मौत बनकर मंडरा रही सिर की छत
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जासं, सैदपुर (गाजीपुर): किसी भी क्षेत्र में संचालित होने वाली अधिकांश योजनाओं का क्रियान्वयन संबंधित तहसील से ही होता है लेकिन तहसील में ही जब सुविधाओं का अभाव हो तो इसे चिराग तले अंधेरा कहने से परहेज नहीं किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ है सैदपुर तहसील में। यहां तहसीलदार, नायब तहसीलदार, लेखपाल समेत अन्य तहसील कर्मियों के सिर पर जर्जर छत मौत बनकर मंडरा रही है। करीब सात वर्ष पहले निष्प्रयोज्य घोषित हो चुके आवासों में तैनात अधिकारी व कर्मचारी रहने को विवश हैं। किसी भी समय हादसा होने की आशंका है लेकिन विभाग को कोई फिक्र नहीं है।
तहसील की स्थापना वर्ष 1889 में हुई थी। इसी के आस-पास अधिकारियों व कर्मचारियों के रहने के लिए आवास का निर्माण हुआ था जो अब पूरी तरह जर्जर हो चुका है। जगह-जगह दीवारों में दरार है। बारिश होने पर पानी टपकता है। किसी भी समय यह धराशायी हो सकता है। विभाग द्वारा इसे निष्प्रयोज्य भी घोषित किया जा चुका है, लेकिन दूसरे आवास की सुविधा न होने से लेखपाल व कानूनगो के अलावा तहसीलदार, नायब तहसीलदार रहने को विवश हैं। तहसील में आने वाले फरियादी भी इन कमरों में बैठकर फरियाद सुनाते हैं लेकिन वे अपनी जान की सुरक्षा को लेकर भयभीत रहते हैं। विभागीय अधिकारियों का ध्यान कई बार तहसील कर्मियों द्वारा इस तरफ आकृष्ट कराया गया, लेकिन अब तक सुध नहीं ली गई। मजबूरी में इन्हीं जर्जर आवासों की रंगाई-पुताई कराकर अधिकारी व कर्मचारी रहते हैं।
--- जर्जर आवास में रहना मजबूरी
: जर्जर आवास में रहना हमारी मजबूरी है। यहां रहने के लिए कोई अतिरिक्त भवन नहीं है। जर्जर आवासों को निष्प्रयोज्य घोषित किया जा चुका है, लेकिन कोई व्यवस्था नहीं की गई है। उच्चाधिकारियों के संज्ञान में मामला है लेकिन कोई सुध नहीं ली जा रही है।
-दिनेश कुमार, तहसीलदार सैदपुर।