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कोयले के अभाव में सैकड़ों ईंट-भट्ठों पर लगा ग्रहण

गाजीपुर कोयले के अभाव में जिले के करीब सौ ईंट भट्ठों पर ग्रहण लग गया है जबकि सौ बंदी के कगार पर हैं। कोयले के आसमान छूते दाम और उनकी कमी के चलते काफी संख्या में ईंट भट्ठे बंद हो गए हैं। ईंट भट्ठा संचालकों का कहना है कि तीन वर्षों से वे ब्लैक में कोयला खरीद कर भट्ठा का संचालन कर रहे हैं इससे उनको काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो ईंट भट्ठा संचालकों की हालत दिन प दिन खराब होती जाएगी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Mar 2019 05:19 PM (IST)Updated: Sun, 10 Mar 2019 08:47 PM (IST)
कोयले के अभाव में सैकड़ों ईंट-भट्ठों पर लगा ग्रहण
कोयले के अभाव में सैकड़ों ईंट-भट्ठों पर लगा ग्रहण

जासं, गाजीपुर : कोयले के अभाव में जिले के सैकड़ों ईंट भट्ठों पर ग्रहण लग गया है जबकि इतने ही बंदी के कगार पर हैं। कोयले के आसमान छूते दाम और उनकी कमी के चलते काफी संख्या में ईंट भट्ठे बंद हो गए हैं। ईंट भट्ठा संचालकों का कहना है कि तीन वर्षों से वे ब्लैक में कोयला खरीद कर भट्ठा का संचालन कर रहे हैं इससे उनको काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो ईंट भट्ठा संचालकों की हालत दिन पर दिन खराब होती जाएगी।

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जिले में 480 ईंट भट्ठों का संचालन होता है। तीन वर्ष पूर्व उनको भट्ठों को चलाने के लिए कोयले की व्यवस्था यूपीएसआईटी (उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रीयल कारपोरेशन) एवं पीसीएफ (प्रोवेंशियल कोआपरेटिव फेडरेशन) करती थी। संस्था की ओर से कोयला 55 सौ रुपये प्रति टन उपलब्ध हो जाता था लेकिन कोयला की गुणवत्ता को लेकर ईंट भट्ठा संचालकों ने सवाल उठाए तो उन्होंने कोयले की आपूर्ति बंद कर दी। ऐसे में संचालकों को भट्ठा संचालन के लिए 12 हजार रुपये प्रति टन ब्लैक में खरीदना पड़ रहा है। ईंधन का खर्च बढ़ने के कारण ईंट की लागत तो बढ़ गई लेकिन बाजार में उसकी कीमत पुरानी ही है। इसके चलते संचालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अपने कारोबार को लागू रखने और मजदूरों को उनकी मजदूरी देने के लिए कम कीमत पर ईंटों की बिक्री करने पर मजबूर हैं।

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नुकसान सहने को मजबूर हैं भट्ठा संचालक

- ईंट भट्ठा निर्माता समिति के जिलाध्यक्ष अक्षय दुबे ने बताया कि कोयला ब्लैक में लेने के साथ ही उसे वे कम कीमत पर बाजार में ईंट बेचने को मजबूर हैं। अगर नहीं बेचेंगे तो उनकी पूंजी फंस जाएगी और उनकी चिमनी ठंडी हो जाएगी। बताया कि एक बार चिमनी को जलाने में करीब दो लाख रुपये का खर्च आता है। भट्ठों को चलाने के लिए मनी ट्रांजेंक्शन जरूरी है। प्रदेश सरकार को इसमें हस्तक्षेप कर कोयला की आपूर्ति यूपीएसआईटी और पीसीएफ द्वारा चालू करानी होगी।


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