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पीपा पुल बनाने का मुद्दा अब पकड़ने लगा है जोर

बारा (गाजीपुर) इस बार लोकसभा चुनाव में गंगा में पीपा पुल बनाने का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है। सूबे के अंतिम छोर एवं बिहार के सीमावर्ती बारा व गहमर के लोगों की जिदगी रोज नदी में चल रही नाव पर तैरती है। जान हथेली पर रखकर जर्जर नावों के सहारे नदी पार कर खेतों में जाना लोगों की मजबूरी बन गई है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 05:05 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 11:35 PM (IST)
पीपा पुल बनाने का मुद्दा अब पकड़ने लगा है जोर
पीपा पुल बनाने का मुद्दा अब पकड़ने लगा है जोर

जासं, बारा (गाजीपुर) : इस बार लोकसभा चुनाव में गंगा में पीपा पुल बनाने का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है। सूबे के अंतिम छोर एवं बिहार के सीमावर्ती बारा व गहमर के लोगों की जिदगी रोज नदी में चल रही नाव पर तैरती है। जान हथेली पर रखकर जर्जर नावों के सहारे नदी पार कर खेतों में जाना लोगों की मजबूरी बन गई है। दो दशक से चुनावों के दौरान सभी दल के घोषणा पत्र में पीपा पुल निर्माण शामिल रहता है। इसे मुद्दा बनाकर जनप्रतिनिधि वोट बटोरते हैं। लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। इस बार के लोकसभा चुनाव में पीपा पुल निर्माण ही क्षेत्रवासियों का अहम मुद्दा होगा। गंगा इस पार के बारा और गहमर के लोग गंगा उस पार खेतों में कार्य व पशुओं के लिए चारा लाने के लिए प्रतिदिन नाव का सहारा लेते हैं। यही नहीं कमसार-ओ-बार इलाके के हजारों लोगों की रिश्तेदारियां गंगा उस पार के मुहम्मदाबाद क्षेत्र व बलिया जिले में है। लंबे अरसे से क्षेत्रीय लोग गंगा में पीपा पुल बनाने की मांग कर रहे हैं। पीपा पुल निर्माण के बाद कमसार-ओ-बार का इलाका मुहम्मदाबाद क्षेत्र के दर्जनों गांवों के साथ साथ बलिया जनपद से भी जुड़ जाएगा। गंगा इस पार बसा बारा व गहमर गांव के किसानों का उस पार बांड़ क्षेत्र में 75 प्रतिशत खेत है जहां खेतों में कार्य करने वाले लोग कृषि उपकरण, बैल गाड़ी आदि नाव पर ही लादकर गंगा पार करते हैं। इस इलाके के लोगों का जीवन यापन खेती पर ही आधारित है। अधिकांश लोगों का खेत गंगा उस पार है तो वहां जाना भी मजबूरी है और नाव ही एक मात्र सहारा है। लेकिन प्रदेश के अंतिम छोर पर होने की वजह से यह इलाका अभी तक सरकारी सुविधाओं से कोसों दूर है। एक कोस की दूरी अपनों से मिलने के लिए 40 से 50 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। इसके चलते लोग रिश्तेदारों के घर जाने से कतराते हैं। पीपा पुल निर्माण हो जाने से आर्थिक फायदे के साथ साथ सामाजिक लाभ भी मिलेगा। लोग बोले .. - पूर्व प्रधान बारा शकील खां ने कहा कि बसपा के शासनकाल में अपने प्रधानी कार्यकाल में पीपा पुल बनाने का प्रस्ताव बनाकर उन्होंने शासन को दिया था। पुल निर्माण का पक्का भरोसा भी दिया गया। लेकिन सरकार जाते ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यहां पीपा पुल का निर्माण उतना ही जरूरी है जितना कि जीवन के लिए पानी। - पूर्व प्रधान बारा मंजूर खां ने कहा कि पुल बनाने का वादा कर नेता यहां का वोट तो ले लेते हैं लेकिन आज तक पुल नहीं बन सका। जमानियां विधानसभा के कमसार.ओ.बार इलाके के हजारों लोगों की रिश्तेदारियां गंगा उस पार के मुहम्मदाबाद क्षेत्र व बलिया जिले में है। पुल के अभाव में लोग रिस्तेदारों के यहां जाने से भी कतराते हैं। - एजाज खां ने कहा कि किसानों का 75 प्रतिशत खेत गंगा उस पार है। मगर आवागमन की सुविधा न होने के कारण रिश्तेदारियां तो दूर हो ही चुकी है, खेती-बाड़ी पर भी असर पड़ रहा है। हर बार सभी दल के जनप्रतिनिधियों के घोषणा पत्र में यह शामिल रहता है। लेकिन चुनाव बीतने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। कुतुबपुर गांव निवासी राहुल राय ने कहा कि हर बार चुनाव के समय नेता तरह-तरह के वादे करते हैं। उनके वादे पर विश्वास किया जाए तो लगता है कि चुनाव के बाद रामराज्य आने वाला है। मगर चुनाव समाप्त होते ही नेता वादे भूल जाते हैं। लेकिन इस बार चुनाव में पीपा पुल निर्माण का पक्का वादा करने वाले को ही समर्थन दिया जाएगा।

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