प्रेमचंद के साहित्य में उस समय के भारत का प्रतिबिंब
जागरण संवाददाता गाजीपुर मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे साहित्यकार हैं जिनके साहित्य में पहली बा
जागरण संवाददाता, गाजीपुर : मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे साहित्यकार हैं जिनके साहित्य में पहली बार वह समुदाय उपस्थित ही नहीं बल्कि बहुत मुखर भी है जिसको हम-आप हाशिये के समुदाय के रूप में जानते हैं। यदि साहित्य समाज को समझने का माध्यम है और यदि साहित्य अपने समाज के साथ संवाद करता है, या उसके माध्यम से हम उस समय में प्रवेश करते हैं तो जो उस समय का भारत है, उसको समझने के लिए प्रेमचंद का साहित्य, दस्तावेज के रूप में उपस्थित होता है। उनके साहित्य में उस समय के भारत का प्रतिबिब है। उस समय औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ जो चेतना संचारित की जा रही थी।
ये बातें बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की प्रो. प्रीति चौधरी ने राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित आनलाइन राष्ट्रीय कार्यशाला प्रेमचंद को कैसे पढ़ें प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में कही। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर निरंजन कुमार यादव ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन माधुरी राय ने किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में प्रमुख वक्ता प्रो. राजकुमार (हिदी विभाग, काशी हिदू विश्वविद्यालय वाराणसी) थे। उन्होंने राष्ट्रवाद और प्रेमचंद पर बोलते हुए कहा कि- सभी लोग जानते हैं कि प्रेमचंद ने जिस दौर में अपना लेखन आरंभ किया वह दौर राष्ट्रीय आंदोलन का था और राष्ट्रीय आंदोलन के साथ ही राष्ट्रवाद का संदर्भ आ जाता है। प्रेमचंद कहते थे कि जो काम राजनीति में गांधीजी कर रहे हैं वही काम साहित्य के क्षेत्र में मैं कर रहा हूं। बस क्षेत्र का फर्क है, लेकिन उद्देश्य एक ही है। कार्यक्रम का संचालन डा. निरंजन कुमार यादव द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व डा. संगीता मौर्य ने निर्वहन किया।