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हलक में उतरी गर्मी, अतीत में पहुंचे नेताजी

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By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 09:29 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 09:29 PM (IST)
हलक में उतरी गर्मी, अतीत में पहुंचे नेताजी
हलक में उतरी गर्मी, अतीत में पहुंचे नेताजी

गाजीपुर : तीन दिन पहले की ही बात। होली की सुबह। नेताजी नींद से जगे। फ्रेस हुए, चाय पी और पेपर देखने लगे। यह करते-करते सात बज गए। मोबाइल फोन उठाया और अपने से जुडे़ लोगों को होली का शुभकामना संदेश भेजने लगे। उसी दौरान मोबाइल फोन पर एक मैसेज आया। एक साथी रंग से सराबोर था। यह देख नेताजी के बदन में भी होली खेलने को लेकर गुदगुदी होने लगी। वह सोचने लगे- मैं भी रंग खेलकर ह्वाट्सएप ग्रुप पर फोटो भेजूंगा। सो पुराना कपड़ा पहना और गांव में निकल गए। छोटे-छोटे बच्चे होली खेल रहे थे। नेताजी को देखते ही पिचकारी लेकर दौड़े तो वह रुक गए। बच्चे बोले- रंग डाल दें। नेताजी अनमने ढंग से बोले- नहीं। उनका गांव में रुतबा था ऐसे में बच्चों ने डर के मारे रंग नहीं डाला। पूरे गांव नेताजी घूम गए लेकिन कहीं उन पर एक बूंद भी रंग नहीं पड़ा। जैसा सफ्फाक कपड़ा पहनकर घर से निकले थे, उसी तरह का लिए लौट भी आए। सोफा पर बैठकर सोचने लगे- आखिर मुझे कोई रंग क्यों नहीं डाल रहा. लगता है सब डर रहे हैं। नेताजी के मन में एक तरकीब सूझी। सोफा से उठे और कमरे में गए। शीशा के पास खड़े हुए और मुंह में खुद रंग पोतने लगे। उसी दौरान पड़ोस का एक युवक झट से कमरे में घुस गया। नेताजी को चेहरे पर रंग पोतते देख बोला- यह क्या नेताजी, आप खुद अपने चेहरे पर क्यों रंग पोत रहे हैं.। पड़ोसी के अचानक अंदर आ जाने से नेताजी सकपका गए, बोले- पोत नहीं रहा, रंग छुड़ा रहा हूं। उन्होंने आगे सोचा कि कहीं और न सवाल होने लगे सो तुरंत बोल पड़े- ए रंग-वंग छोड़ो, यह बताओ कि आना कैसे हुआ? पड़ोसी ने भी हिम्मत बांधते हुए बगैर किसी भूमिका के सीधे बोतल निकाल ली। शराब की बोतल देख नेताजी कुछ बोलते इससे पहले पड़ोसी बोल पड़ा- आज इसे प्रसाद समझकर थोड़ा-सा ले लीजिए। बहुत जिद पर तैयार हुए नेता जी ने शुरुआत की। चखना आया और शुरू हो गया पैग लड़ाना। जब चढ़ी तो नेताजी के अंदर का शैतान जाग गया। पुरानी बातें याद आने लगीं। पड़ोसी से बोले- मैं जितना शराब पीता था शायद ही कोई पीता रहा हो। काफी साल पहले की बात है। तुम उस वक्त छोटे थे। होली के दिन सुबह से ही शराब पी और होली खेलने के लिए गांव में निकल गया। नशा इतना ज्यादा था कि मैं भूल ही गया कि कौन भौजाई लगेगी और कौन चाची। रंग लगाते-लगाते एक दूसरे गांव चला गया। वहां कुछ लोग मुझे पहचानते थे। चाय-पानी कराए और शराब पिला दी। नशा ज्यादा होने के चलते एक चाची को ही भाभी-भाभी कहते हुए रंग लगाने के लिए दौड़ा लिया था। वह चिल्लाते हुए भागी तो उसके घरवाले आ गए और पिटाई कर दी। देख रहे हैं यह चेहरे का निशान, उसी समय का है। कई दिनों तक तो मैं उठ भी नहीं पाया। तब से कसम खा ली कि अब शराब नहीं पीऊंगा। यह सब करते-करते नेताजी ने कई पैग चढ़ा लिया और सोफे पर ही लुढ़क गए। पड़ोसी अब तक न समझ सका कि नेता जी का कौन-सा रंग असली है..।

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-नागरिक।


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