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वरदान की जगह अभिशाप बनी मगई

प्रति जाल लगाने में खर्च होता है 60 से

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 09:13 PM (IST)Updated: Thu, 07 Nov 2019 06:23 AM (IST)
वरदान की जगह अभिशाप बनी मगई
वरदान की जगह अभिशाप बनी मगई

कभी मगई नदी करइल के किसानों के लिए मिश्र की नील नदी की तरह वरदान थी। वहीं आज इसे बिहार के कोसी और बंगाल के हुगली नदी की तरह करइल का शोक कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसके लिए जिम्मेदार मछुआरों के साथ-साथ प्रशासन और सफेदपोश लोग हैं। व्यावसायिक लाभ के लिए मछुआरों को माध्यम बनाकर जाल लगा दिया जाता है। जाल ऐसा लगाया जाता है कि नदी के जल प्रवाह को रोक दे। नदी में बालू और करकट की सहायता से दीवार खड़ी की जाती है उसके बाद मजबूत जाल ऊपर तक लगा दिया जाता है। जाल इतना मजबूत रहता है कि बिना धारदार हथियार के नहीं कटता है। प्रति जाल को लगाने में लगभग 60 से 80 हजार रुपये लगते हैं। इससे कमाई प्रति महीने लाखों रुपये है। महेंद में कई जगह जगदीशपुर, सोनवानी बलिया के दौलतपुर सहित अन्य गांव में जाल लगा दिए गए हैं जिससे प्रवाह मगई नदी का एक दम से रुक गया।

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-------- जागरण संवाददाता, लौवाडीह (गाजीपुर) : प्रशासन दबंग मछुआरों के सामने नतमस्तक है तभी तो पिछले महीने सात अक्टूबर को जगदीशपुर में जाल हटवाने गए किसानों पर मछुआरों ने ईंट-पत्थर चलाया था। किसानों को बंधक बना लिया। बाद में आई पुलिस ने बंधक किसानों को छोड़वाया लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। उपजिलाधिकारी अपनी टीम के साथ मछुआरों को जाल हटाने के निर्देश दिए लेकिन उसका कोई फायदा नही हुआ और उनकी बात को अनसुनी कर दिए।

प्रशासन इतना नतमस्तक था कि किसानों के आंदोलन के दबाव में जाल हटवाया गया और 12 अक्टूबर को 18 लोगों के विरुद्ध मत्स्य पालन अधिकारी द्वारा नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई गई लेकिन जाल पुन: लगा दिए गए और सफेदपोशों की पैरवी काम आई और कार्रवाई नहीं हुई। बाद में प्रशासन ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि बलिया क्षेत्र होने के कारण वे कुछ भी करवाई नहीं कर सकते। इधर, प्रशासन जाल हटवाने में मामूली सफल भी हुआ लेकिन बलिया में माननीयों का वरदहस्त होने के कारण प्रशासन भी मजबूर था।

------- किसान जा चुके हैं हाइकोर्ट

लौवाडीह प्रशासन की नाकामयाबी और जनप्रतिनिधियों के उदासीनता के बाद किसानों ने इसे स्वयं अपने हाथ में लिया। 10 अक्टूबर को करीमुद्दीनपुर-बलिया मार्ग पर रास्ता जाम किया था। वहीं 17 अक्टूबर को लौवाडीह, जोगामुसाहिब, पारो, रेड़मार के किसानों ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का काम रोक दिया। इसके बाद राजापुर ग्रामप्रधान प्रतिनिधि के नेतृत्व में हाईकोर्ट गए जहां से उचित निर्देश दिया गया। इसके बाद शारदा नहर से पानी छोड़ना बंद हुआ और लगे जाल में कमी हुई और उसके बाद पानी घटने लगा।

--- नदी में गिरता है बरसात का पानी

मगई नदी का महत्व इस क्षेत्र के किसानों के लिए काफी है। इसकी वजह से यह क्षेत्र उपजाऊ तो है ही इसके अतिरिक्त यह पूरे करइल क्षेत्र के बरसात का पानी इसी नदी में जाता है जिससे इस क्षेत्र से सटे गांव में बाढ़ नहीं आती और रबी के फसल की बोआई समय से हो जाती है। लौवाडीह, पारो, रेड़मार, जोगामुसाहिब से दक्षिण और सोनाड़ी, मलसा, चांदपुर, बेलेसड़ी आदि गांव के उत्तर काफी उपजाऊ भूमि ताल है। बरसात का पानी इस मैदानी इलाका से गंगहर नदी में जाता है और गंगहर नदी के पानी का निकास मगई नदी में ही है। इसके अतिरिक्त जब गंगा नदी का बाढ़ इन क्षेत्र में आता है तो इसी नदी में अतिरिक्त पानी जाता है।

---------- अधिक उपजाऊ है मैदानी भाग

रबी की बोआई अगर विलंब से हुई तो इसी नदी से किसान गेहूं व जौ फसल की सिचाई करते हैं। लौवाडीह के दक्षिण तरफ स्थित मैदानी भाग काफी उपजाऊ है इसमें चने की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। अगर मगई का अस्तित्व नहीं रहता तो इस बड़े उपजाऊ भाग का पानी नहीं निकल पाता और इतने बड़े भाग पर खेती नहीं हो पाती।इसके अतिरिक्त कहीं भी ऐसा स्थान नहीं होगा जिसकी खेती में उर्वरक का प्रयोग नहीं होता लेकिन इस मिट्टी में अगर दलहन की खेती की जाती है तो उर्वरक का नाम मात्र भी उपयोग नहीं होता।

-------- अखिर क्यों चुप हैं जनप्रतिनिधि

जागरण अभियान का असर धीरे-धीरे किसानों में हो रहा है। किसान जगह-जगह जाकर जाल हटा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर प्रशासन अभी भी नीरो की तरह वंशी बजा रहा है। जागरण अभियान की प्रसंशा हो रही है। लोग यही बात कर रहे हैं कि अगर जागरण इस अभियान का नेतृत्व कर सकता है तो प्रशासन और जनप्रतिनिधि क्यों मौन हैं। प्रशासन इस मामले में कुछ तो नहीं कर रहा है लेकिन जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी समझ से परे है। मगई नदी के पानी से परेशान किसानों की सुधि किसी भी जनप्रतिनिधि ने नहीं ली है। इसके लिए किसानों ने धरना भी किया लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि का समर्थन नहीं मिला। किसानों की मानें तो वे केवल चुनाव के समय और पौधरोपण में ही दिखाई देते हैं।सत्ता पक्ष के अलावा किसी भी दल का प्रतिनिधि किसानों के लिए सड़क पर नहीं उतरे और न ही इस समस्या को ऊपर तक उठाने का प्रयास किए।


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