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समाज की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभा रही युवा टोली

शाहनवाज अली गाजियाबाद युवा किस तरह समाज की तस्वीर को बदलने में अहम भूमिका निभा सकते हैं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आरडीसी स्थित गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के नो व्हीकल जोन पार्क में दिख रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Jan 2022 09:44 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jan 2022 09:44 PM (IST)
समाज की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभा रही युवा टोली
समाज की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभा रही युवा टोली

शाहनवाज अली, गाजियाबाद : युवा किस तरह समाज की तस्वीर को बदलने में अहम भूमिका निभा सकते हैं, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आरडीसी स्थित गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के नो व्हीकल जोन पार्क में दिख रहा है। यहां युवाओं ने झुग्गी-झोपड़ी से आकर बच्चों के हाथों से भीख का कटोरा और कूड़ा बीनने का थैला लेकर उन्हें कापी, किताब और पैंसिल थमाई है।

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युवाओं की इस मुहिम का सकारात्मक असर भी दिख रहा है। यहां रोजाना सुबह और शाम बच्चों की एक से दो घंटे क्लास लगती है। करीब 20 से 30 बच्चे नियमित शिक्षा लेने आ रहे है। छोटी उम्र के बच्चों को शिक्षित करने की इस मुहिम को युवाओं ने आंचल नाम दिया है। मुहिम से कई युवा जुड़े है और सभी युवा नाम की बजाय काम करने में विश्वास रखते हैं। उनका कहना है कि शुरुआत में उन्होंने अपनी जेब खर्च से बच्चों को पढ़ाना आरंभ किया, परंतु अब इस मुहिम में कुछ लोग कापी, किताब और पैंसिल देकर सहयोग के लिए आगे आने लगे हैं। बहुत से लोग इन्हीं बच्चों के बीच आकर अपना जन्मदिन मनाते हैं। केक काटते हैं और खुशी के इन पलों को यादगार बनाते हुए इन बच्चों के लिए कापियां, किताबें, पैंसिल व खाने-पीने की वस्तुएं लाकर दे देते हैं।

मुहिम में शामिल युवा

सौम्य सिंह : बीटेक छात्र

अमित अंश : यूपीएससी तैयारी

सोनल त्यागी : एलएलबी छात्रा

आशुतोष शारदा : एम काम छात्र

आयोनिका भट्टाचार्य : बीए छात्रा

आर्यन रुहेला : बीए छात्र

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सिखा रहे अच्छी आदतें भी

बच्चों को शिक्षा के साथ साथ रोजाना नहाने, साफ कपड़े पहनने, टूथ ब्रुश, खाना हाथ धोकर खाने और फिर से हाथ धोने, जहां रहते हैं वहां सफाई के अलावा अपने आसपास सफाई का पाठ भी पढ़ाने के साथ अच्छी आदतें सिखाई जा रही है। स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से योगा भी कराया जाता है।

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वर्जन..

उत्तराखंड से यहां बीटेक करने आया, लेकिन देखा कि शहर में छोटे बच्चे भीख मांगते हैं। उन्हें कई बार ऐसा करने से टोका, लेकिन अगली बार फिर से वह कटोरा लिए ही मिले। ऐसे बच्चों को पढ़ाकर ही भले-बुरे की पहचान कराई जा सकती है। यही सोचकर टाफी, कापी-किताब और पैंसिल का लालच देकर पार्क में बैठा। यह देख मेरे साथी भी आगे आए और ऐसे बच्चों के लिए एक मुहिम शुरू हुई।

- सौम्य सिंह, आंचल वेलफेयर फाउंडेशन।


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