कभी खेती को लेकर लबरेज, आज हल चलाने से परहेज
जिस मिट्टी की सोंधी सुगंध ऋषि मुनियों को आकर्षित करती थी। जिस मिट्टी में कम मेहनत से अधिक पैदावार होती थी उसी मिट्टी की आज दुर्दशा हो रही है। इस मिट्टी में गरीब किसान भी खेती करके साल भर का खर्चा चला लेता था उसी मिट्टी के खेत मे कोई हल नहीं चलाना चाहता।
जिस मिट्टी की सोंधी सुगंध ऋषि मुनियों को आकर्षित करती थी। जिस मिट्टी में कम मेहनत से अधिक पैदावार होती थी उसी मिट्टी की आज दुर्दशा हो रही है। इस मिट्टी में गरीब किसान भी खेती करके साल भर का खर्चा चला लेता था उसी मिट्टी के खेत मे कोई हल नहीं चलाना चाहता। स्थिति यह है कि खेती की इस अनिश्चित स्थिति के कारण इस क्षेत्र के खेतों के भाव भी काफी गिर गए है। मंगई नदी के पास वाले खादर क्षेत्र में मसूर चना मटर और तिलहन की उपज अन्य खेतों की तुलना में डेढ़ गुनी होती थी। अगर सूखा पड़ जाय या अकाल आ जाय जिस किसान का खेत इस क्षेत्र में होता था उसे वर्ष भर अन्न की कमी नही होती थी लेकिन अब दलहन की खेती एक स्वप्न की तरह हो गयी है।
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जासं, लौवाडीह (गाजीपुर) : करइल इलाके की खेती भी अजीब तरह की होती है। जिस वर्ष सूखा पड़ता है उसी वर्ष इन खेतों में रबी की बोआई अच्छी होती है। अच्छी बरसात होने की स्थिति में खेती संभव नहीं हो पाती, क्योंकि शारदा नहर से पानी छोड़े जाने और मगई नदी में जाल लगने के कारण पानी निकाल ही नहीं पाता। सन 2000 के आसपास भी किसान इस समस्या से प्रभावित थे। उस समय जाल तो नहीं लगते थे लेकिन बरसात अधिक होने से शारदा नहर से पानी काफी छोड़ा जाता था। उस समय करइल इलाके में धान की खेती बहुत ही अल्प मात्रा में की जाती थी। किसानों की रोजी-रोटी केवल दलहन के फसल पर निर्भर थी ऐसे में किसानों के हालात से वाकिफ होकर तत्कालीन विधायक स्व. कृष्णानंद राय ने किसानों का नेतृत्व किया और किसानों की हक की लड़ाई लड़कर पानी को बंद कराया। कुछ वर्षों तक स्थिति ठीक रही लेकिन उसके बाद स्थिति और गंभीर हुई शारदा नहर से छोड़े गए पानी के अतिरिक्त जाल बिछाना भी शुरू हो गया और नदी से मछली निकालना एक व्यवसाय बन गया। लौवाडीह मंगई क्षेत्र का यह इलाका काफी बड़ा है दूर-दूर तक कहीं गांव नहीं दिखाई देते। मुहम्मदाबाद से लेकर बलिया तक फैला है करइल इलाका
:इस क्षेत्र में तीन विकासखंड मुहम्मदाबाद भांवरकोल और बाराचवर के गांव आते हैं। यह क्षेत्र गाजीपुर के मुहम्मदाबाद से बलिया तक फैला है जो काफी उपजाऊ और खेती का विशाल मैदान है। इस क्षेत्र में मसूर, चना, मटर, खेसारी व सरसों, अलसी, प्याज, गेहूं व जौ आदि की खेती होती है। जिले के आधे से अधिक दलहन की खेती इसी क्षेत्र में होती है।
नहीं है सिचाई की सुविधा
: इतना विशाल उपजाऊ मैदान होने के बावजूद किसी भी जनप्रतिनिधि द्वारा इसके विकास के बारे में नहीं सोचा गया। इस क्षेत्र में न तो कोई सिचाई की सुविधा है और न ही इसका विद्युतीकरण किया गया। अगर इस क्षेत्र का विद्युतीकरण कर दिया जाय तो किसान कनेक्शन लेकर इस क्षेत्र में दलहन के अतिरिक्त गेहूं, प्याज व जौ आदि की भी खेती कर सकेंगे। रबी की बोआई में विलंब की स्थिति होने पर यहां सिचित खेती की जा सकती है। विद्युतीकरण न होने से किसानों को डीजल इंजन से खेती करनी पड़ती है जो काफी खर्चीला साबित होता है ऐसे में किसान खेतों को खाली ही छोड़ देता है। इस पूरे क्षेत्र में लौवाडीह एक सरकारी ट्यूबवेल था लेकिन न तो इसके ट्रांसफार्मर का पता है और न ही पोल पर तार ही मौजूद है।प्रशासन द्वारा इसके रीबोर का भी प्रयास नहीं किया गया। लौवाडीह किसानों का कहना है कि 1977 में तत्कालीन विधायक स्व. रामजन्म राय के समय ही कुछ सरकारी नलकूप लगे थे। उसके बाद किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया। किसानों की मांग है कि इस पूरे क्षेत्र में जगह-जगह राजकीय नलकूप लगाए जाय।
बनाई जाए निगरानी समिति
: लौवाडीह इस समस्या के निदान का उपाय है कि इसके लिए प्रशासन द्वारा एक निगरानी समिति बनाई जाए, जिसमें आजमगढ़, गाजीपुर और बलिया के अधिकारी शामिल हों। यह समिति स्थिति पर निगरानी बनाये रखे। साथ ही जो लोग जाल लगाकर बाधा उत्पन्न कर रहे हो उन पर कड़ी कार्रवाई हो। इसके अतिरिक्त गाजीपुर के डीएम भी इस समस्या को सबसे प्रमुख समस्या समझें और इस पर उचित कार्रवाई करें। यह समस्या प्रतिवर्ष की है लेकिन डीएम द्वारा विशेष रुचि न लिया जाना स्थिति को और खराब हो जा रही है। लौवाडीह के चंद्रभूषण राय ने कहा कि यह समस्या प्रतिवर्ष की है इसलिए इसके ठोस उपाय किये जाय और यह सुनिश्चित किया जाय कि नदी की धारा के प्रवाह को बाधित न किया जाय और शारदा नहर से बुआई के समय पानी न छोड़ा जाय।
-------------- बोले किसान..
: किसान ज्ञानेश्वर राय ने कहा कि यह समस्या प्रतिवर्ष की है इसलिए इसके ठोस उपाय किये जाएं और यह सुनिश्चित किया जाय कि नदी की धारा के प्रवाह को बाधित न किया जाय और शारदा नहर से बोआई के समय पानी न छोड़ा जाय। : बृजेश राय ने कहा कि इस वर्ष रबी के फसल की बुआई में काफी विलंब होगा ऐसे में बीमा कंपनियों द्वारा खरीफ की फसल में हुए नुकसान के साथ रबी की बोआई न हुए खेत का भी मुआवजा मिले।
: सियाड़ी के अंशु राय ने कहा कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे भी पानी के निकास में बाधा है ऐसे में इसका ड्रेनेज सिस्टम पर ध्यान दिया जाए जिससे पानी का निकास हो सके। : पारो के रामचंद्र ने कहा कि इस क्षेत्र में सिचाई की व्यवस्था बनाई जाए और प्रशासन द्वारा जाल लगाने वाले पर कड़ी कार्रवाई की जाए जिससे समय से बुआई जो सके।