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थैलेसीमिया से मुकाबला करते-करते कोरोना से हार गईं ज्योति, जन्मदिन से एक दिन पहले दुनिया को कहा अलविदा

थैलेसीमिया से पीड़ित ज्योति कोरोना संक्रमित भी हो गईं थीं। घर पर ही उनका कोरोना का इलाज चल रहा था। बृहस्पतिवार देर रात वह भीषण रूप से खांसने लगीं । अस्पताल जाने के क्रम में ही उनकी मृत्यु हो गई।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 08 May 2021 01:15 PM (IST)Updated: Sat, 08 May 2021 05:10 PM (IST)
थैलेसीमिया से मुकाबला करते-करते कोरोना से हार गईं ज्योति, जन्मदिन से एक दिन पहले दुनिया को कहा अलविदा
ज्योति अरोड़ा ने 2007 में फ्रीलांस लेखक के रूप में करियर की शुरुआत की थी।

गाजियाबाद [दीपा शर्मा]। 'थैलेसीमिया'  जैसी लाइलाज बीमारी से मुकाबला करते हुए लेखिका ज्योति अरोड़ा आखिरकार कोरोना से हार गईंं। बृहस्पतिवार देर रात तबीयत बिगड़ने पर ज्योति को घर वाले सर्वोदय अस्पताल ले गए, लेकिन डाॅक्टरों ने बताया कि उनकी मौत हो चुकी है। आज 8 मई को ज्योति का जन्म दिन भी है और थैलेसीमिया दिवस भी है। मां कौशल अरोड़ा कहतीं है परमेश्वर उसे अगले जन्म में थैलेसीमिया से मुक्त बेहतर जिंदगी देना।

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घर पर ही चल रहा था इलाज

'थैलेसीमिया' से पीड़ित ज्योति कोरोना संक्रमित भी हो गईं थीं। घर पर ही उनका कोरोना का इलाज चल रहा था। बृहस्पतिवार देर रात वह भीषण रूप से खांसने लगीं । इससे साथ में सोईं मा कौशल अरोड़ा की नींद खुल गई । उन्होंने देखा कि मुंह और नाक से खून भी निकल रहा है। उस समय रात के दो बज रहे थे। घर वाले सर्वोदय अस्पताल ले गए लेकिन डाॅक्टरों ने देखते ही कहा कि वह नहीं रहीं।

बीमारी के बावजूद जीने का हौसला तो बचपन से ही

'थैलेसीमिया' जैसी लाइलाज बीमारी के बावजूद ज्योति अरोड़ा में जीने का हौसला तो बचपन से ही कम नहीं था, लेकिन स्नातक और परास्नातक में अंग्रेजी साहित्य ने उन्हें जीने की राह दिखा दी थी । इसी दौरान उन्होंने लेखिका बनने का फैसला किया। ज्योति की अंग्रेजी में पांच किताबें प्रकाशित हो चुकी थी। वह छठी किताब लिख रही थी जो अधूरी रह गई।

तीन महीने की उम्र में ही पता चली गंभीर बीमारी

चिरंजीव विहार की 42 वर्षीय ज्योति अरोड़ा 'थैलेसीमिया' से पीड़ित थीं तीन महीने की उम्र में रोग का पता चल गया था। जब वह तीन साल की थी तभी ज्योति की देखभाल के लिए उनकी मां कौशल अरोड़ा ने दिल्ली विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़ दी। कक्षा सात तक उन्होंने स्कूल से पढ़ाई की, लेकिन बीमारी की वजह से उनकी बार-बार अचानक बिगड़ती तबीयत को देख माता-पिता ने स्कूल न भेजने का फैसला लिया। इसके बाद ज्योति घर पर रह कर पढ़ाई करने लगीं थीं। बिना ट्यूशन और स्कूल के ही उन्होंने अच्छे अंकों के साथ 10वीं व 12वीं की परीक्षा पास की। 30-35 साल पहले थैलेसीमिया की कागरगर दवाएं और इंजेक्शन नहीं था। वह समय उनके लिए कठिन जरूर था, लेकिन माता-पिता के सहयोग से उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा। अंग्रेजी विषय के साथ स्नातक में दाखिला लिया। पिता ओमप्रकाश अरोड़ा 2006 में एनटीपीसी से रिटायर हो गए। ज्योति की देखभाल के लिए मां पहले ही नौकरी छोड़ चुकी थीं।

2007 में फ्रीलांस लेखक के रूप में करियर की थी शुरुआत

ज्योति अरोड़ा ने 2007 में फ्रीलांस लेखक के रूप में करियर की शुरुआत की थी। ब्लाग लेखन में 2011 में सैमसंग मोबिलर का खिताब अपने नाम किया। 2012 में पहला उपन्यास 'ड्रीम्स सेक' लिखा। यह प्रेम कहानी दिव्यांगों के सामने आने वाली कठिनाइयों और पूर्वाग्रहों पर केंद्रित है। 2014 दूसरा उपन्यास 'लेमन गर्ल' आया। इसमें महिलाओं के ऊपर होने वाले अपराधों के बारे में बताया गया है। लेखन के लिए उन्हें दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी पुरस्कृत कर चुकी थीं। 2016 में गणतंत्र दिवस की परेड के लिए देश की सौ महिलाओं में उन्हें चुना गया। 2017 में ''यू केम लाइक होप' और 2019 में 'जस्ट रोमांस' किताब लिखीं। यह सात प्रेम कहानियों का संग्रह है। इसके अलावा 2020 में 'हाउ टू राइट शार्ट स्टोरीज लाइक ए प्रो' किताब लिखी।

हर प्राणी ईश्वर की शानदार रचना

कुछ महीने दैनिक जागरण से बातचीत में ज्योति अरोड़ा ने कहा था कि हम जैसे भी है। ईश्वर ने जरूर किसी उद्देश्य के लिए किसी न किसी विशेषता के साथ भेजा है। जरूरत है अपने को पहचानने की और मन में दृढ़ निश्चय की। कोई भी परेशानी दृढ़ निश्चय के आड़े नहीं आती हैं। किसी भी हालात में कभी खुद को कमजोर या बेकार न समझें।


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