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अकेले दम पर पुस्तकों को सहेजने की कोशिश में जुटे हैं इतिहासकार

गाजीपुर : फारसी, अरबी, अवधी, उर्दू की पांडुलिपियां संग्रहालय में मौजूद लेकिन सब बेमानी। न कोई पढ़ने वाला न कोई इनकी सुध लेने वाला। इसके शौकीन भी इस ओर अब नहीं देखते बल्कि ई-वर्जन से ही अपनी जरूरतों को पूरा कर ले रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 05:57 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 10:47 PM (IST)
अकेले दम पर पुस्तकों को सहेजने की कोशिश में जुटे हैं इतिहासकार
अकेले दम पर पुस्तकों को सहेजने की कोशिश में जुटे हैं इतिहासकार

जागरण संवाददाता, गाजीपुर : फारसी, अरबी, अवधी और उर्दू की पांडुलिपियां संग्रहालय में मौजूद हैं लेकिन अब लगभग सब बेमानी। न कोई देखने वाला न कोई इनकी सुधि लेने वाला। इसके शौकीन भी इस ओर अब नहीं देखते बल्कि ई-वर्जन से ही अपनी जरूरतों को पूरा कर ले रहे हैं। ऐसे दौर में मोहल्ला मछरहट्टा के वरिष्ठ इतिहासकार उबैदुर्रहमान अपनी लाइब्रेरी में नई-पुरानी करीब तीन हजार से अधिक पुस्तकों को सहेजे हुए हैं। अपना वक्त गुजारने के साथ लोगों को पढ़ने की राय भी देते हैं। इनके लेखन-कार्य में इन किताबों का बड़ा सहयोग होता है।

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उबैदुर्रमान को पढ़ने का शौक विरासत में मिला है। उनके बुजुर्गों को भी पढ़ने का शौक था। उनके परिवार के शेख अब्दुल समद और बैरिस्टर यहिया ने काफी पुस्तकों का संग्रह कर रखा था। इनके पुस्तकालय में 1886 से लेकर 1984 तक के सभी ग•ोटियेर मौजूद हैं। इसके अलावा बहुत से नायाब ग्रंथो का संग्रह है लेकिन उनके कद्रदानों की लगातार कमी होती जा रही है। हालात यह है कि इतिहास को समेटने वाली पुस्तकों को देखने वाला कोई नहीं है। पुस्तकों से इनका लगाव लोगों को इस ओर खींचने की कोशिश में लगा रहता है। ---

आदमी को इंसान बनाती हैं पुस्तकें

उबैदुर्रहमान का कहना है कि पुस्तकें आदमी को इंसान बनाती हैं। उनके अध्ययन से न सिर्फ जानकारी में इजाफा होता है बल्कि मानसिक सोच का दायरा बढ़ता है। हालांकि पढ़ने की आदत खत्म होती जा रही है। खासकर किताब अब कोई खरीदना नहीं चाहता। लोग हजार रुपये पिज्जे पर खर्च कर देंगे लेकिन दो सौ रुपये की किताब उन्हें महंगी लगती है जबकि पुस्तकों का लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता है।


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