वीरों की धरती ने लिखी थी विजय दिवस की पटकथा
विजय दिवस--- - जांबाजी के साथ दुश्मनों के तीन बंकरों को नेस्तनाबूद कर दिया था राम उग्रह पा
विजय दिवस--- - जांबाजी के साथ दुश्मनों के तीन बंकरों को नेस्तनाबूद कर दिया था राम उग्रह पांडेय ने
- शहादत के बाद महाबीर चक्र से नवाजा गया, सादात इलाके के वीरों की भी रही है इस लड़ाई में सहभागिता सर्वेश कुमार मिश्र
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जागरण संवाददाता, गाजीपुर : कहा जाए कि 1971 के पाक से जंग जीतने की पटकथा जिले के वीर जवानों ने लिखी थी तो अतिशयोक्ति नहीं। अपने अदम्य साहस वीरता और पराक्रम के बल पर ऐमा बंशी गाव के महावीर चक्र विजेता शहीद राम उग्रह पांडेय ने जिस तरीके से दुश्मनों के तीन बंकरों को नेस्तनाबूद किया था आज भी उनके तराने गाए जाते हैं। इस लड़ाई में यहां के और कई जाबाजों ने भी दुश्मनों के दांत खट्टे किए। इनमें सादात के ससना गांव निवासी हृदयनारायण सिंह, दौलतनगर गांव निवासी रामेश्वर सिंह उर्फ भोला का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।
जखनियां : भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कैक्कस लिली में पूर्वी सीमा पर मोरपाडा में 23 नवंबर 1971 की रात में अपने पराक्रम से राम उग्रह पांडेय ने दुश्मन के तीन बंकरों को धवस्त कर दिया। इससे बौखलाए पाकिस्तानी फौज ने भारी गोलाबारी की। बावजूद इसके वह दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए शहीद हो गए। देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद राम उग्रह पांडे को मरणोपरांत सेना के महान पदक महावीर चक्र से विभूषित किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने उनकी धर्मपत्नी श्यामा देवी को 1972 में गणतंत्र दिवस के दिन इसे प्रदान कर सम्मानित किया था। शासन द्वारा गांव में शहीद स्मारक का निर्माण करवाया गया। जहां पर हर वर्ष शहीद के नाम पर मेले का आयोजन भी किया जाता है।
सादात : सीआरपीएफ के कमांडेंट पद से रिटायर्ड हुए क्षेत्र के ससना गांव निवासी 76 वर्षीय हृदयनारायण सिंह उस युद्ध को याद कर रोमांचित हो उठते हैं। बताया कि भारतीय सेना के सभी अंगों सहित हम लोगों के सशस्त्रबलों ने मिलकर आपसी तालमेल के साथ पाकिस्तान के दोनों पूर्वी व पश्चिमी मोर्चाें पर भारी तबाही मचाई। इससे पाकिस्तानी सेना असहाय नजर आई। वह उस समय सीआरपीएफ में सब इंस्पेक्टर पद पर बंगाल के दिनाजपुर में तैनात थे। बताया कि उस समय पाकिस्तानी हुकूमत के कू्र निर्णयों, बुद्दिजीवियों पर जुल्म व कत्लेआम से जनता त्राहि त्राहि कर रही थी। भारत सरकार की मुक्तिवाहिनी सेना ने बांग्लादेश को आजाद कराया।
सादात क्षेत्र के दौलतनगर गांव निवासी रामेश्वर सिंह भोला से इस युद्ध की चर्चा की तो वह जोश से भर उठे। बताया कि मेरी तैनाती हवलदार पद पर बंगाल के सिल्चर में थी। ड्यूटी तोपखाने में लगी थी। उस समय हम लोगों के जेहन में बस देश के लिए मर मिटने का जज्बा था। देश की सभी सेनाओं ने आपसी तालमेल बनाकर दुश्मनों के विभिन्न महत्वपूर्ण स्थानों को ध्वस्त कर इस युद्ध में पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया था।