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मालिके निसाब नहीं हैं तो न करें कुर्बानी

बारा (गाजीपुर) ईद - उल - अजहा (बकरीद) में चंद रोज बचे हैं लेकिन कोरोना काल में कुर्बानी की परंपरा कैसे जारी रहेगी इसे लेकर मुस्लिम भाइयों के मन में तमाम सवाल है। वे अधिक परेशान हैं जिनकी माली हालत लंबे समय तक चले प्रतिबंध से खराब हो गई है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Jul 2020 05:14 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jul 2020 05:14 PM (IST)
मालिके निसाब नहीं हैं तो न करें कुर्बानी
मालिके निसाब नहीं हैं तो न करें कुर्बानी

जागरण संवाददाता, बारा (गाजीपुर) : ईद - उल - अजहा (बकरीद) में चंद रोज बचे हैं, लेकिन कोरोना काल में कुर्बानी की परंपरा कैसे जारी रहेगी, इसे लेकर मुस्लिम भाइयों के मन में तमाम सवाल है। वे अधिक परेशान हैं, जिनकी माली हालत लंबे समय तक चले प्रतिबंध से खराब हो गई है। ऐसे में उलेमा ने उन्हें शरीयत में हवाले दे सवालों के संकट से उबारने की कोशिश की है। यह बताया है कि अल्लाह को कुर्बानी तो प्यारी है लेकिन यह उनके लिए ही अनिवार्य है जो मालिके निसाब यानी मालदार हैं। बाकी लोगों की सच्ची व शिद्दत से की गई इबादत भी खुदा स्वीकार कर वही बरकत देते हैं जो कुर्बानी करने वालों को मिलता है।

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------ वह माने जाते हैं मालिके निसाब

: मालिके निसाब यानी कुर्बानी की हैसियत रखने वाला। इस्लामिक स्कॉलर प्रोफेसर जुनेद हारिस के मुताबिक जिस शख्स या औरत के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी या इतनी ही नकदी या फिर इसके बराबर संपत्ति है, तो उस पर कुर्बानी अनिवार्य है।

------------- न कर पाएं कुर्बानी तो क्या करें

: मालिके निसाब अगर किसी वजह से अपने नाम से कुर्बानी न कर सका और कुर्बानी के दिन गुजर गए तो एक बकरे की कीमत उस पर सदका करना जरूरी है।

-------------- जिनके पास पैसे नहीं, उन्हें कुर्बानी न करने की छूट

: दारुल उलूम अहले सुन्नत मदरसा गौसिया बारा के प्रिसिपल मौलाना कलीमुद्दीन शम्सी के मुताबिक जिनके पास पैसे नहीं है, उन्हें कुर्बानी न करने की छूट है। मौलाना सालिम अबु नस्त्र ने बताया कि खूब महंगा बकरा खरीदकर कुर्बानी को शोहरत का जरिया न बनाएं।

------------ : हजरत इब्राहिम ने शुरू की परंपरा प्रमुख पैगंबर हजरत इब्राहिम ने कुर्बानी देने की परंपरा शुरू की। मान्यता है कि अल्लाह ने एक बार ख्वाब में आकर उनसे सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा। इब्राहिम को अपना इकलौते पुत्र सबसे अजीज था। इब्राहिम बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे। रास्ते में एक शैतान कहने लगा कि भला इस उम्र में वह अपने बेटे को क्यों कुर्बान कर रहे हैं। शैतान की बात पर उनका मन डगमगाने लगा, लेकिन तभी उन्हें अल्लाह से किया अपना वादा याद आ गया।


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