मतदान से पहली रात नहीं आई थी नींद, पर्व समझकर डालते थे वोट
मदन पांचालगाजियाबाद आजादी के बाद देश में पहली बार 1952 में विधानसभा चुनाव हुए तो मतदान से पहली रात को नींद नहीं आई थी। पूरी रात करवटें बदलते रहे। वोट डालने का उत्साह ऐसा था कि अगले दिन सुबह को उठते ही सीधे प्राथमिक स्कूल में बनाए गए मतदान केंद्र को देखने के लिए दौड़ पड़े। वापस आकर नहाए और फिर नए कपड़े पहनकर साथियों के संग वोट डालने गए।
मदन पांचाल,गाजियाबाद: आजादी के बाद देश में पहली बार 1952 में विधानसभा चुनाव हुए तो मतदान से पहली रात को नींद नहीं आई थी। पूरी रात करवटें बदलते रहे। वोट डालने का उत्साह ऐसा था कि अगले दिन सुबह को उठते ही सीधे प्राथमिक स्कूल में बनाए गए मतदान केंद्र को देखने के लिए दौड़ पड़े। वापस आकर नहाए और फिर नए कपड़े पहनकर साथियों के संग वोट डालने गए।
पटेलनगर में रहने वाले 94 वर्षीय सीताराम शारीरिक तौर पर थोड़े कमजोर हो चले हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही उनका जोश किसी जवां वोटर से कम नहीं है। वह बताते है कि अपनी वोट को देखने के लिए वह कई बार मतदान केंद्र पर गए और अब वोट डालने को तैयार है। पहले विधानसभा चुनाव से लेकर आज तक लगातार वोट डाल रहे हैं। पहली बार गाजियाबाद विधानसभा क्षेत्र के गांव में निडोरी में वोट डाला तो बेहद खुशी हुई थी, लेकिन कोरोना को दो बार मात देने के बाद इस बार वोट डालने को लेकर वह पहले से भी अधिक उत्साहित हैं। अभी से ही वोटर लिस्ट में अपना नाम खुद चेक किया है। साथ ही बनाए गए बूथ का भी वह जायजा ले चुके हैं। कभी बेटे के साथ तो कभी पोते के साथ मतदान को लेकर चर्चा करते रहते है।
सीताराम बताते हैं कि जब पहला चुनाव हुआ तो महिलाएं गीत गाते हुए वोट डालने जाती थी और पुरुष नगाड़े बजाते हुए बूथ तक जाते थे। महिलाएं पहले बिना किसी के कहने पर वोट डाली जाती थी, लेकिन दौर बदलने के साथ ही अब महिला ही नहीं, पुरुष मतदाता भी नेताओं के आग्रह करने के बाद लोग वोट डालने जाते हैं। उनका कहना है कि मताधिकार का निष्पक्ष होकर प्रयोग करना चाहिए।