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समाजशास्त्रियों ने बताया आखिर क्यों परिवार के साथ सुसाइड कर रहे लोग, ऐसे करें बचाव

मनोचिकित्सक डॉ. संजीव त्यागी कहते हैं कि किसी भी विकट समस्या में अपनों का साथ सबसे बड़ी ताकत है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 06:49 PM (IST)Updated: Wed, 04 Dec 2019 07:04 PM (IST)
समाजशास्त्रियों ने बताया आखिर क्यों परिवार के साथ सुसाइड कर रहे लोग, ऐसे करें बचाव
समाजशास्त्रियों ने बताया आखिर क्यों परिवार के साथ सुसाइड कर रहे लोग, ऐसे करें बचाव

गाजियाबाद [सौरभ पांडेय]। 'मत पूछ मेरी जिंदगी में क्या कमी रहती है, चेहरे पर मुस्कान और आंखों में नमी रहती है...'। किसी शायर की ये पंक्तियां शायद दिल्ली-एनसीआर के लोगों की चकाचौंध भरी जिंदगी पर सटीक बैठती है। भले ही यहां लोग आलीशान गगनचुंबी इमारतों में रहते हों, एसी गाड़ियों में घूमते हों, रेस्टोरेंट में खाना खाते हों।

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इसके बावजूद कुछ ऐसा है, जो उनके जीवन के खालीपन को भरने नहीं देता। समाजशास्त्री कहते हैं कि अगर हम खुद को चकाचौंध की अंधी दौड़ का हिस्सा नहीं बनाते हैं तो जीवन सहज-सरल हो सकता है।]

गाजियाबाद की कुछ घटनाएं स्याह सच्चाई से रूबरू करवाती हैं

गाजियाबाद की कुछ घटनाएं ऐसी हैं, जो लोगों को दिल्ली-एनसीआर की स्याह सच्चाई से रूबरू करवाती हैं। पहली घटना 20 नवंबर, 2013 की है। इंदिरापुरम की ऑरेंज काउंटी सोसायटी में हैंडलूम कारोबारी अंकुर गुप्ता ने पत्नी सरिता और दस साल के बेटे की गोली मारकर हत्या करने के बाद अपनी भी जीवन लीला समाप्त कर ली थी।

दूसरी घटना इंदिरापुरम के ही ज्ञान खंड की है। 21 अप्रैल, 2019 की रात यहां इंजीनियर सुमित कुमार पत्नी अंशु बाला और तीन बच्चों की गला रेतकर हत्या करने के बाद खुदकशी करना चाहता था, पर पुलिस ने दबोच लिया। दोनों मामलों में आर्थिक तंगी ही वजह थी। कुछ दिन पूर्व वसुंधरा में महिला ने आर्थिक तंगी के चलते दो बच्चों समेत जहर खा लिया था। हालांकि, समय पर चिकित्सा मिलने से उन्हें बचा लिया गया था।

समाजशास्त्रियों ने बताया सुसाइड करने की क्या है वजह

समाजशास्त्रियों की मानें तो दिल्ली-एनसीआर के लोगों के बीच अंधाधुंध रुपये कमाने और खुद को बड़ा दिखाने की अघोषित दौड़ चल रही है। इस दौड़ के बीच खुद को बनाए रखने का मानसिक दबाव इतना हो जाता है कि लोग खुद को परिवार व खुद को खत्म करने जैसे असामाजिक कदम तक उठा लेते हैं। समाजशास्त्री प्रो. दिनेश कुमार जैन बताते हैं छोटे शहरों और गांव से आने वाले लोग जब दिल्ली-एनसीआर की चमक भरी जिंदगी देखते हैं तो उनके लिए शुरुआत में जीवन को बदलना मुश्किल हो जाता है।

ऐसे में कई बार लोग कर्ज लेकर अथवा गांव की जमीन बेचकर यहां रहने लगते हैं, खुद को स्थापित भी कर लेते हैं, लेकिन दिक्कत तब होती है जब जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। इसके लिए वे तैयार नहीं होते, वापस पुरानी जिंदगी में भी नहीं लौटना चाहते और आत्महत्या जैसे कायराना कदम उठा लेते हैं। हालांकि, इससे बचना बेहद आसान है। जब कभी नकारात्मक सोच हावी हो तो उस बुरे वक्त के बारे में सोचें, जो आपने पूर्व में बिताया है। सोचें कि उससे किस तरह बाहर निकले थे। यह आपमें दोबारा सकारात्मक ऊर्जा भरेगा और आप समस्या से बाहर होंगे।

अपनों से करें परेशानियां साझा, इससे निकलने का ढूंढ़ें रास्ता

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. संजीव त्यागी कहते हैं कि किसी भी विकट समस्या में अपनों का साथ सबसे बड़ी ताकत है। अक्सर देखा जाता है कि परिवार परेशानी में होता है तो उसके मुखिया की सोच सभी पर हावी हो जाती है। ऐसे में अपनों से परेशानी साझा करनी चाहिए।

अगर मुखिया नकारात्मक सोच रखता है तो परिवार के अन्य लोगों को विरोध करना चाहिए। ऐसे विकल्प तलाशने चाहिए जो समस्या से बाहर निकाल सकें। उन अपनों को समस्या बताएं, जो मदद के लिए आगे आ सकते हैं। आत्महत्या जैसी सोच का तुरंत विरोध करें।

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