फल की दुकान चला जीवन में रस घोल रही ममता
मुहम्मदाबाद (गाजीपुर) : सिर्फ बेटे ही परिवार की जिम्मेदारी उठाते हैं, यह बीते जमाने की बातें हो चली हैं। होनहार बेटियां अब इस परंपरा तोड़ने लगी हैं। वह न सिर्फ आगे बढ़कर परिवार के व्यवसाय में सहयोग कर रही हैं बल्कि अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं। कुछ ऐसी ही है मुहम्मदाबाद क्षेत्र के लट्ठूडीह मोड़ पर फल की दुकान चलाने वाली ममता, जो फल की दुकान चला कर अपने व परिवार के जीवन में रस घोल रही है।
गोपाल ¨सह यादव
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जागरण संवाददाता, मुहम्मदाबाद (गाजीपुर) : सिर्फ बेटे ही परिवार की जिम्मेदारी उठा सकते हैं, यह सोच बदल चुकी है। होनहार बेटियां अब इस परंपरा तोड़ने लगी हैं। वह न सिर्फ आगे बढ़कर परिवार के व्यवसाय में सहयोग कर रही हैं बल्कि अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं। कुछ ऐसी ही है मुहम्मदाबाद क्षेत्र के लट्ठूडीह मोड़ पर फल की दुकान चलाने वाली ममता, जो फल की दुकान चला कर अपने व परिवार के जीवन में रस घोल रही है। वह पूरे दिन शिद्दत के साथ लगी रहती है। यही नहीं इस बीच वह पास के कालेज में स्नातक की पढ़ाई भी करती है।
करीमुद्दीनपुर थाना क्षेत्र के कबीरपुर गांव निवासी रंगीला राम के दो पुत्रों व सात पुत्रियों में ममता छठे नंबर पर है। पांच बहनों की शादी हो चुकी है। एक बहन ममता से छोटी है। वहीं दो छोटे भाइयों में एक निजी वाहन चलाता है दूसरा इंटरमीडिएट कर आगे की तैयारी में लगा है। पास ही गांधी नगर स्थित डिग्री कालेज में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है। परिवार पालने के लिए पिता लट्ठूडीह मोड़ पर फल की दुकान चलाते हैं। बुजुर्ग पिता के लिए दुकान चलाना मुश्किल हो रहा था और भाई इतने छोटे थे कि वह इसकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकते थे। ऐसे में परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ। कोई विकल्प न देख ममता ने दुकान की जिम्मेदारी उठाने के लिए खुद को तैयार किया और पुश्तैनी फल की दुकान पर डंट गई। ममता सुबह दुकान पर पहुंचती है और दोपहर एक बजे तक दुकानदारी करती है। उसके बाद शाम चार बजे पहुंचती है और दुकान बंद कराने के बाद पिता के साथ घर जाती है। समय निकाल पर कालेज में क्लास भी कर लेती है। ---
दुकान चलाने में नहीं है कोई झिझक
- ममता ने बताया कि फल की दुकान से उसकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। इससे परिवार की गाड़ी चल रही है। लड़की होकर दुकान चलाने में होने वाली झिझक के सवाल पर बोली कि शुरू में कुछ अटपटा लगा लेकिन अब तो उसे कोई झिझक नहीं होती है। वह आसानी से दुकान चलाती है। ममता की वजह से उसकी दुकान पर महिला ग्राहक भी काफी आती हैं। ममता का मानना है कि अब दुनिया 21 सदीं में है। लड़कियां अंतरिक्ष से लेकर खेलकूद व प्रशासनिक पदों पर आसीन हो रही हैं। ऐसे में उन्हें स्वरोजगार में आगे आने से हिचकने की जरूरत नहीं है। आत्मनिर्भर होना समय की मांग है।