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अपने बच्चों को सुविधाएं नहीं, संस्कार दें अभिभावक

गाजीपुर : हमारी बहिर्मुखी प्रवृत्ति ही ऐसी है कि हमें पहले इन्द्रियगोचर वस्तुओं का ज्ञान होत

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 06:31 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 09:43 PM (IST)
अपने बच्चों को सुविधाएं नहीं, संस्कार दें अभिभावक
अपने बच्चों को सुविधाएं नहीं, संस्कार दें अभिभावक

गाजीपुर : हमारी बहिर्मुखी प्रवृत्ति ही ऐसी है कि हमें पहले इन्द्रियगोचर वस्तुओं का ज्ञान होता है, और फिर समय के साथ हम स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलना प्रारम्भ करते हैं। यह जीवन के हर क्षेत्र में सत्य है और इसीलिए शिक्षा और संस्कार का क्षेत्र भी इससे अधूरा नहीं है। बतौर अभिभावक, अपने बच्चे की मूलभूत आवश्यकताओं का मूल्यांकन करने में हमसे यही भूल हो जाती है कि हम उन भौतिक वस्तुओं को तो देखते हैं जो हमारे बच्चे को छोटे समय के लिए खुश रख सकता है। जैसे टीवी, मोबाइल, वीडियो गेम या अच्छे कपड़े आदि। लेकिन उन सूक्ष्मतर वस्तुओं की उपेक्षा कर देते हैं जो भविष्य के लिए बेहतर साथी और हमेशा साथ देने वाले हैं जैसे मूल्य, संस्कार, संस्कृति परक ज्ञान, दया, क्षमा व करूणा की भावना इत्यादि। अधिकतम अभिभावक अब विद्यालयों में मिलने वाले संस्कारों और मूल्यों की ¨चता नहीं करते, उन्हें अब विद्यालयों का भौतिक स्वरूप और उसमें मिलने वाली सुविधाएं ही अधिक आकृष्ट करती हैं। विद्यालय में बच्चों और अध्यापक का अनुपात, रटने और समझने की तुलना, मूल्यपरक शिक्षा इत्यादि सम्भवत: बीते कल की बातें हो गयी हैं। यह मूल्यों का क्षरण समकालीन परवरिश पर प्रश्नचिह्न लगाती है। जब एक बच्चे से घर आने पर केवल परीक्षा में आये अंकों के विषय मे पूछा जाएगा तो अवश्य ही वह येन केन प्रकारेण अच्छे अंक लाने पर ध्यान देगा चाहे वह रट के आये या नकल मार के। लेकिन बच्चों से बातें करने के लिए और भी विषय हैं मसलन, आज टिफिन साझा किया या किसी की मदद की या झूठ तो नहीं बोला इत्यादि। हमारे इन प्रश्नों से पता चलता है कि हम बच्चों के किस स्वरूप को मजबूत बनाना चाहते हैं। विचार से शब्द और शब्द से सृजन होता है। अर्थात सूक्ष्म से जगत की उत्पत्ति हुई। जब मरणशील और भौतिक ख्वाहिशें ही बच्चे के प्रति हमारे अंधमोह को संचालित करने लगेगी, तब विचार कभी सुसंस्कृत नहीं होंगे, और बच्चे बड़े होकर कभी भी मूल्यों का मूल्य नहीं समझेंगे। इसलिए पूरी परवरिश के लिए उनके विचारों को सुव्यवस्थित, सुसभ्य और आदर्शोन्मुखी बनाना होगा, ताकि उनसे भविष्य में होने वाले सृजन में नारी व अग्रजों का सम्मान, राष्ट्र व विश्व बंधुत्व के प्रति सकारात्मक भाव और अपने कार्य के प्रति पूजा का भाव समाहित रहे।

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- अंशु गुप्ता, ¨प्रसिपल-दी प्रेसीडियम इंटरनेशनल स्कूल अष्ठभुजी कालोनी बड़ीबाग।


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