लिखीं जो किसी न किसी के लिए दुख का सबब बनकर रह गयी हैं। मोदी के आने पर उम्मीद जगी है। उनके लोकसभा चुनाव के वायदों की भी यादें ताजा होने लगी हैं। गाजीपुर खुश है। इसलिए क्योंकि जिंदगी के काफिलों पर खूबसूरत रास्तों के बनने की उम्मीद जगायी गई है। गंगा नदी पर एक ऐसे पुल की आधारशिला रखी जानी है जो सबको जोड़ सकेगा। संभव है कि गाजीपुर विकास की पटरी पर दौड़ पड़े।
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