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कमीशन के खेल में फंस जान गंवा रहीं प्रसव पीड़िताएं

जासं गाजीपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्र की गर्भवती महिलाओं को कमीशन के चक्कर में आशाओं द्वारा बहला फुसलाकर निजी अस्पताल ले जाने का खेल लंबे समय से जारी है। सरकारी अस्पतालों को सुविधा विहीन व परिजनों को भरमाकर उन्हें नीम-हकीम के हाथों में सौंप देती हैं जिससे उनकी जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की तंद्रा प्रसूताओं की मौत के बाद टूटती तो जरूर है लेकिन कार्रवाई के नाम पर कागजी खानापूर्ति कर फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। ऐसे में नीम-हकीम व अवैध रूप से संचालित अस्पतालों पर अंकुश लगाने का दावा पूरी तरह से फ्लाप हो चुका है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 11 Sep 2019 05:36 PM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 05:36 PM (IST)
कमीशन के खेल में फंस जान गंवा रहीं प्रसव पीड़िताएं
कमीशन के खेल में फंस जान गंवा रहीं प्रसव पीड़िताएं

जासं, गाजीपुर : जिले के ग्रामीण क्षेत्र की गर्भवती महिलाओं को कमीशन के चक्कर में आशाओं द्वारा बहला फुसलाकर निजी अस्पताल ले जाने का खेल लंबे समय से जारी है। सरकारी अस्पतालों को सुविधा विहीन व परिजनों को भरमाकर उन्हें नीम-हकीम के हाथों में सौंप देती हैं, जिससे उनकी जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की तंद्रा प्रसूताओं की मौत के बाद टूटती तो जरूर है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कागजी खानापूर्ति कर फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। ऐसे में नीम-हकीम व अवैध रूप से संचालित अस्पतालों पर अंकुश लगाने का दावा पूरी तरह से फ्लाप हो चुका है।

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मातृदर में कमी लाने के लिए एक तरफ जहां शासन की ओर से तमाम योजनाओं के संचालन के साथ शहर समेत ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों को अत्याधुनिक बनाने के साथ उनकी माहवार समीक्षा की जा रही है वहीं विभाग के प्रत्येक योजनाओं खासकर गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच से लेकर उनके प्रसव तक की जिम्मेदारी निभाने वाली आशा ही इसमें पलीता लगाने का काम कर रही है। स्थिति तो यह है कि प्रत्येक ब्लाक पर स्थापित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के साथ-साथ जिला महिला अस्पताल प्रसव के लिए लाने वाले गर्भवती महिलाओं को इतना भ्रम में डालती देती हैं कि परिजनों को उनकी जान बचाने के लिए निजी अस्पताल की शरण लेनी पड़ती है। जहां तैनात अप्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों व नीम-हकीम द्वारा मोटी रकम तो वसूली जाती है लेकिन उन्हें मौत के मुंह में ढकेल दिया जाता है। घटना के बाद जब परिजन हंगामा करते हैं तब जाकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की तंद्रा टूटती है और आनन-फानन जांच व कार्रवाई करने का काम शुरू करते हैं।

केस-1

कासिमबाद कोतवाली क्षेत्र के सोनबरसा स्थित एक निजी अस्पताल में 31 जुलाई को अप्रशिक्षित लोगों द्वारा आपरेशन करने से मरदह थाना क्षेत्र के पृथ्वीपुर गांव निवासी प्रसूता सुनीता देवी की मौत हो गई। प्रसूता के पति अनिल कुमार ने एसडीएम व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को बताया कि बीते 27 जुलाई को आशा कार्यकर्ता शकुंतला द्वारा प्रसव के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र न ले जाकर कमीशन के चक्कर में निजी अस्पताल में भर्ती करा गया। जहां डाक्टरों की लापरवाही से प्रसूता की मौत हो गई। पीड़ित ने वहां के डाक्टरों के साथ आशा शकुंतला के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। तब जाकर विभागीय कार्रवाई शुरू हुई। ---------

केस- दो

जमानियां क्षेत्र की एक गर्भवती महिला को जिला महिला अस्पताल ले जाने के बजाए वहां की आशा कमीशन के चक्कर में प्रसव के लिए शहर कोतवाली के खोवामंडी स्थित ममता अस्पताल लेकर आई। जहां प्रसूता की आपरेशन के बाद मौत हो गई। परिजनों के हंगामा करने की जानकारी के बाद पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जहां अस्पताल को सीज कर दिया वहीं मोहल्लावासियों ने आशा कार्यकर्ता को पुलिस के हवाले कर दिया। वहां छानबीन के दौरान एक डायरी मिली। जिसमें जनपद की अधिकांश आशाओं का नाम व कमीशन में दिए गए धनराशि तक का विवरण था। --------- अब तक विभाग की ओर से दो आशाओं पर मुकदमा दर्ज कराया है। साथ ही मौके से मिले साक्ष्य के आधार पर चिन्हित करने के साथ विभागीय कार्रवाई चल रही है। इसके अलावा सीएमओ द्वारा पत्र भी जारी किया गया है कि प्रसव के लिए निजी अस्पताल लेकर जाने वाली आशा कार्यकर्ता खुद जिम्मेदार होंगी व उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी।

- डा. प्रगति कुशवाहा, नोडल अधिकारी पंजीकृत अस्पताल


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