गरमाने लगा पूर्वांचल कताई मिल को चालू कराने का मुद्दा
कर्मचारियों को वर्ष 2010 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देकर मिल को कर दिया गया बंद - वर्ष 19
जासं, कासिमाबाद (गाजीपुर) : लोगों के रोजगार से जुड़े बड़ौरा स्थित पूर्वांचल सहकारी कताई मिल को चालू कराना इस लोकसभा चुनाव का बड़ा मुद्दा होगा। इसके बंद होने से न सिर्फ सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए बल्कि कईयों के चूल्हे की आग ठंडी हो गई। हर बार चुनाव में जनप्रतिनिधि इसे चालू करवाने का आश्वासन देते हैं लेकिन चुनाव बीतने के बाद वे इसके बारे में तनिक भी विचार नहीं करते।
पूर्वांचल सहकारी कताई मिल का शिलान्यास आठ अगस्त 1981 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने किया था। इसका उद्घाटन 21 दिसंबर 1986 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने किया। करीब 76 हेक्टेयर भूभाग में स्थापित इस मिल में पंद्रह सौ से अधिक लोग काम करते थे। ऐसा लगा कि अब वो दिन दूर नहीं जब अन्य मिलें भी स्थापित होंगी। इससे जनपद के बेरोजगारों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। पर कुछ दिन चलने के बाद मिल कु-प्रबंधन एवं भ्रष्टाचार की शिकार हो गई। मिल का उत्पादन गिरने लगा। एक ऐसा समय भी आया जब मिल को बंद करने के बारे में सरकार सोचने लगी। आखिर 2006 में मिल के 182 कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई। फिर अक्टूबर 2010 में अन्य 810 कर्मचारियों को भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देकर मिल को पूरी तरह बंद कर दिया गया। ऐसा लगा जैसे जनपद की धड़कन बंद हो गई हो। लोगों को उम्मीद थी कि मिल फिर से चालू होगी लेकिन अब यह इंतजार लंबा होता जा रहा है। इसके कर्मचारी बेरोजगार होकर भटक रहे हैं। उनके घरों के चूल्हों की आग ठंडी हो गई। मजबूर होकर उन्हें पेट भरने के लिए मेहनत मजदूरी करनी पड़ रही है। मिल की दीवारें जर्जर हो कर अपनी रंगत बदलने लगी हैं। बंद पड़ी मशीनों में जंग लग रहे हैं। लोकसभा चुनाव में किसी भी बड़े राजनीतिक दल ने अपने एजेंडे में इसको शामिल नहीं किया है। इससे लोगों की उम्मीदें एक बार फिर टूटती नजर आ रही हैं। चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल इस मिल को खोलने के लिए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे हैं। वहीं जब मिल के लिए कुछ करने की बारी आई है तो इससे सभी किनारा कर लेते हैं।
--------- बदसूरत हो गई डाकबगले की रंगत
- कताई मिल का डाक बंगला जनपद का सबसे अच्छा माना जाता था। यहां ठहरने को लोगों में लालसा लगी रहती थी। आज हालात ये हैं कि यह देखरेख के अभाव में इसकी सूरत बदसूरती में बदल गई है। पिछले दस वर्षों से इसका रंग रोगन भी नहीं हुआ है। मिल के प्रबंधक कानपुर में रहते हैं और यहां निजी सुरक्षा गार्ड देखरेख करते हैं। मिल के डाक बंगले में कुछ दिनों से उप जिलाधिकारी मंशाराम वर्मा अस्थाई तौर पर रह रहे हैं।
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लोग बोले ..
फोटो- 17सी
मिल के कर्मचारी व भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री ऋषि शंकर तिवारी ने बताया कि चुनाव आते ही नेता मिल चालू करने के लिए बड़े-बड़े वादे करते हैं और चुनाव जीतने के बाद गायब हो जाते हैं। मिल चालू करने के लिए हमलोगों ने प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक को पत्र लिख दिया लेकिन आज तक मिल चालू नहीं हुई। फोटो- 18सी
- पूर्व कर्मचारी पब्बर यादव ने बताया कि स्थानीय लोग इसे इस बार चुनावी मुद्दा बनाने के मूड में हैं। चुनाव आते ही जनप्रतिनिधियों को इसका ध्यान तो आता है लेकिन चुनाव खत्म होते उनका दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। पिछले चुनाव में मिल चालू कराने के लिए बड़े-बड़े वादे किए लेकिन सब बेकार। फोटो- 19सी
- पूर्व कर्मचारी लालमोहन ठाकुर ने बताया कि मिल बंद होने से सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं जो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। लेकिन सरकार का ध्यान अभी तक इस मिल के ऊपर नहीं गया अगर मिल चालू हो जाता तो सैकड़ों बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता और उनके परिवार को जीविका का साधन उपलब्ध हो जाता। फोटो- 20सी
- पूर्व चौहान खेदारू चौहान ने बताया कि चुनाव के समय पूर्व मंत्री सैयदा शादाब फातिमा, प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर व सांसद भरत सिंह ने मिल चालू करवाने की घोषणा की थी लेकिन किसी ने इसे चालू कराने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। इस मुद्दे को जनप्रतिनिधियों को संज्ञान में लेना होगा।