कंक्रीट के जंगलों में घोंसला तलाश रहीं गौरैया
मदन पांचाल गाजियाबाद 2011 में शहर की आबादी करीब 18 लाख थी तो शहर में प्रतिव्यक्ति छह गौरै
मदन पांचाल, गाजियाबाद: 2011 में शहर की आबादी करीब 18 लाख थी तो शहर में प्रतिव्यक्ति छह गौरैया का अनुपात था। वर्तमान में यह अनुपात घटकर तीन रह गया है। गौरैया बचाने के लिए अगर पूरजोर कोशिश नहीं की गई तो यह संख्या घटकर दो या एक तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। लगातार घटती संख्या
जिले में 1993 में 1,60,351 पक्षी थे, लेकिन 2019 में इनकी संख्या घटकर 52,555 रह गई है। इनमें गौरैया की संख्या बहुत कम है। मास्टर प्लान-2031 के स्वरूप में आने पर संख्या और कम हो जाएगी। एक दो पर्यावरण प्रहरियों ने घोंसला अभियान छेड़कर गौरैया बचाने का प्रयास किया, लेकिन लोगों ने घोंसले तोड़ डाले। तुलसी, अनार और नीम का पेड़ पहली पसंद
गौरैया वैसे तो सभी पेड़ों पर घोंसला बना लेती हैं, लेकिन उनकी पहली पसंद अनार, बेर, नीम, तुलसी और सदाबहार का पेड़ है। इसके अलावा कनेर, गुलाब की झाड़ियां, मेहंदी, पीपल और सहतूत के पेड़ पर भी गौरैया का वास होता है।
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गौरैया दिवस
गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए दुनिया भर में हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। शहर के बदलते हालात के कारण शहर छोड़कर गौरैया गांव की तरफ उड़ान भर रहीं हैं। हालांकि गौरैया को गांवों में भी बचाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि अब फसलों पर कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल होने से इनकी मौत हो जाती है।
विलुप्त होने के पीछे कई कारण
जिले में गौरैया की घटती संख्या के कई कारण है। बदलती जीवन शैली के चलते अब कच्चे एवं छप्परनुमा घरों की जगह बहुमंजिला इमारतों में लोग रहने लगे हैं। बिजली और मोबाइल टावरों के लगने से रेडिएशन बढ़ा है। प्रदूषण तेजी से खतरनाक श्रेणी में पहुंच रहा है। कीट-पतंगे खत्म होते जा रहे हैं। खेती कम हो रही है। गौरैया मानव बस्तियों में रहना पसंद करती हैं। खेती जहां होती हैं वहां गौरैया जरूर वास करती है। अनाज का दाना खाकर घोंसले में रहने वाली गौरैया की संख्या कम होने से साफ पता चल जाता है कि उस क्षेत्र का ईको सिस्टम कमजोर है।
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एक सर्वे के अनुसार रेडिएशन के बढ़ते दबाव के कारण गौरैया विलुप्त हो रही हैं। घटते हरित क्षेत्रों की वजह से भी गौरैया कम हो रहीं हैं। गौरैया संरक्षण अभियान के तहत शहर के अधिकांश सरकारी कार्यालयों, आवासों और कालोनियों के गेटों पर कृत्रिम घोंसले लगाए हैं। लोग जागरूक कम हो रहे हैं।
- विजयपाल बघेल, पर्यावरण प्रहरी
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गौरैया बचाने के लिए हर व्यक्ति को छतों एवं आंगन में दाना डालना चाहिए। पानी रखना चाहिए। घोंसला बनाने के लिए अलग कोने में हरा-भरा क्षेत्र विकसित किया जाना चाहिए। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 50 स्वयं सेवकों की टीम बनाकर गौरैया संरक्षण को लेकर अभियान चलाया जाएगा। जहां पर चिडि़यों की चहचहाट सुनाई देगी। वहीं पर गौरैया संरक्षण केंद्र बनाने पर विचार होगा। इसके लिए हर व्यक्ति को पक्षी प्रेमी होना बहुत जरूरी है। पर्यावरण संतुलन के लिए गौरैया का मानव जीवन में बरकरार रहना बहुत जरूरी है।
- डॉ. जितेंद्र नागर, पर्यावरण प्रहरी
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वन्य क्षेत्रों में गौरैया संरक्षण का सतत प्रयास किया जा रहा है। विभागीय टीमों द्वारा छोटी-छोटी पाकेट में हरा भरा क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। गांव में पेड़ों पर ही नहीं घर की छतों में भी गौरैया घोंसला बना लेती हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए विलुप्त हो रहीं गौरैया को बचाना बहुत जरूरी है। गर्मी शुरू हो गई हैं। ऐसे में मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर रखने से गौरैया पानी पीने जरूर आती हैं।
-दीक्षा भंडारी, प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी प्रभाग गाजियाबाद