किसी ने अस्पताल के लिए जमीन दी तो किसी ने जिदगी में किया उजाला
मदन पांचाल गाजियाबाद आजादी के बाद जिले में जब कोई अस्पताल नही था तो चौधरी छबीलदास परिवार न
मदन पांचाल, गाजियाबाद
आजादी के बाद जिले में जब कोई अस्पताल नही था तो चौधरी छबीलदास परिवार ने 13 एकड़ जमीन दान देकर म्युनिसिपिल अफसरों के साथ मिलकर इस जमीन पर अस्पताल बनवाया था। वर्तमान में जिला एमएमजी अस्पताल में रोज पांच हजार मरीजों का इलाज होता है। कोरोना जांच के लिए आरटी-पीसीआर लैब है तो इमरजेंसी सेवा 24 घंटे जारी है। चौधरी छबीलदास परिवार के नजदीकी पार्षद हिमांशु लव बताते हैं कि सेठ मुकंदलाल दानवीर थे। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बीमार लोगों को समय पर इलाज मिले इसके लिए वह अंतिम क्षणों तक दिल खोलकर दान करते रहे। उनके बेटे सेठ अशोक कुमार बताते हैं कि कराहते बीमार लोगों को देखकर उनका दिल पसीज जाता था। जमीन दान दिए जाने के चलते ही सरकारी रिकार्ड में इसका नाम मुकंदलाल म्युनिसिपिल गवर्नमेंट (एमएमजी) अस्पताल है। इसका शिलान्यास 17 अक्टूबर 1954 को प्रदेश के तत्कालीन रसद एवं स्वास्थ्य मंत्री चन्द्रभान गुप्ता ने किया था। भवन बनने के बाद इसका उदघाटन दो साल बाद 5 जनवरी 1956 को हुआ था। 50 बेड के अस्पताल में शुरू में केवल पांच चिकित्सक तैनात किए गए थे। 67 साल बाद इस अस्पताल में 27 चिकित्सकों समेत डेढ़ सौ का स्टाफ और 230 बेड हैं। यहां मानसिक रोगियों की काउंसिलिग भी होती है। जो इच्छा हो वह दान दे दो
आरएसएस के सक्रिय पदाधिकारी रहे स्व.कमलेश कुमार के संघर्ष को शहर भुला नहीं सकता है। उन्होंने पांच दोस्तों की टीम बनाकर आंखों में रोशनी का रंग भरने का बीड़ा उठाया तो पांच से पचास और वर्तमान में पांच सौ लोग उनके मिशन को निरंतर सहयोग करते हुए आगे बढ़ा रहे हैं। उनके सहयोगी विजय कुमार बताते हैं कि वरदान सेवा संस्थान ने अब तक 16 लाख नेत्र रोगियों का इलाज कराया है। 80 हजार मरीजों की आंखों (मोतिया बिद )का निश्शुल्क आपरेशन कराया जा चुका है। 90 हजार मरीजों का आपरेशन ट्रस्ट के माध्यम से रियायती दरों पर किया गया है। वरदान सेवा संस्थान की पहल पर आंखों की फील्ड सर्जरी खत्म की गई है। संस्था हर महीने गांवों में शिविर लगाकर आपरेशन के लिए सूची बनाती है और फिर राजनगर स्थित वरदान अस्पताल में आपरेशन कराने के बाद सुरक्षित घर तक मरीजों को पहुंचाने के साथ ही निगरानी टीम द्वारा फालोअप किया जाता है। इच्छा के अनुसार समाज के लोगों से वह सहयोग मांगकर लोगों की जिदंगी में उजाला कर रहे हैं।
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गांधीनगर में छोटा सा क्लीनिक खोलकर लोगों का इलाज करते-करते डा. दिनेश अरोड़ा ने शहर में लोगों के स्वास्थ्य को लेकर एक नहीं दो-दो बड़े अस्पताल स्थापित किए हैं और इस क्षेत्र में अत्याधुनिक संसाधनों का उपयोग करते हुए सतत काम कर रहे हैं। कोरोना महामारी में भी सबसे अधिक संक्रमितों का इलाज उनके द्वारा संचालित यशोदा अस्पताल में ही किया गया। स्थिर और आरामदायी सरकारी नौकरी को छोड़कर स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले 77 वर्षीय डा. दिनेश अरोड़ा बताते हैं कि कराहते मरीज की मुस्कान देखकर उनके दिल को तसल्ली मिलती है। उनकी सास यशोदा का निधन कैंसर से होने पर ही उनके नाम से अस्पताल खोला गया। अब दो अस्पताल और खोल दिए हैं। उनका कहना है कि यशोदा संस्था के माध्यम से गांवों और शहरों में निश्शुल्क दवाइयां वितरित करने और स्वास्थ्य जांच शिविरों का आयोजन कराते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में हुई प्रगति का सफर
- पहले एक भी अस्पताल नहीं था। अब तीन जिला अस्पताल, चार सीएचसी, 65 पीएचसी और 118 उपकेंद्र हैं।
- जिले में 270 नर्सिंग होम और अस्पताल पंजीकृत हैं।
- 308 निजी पैथालाजी लैब हैं।
- 802 निजी चिकित्कसों के क्लीनिक हैं।
- पहला यूनानी मेडिकल कालेज बन रहा है। तीन निजी मेडिकल कालेज हैं।
- 36 आयुर्वेदिक और 28 होम्योपैथिक डिस्पेंसरी हैं।
- श्री जग्गननाथ चैरिटेबल कैंसर अस्पताल है।