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संस्कारशाला : अधिकारों को पाने के लिए कर्तव्यों का निर्वहन जरूरी

स्वाधीनता जब स्वप्न थी तो उसे पाने के लिए हर भारतीय ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई। उन्होंने न सिर्फ अपना जीवन समर्पित किया बल्कि देश की स्वाधीनता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। वे सभी बेहतर भारत तथा समरस भारत के अपने आदर्शों व संकल्पों पर अडिग रहे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 09:55 PM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 09:55 PM (IST)
संस्कारशाला : अधिकारों को पाने के लिए कर्तव्यों का निर्वहन जरूरी
संस्कारशाला : अधिकारों को पाने के लिए कर्तव्यों का निर्वहन जरूरी

स्वाधीनता जब स्वप्न थी तो उसे पाने के लिए हर भारतीय ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई। उन्होंने न सिर्फ अपना जीवन समर्पित किया, बल्कि देश की स्वाधीनता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। वे सभी बेहतर भारत तथा समरस भारत के अपने आदर्शों व संकल्पों पर अडिग रहे। स्वाधीनता के इतने वर्षों बाद भी हम आजादी से जीने का अधिकार तो स्वत: पा लेते हैं, वहीं हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए दूसरों की ओर देखना शुरू कर देते हैं। अधिकारों को पाने के लिए कर्तव्यों का निर्वहन भी जरूरी है। यह सच हैं, देश से हम और हमसे देश बनता हैं, लेकिन क्या आज हम उन वीरों के संघर्ष और बलिदान से मिली स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों का पालन कर रहे हैं? यह प्रश्न सभी के मन में उठना चाहिए।

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आज हम विश्वपटल पर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। जहां एक ओर आज भी देश में कई दूरदराज क्षेत्रों में बहुत से लोग अंधविश्वास, जातिवाद, रूढि़वादिता, भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियां से ग्रसित हैं, वहीं दूसरी ओर बड़े-बड़े शहरों में भी कुछ लोगों की बीमार मानसिकता के चलते छेड़छाड़, लूट-मार, महिला उत्पीड़न जैसे घिनौने अपराध देखने को मिलते हैं। तब यह सोचना हमारी नैतिक जिम्मेदारी बन जाती कि स्वाधीनता का यह कैसा अर्थ हमने लगा लिया हैं?

हम सबकी बड़ी जिम्मेदारी है कि हमारा देश जिस प्रगति के पथ पर अग्रसर है, उस पथ पर ले जाते हुए हमें राष्ट्र को वसुधैव कुटुंबकम की भावना से भी ओत- प्रोत करना होगा। स्वाधीन भारत के लिए संघर्ष करते हुए जो स्वप्न हर एक भारतीय ने देखा था, उसे साकार करना होगा। जहां अंधविश्वास, रूढि़वादिता, छेड़छाड़, महिला उत्पीड़न जैसी बुराइयां न हों। सभी के मन में सौहा‌र्द्र, समन्वय, सद्भावना का भाव हो। यह शिक्षा और नैतिक मूल्यों से ही संभव है। यह गुण मनुष्य अपने भीतर शिक्षा से गृहीत करता है। आज नई शिक्षा नीति जो हमारे देश में लागू की जा रही है, उसमें भी नैतिक मूल्यों पर विशेष बल दिया जा रहा है।

सर्वपल्ली राधाकृष्ण जी ने कहा था कि मानवता को उन सभी नैतिक जड़ों तक हमें वापस ले जाना चाहिए, जहां से अनुशासन और स्वतंत्रता का जन्म होता है। प्रत्येक बच्चा जो शिक्षा आज ग्रहण करेगा, वही उसकी जीवन की रूपरेखा को निर्देशित करेगी। बच्चों तथा युवाओं में मानवीय भावनाएं व संवेदनशीलता पैदा करने के लिए उन्हें भारतीय आदर्शों, मानवीय मूल्यों व संस्कारों से जोड़ना आवश्यक है। सही मायने में हम तभी स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों का पालन कर पाएंगे।

डा.कल्पना माहेश्वरी

प्रधानाचार्या,

महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल

सेक्टर 13, वसुंधरा , गाजियाबाद।


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