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बदलाव लाने के लिए बड़े पद और पावर नहीं इच्छाशक्ति की जरूरत, महाराष्ट्र के इस एसडीएम ने किया साबित

वर्ष 2017 बैच के एक आइएएस मनुज जिंदल ने नक्सलवाद से ग्रसित महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की एक छोटी- सी तहसील में बतौर एसडीएम उन्होंने वन अधिकारों के लिए वो काम किया है जिसकी गूंज इन दिनों दिल्ली तक सुनाई पड़ रही है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 08 Apr 2021 02:46 PM (IST)Updated: Thu, 08 Apr 2021 02:46 PM (IST)
बदलाव लाने के लिए बड़े पद और पावर नहीं इच्छाशक्ति की जरूरत, महाराष्ट्र के इस एसडीएम ने किया साबित
गढ़चिरौली में आदिवासियों को वन पट्टा वितरित करते मनुज जिंदल (बीच में)। सौ. जिंदल परिवार

सौरभ पांडेय, साहिबाबाद (गाजियाबाद)। देश के लिए काम करने का मौका सबको नहीं मिलता, जिन्हें मिलता है उन्हें कुछ कठिनाइयां भी उठानी पड़ती हैं, लेकिन समाज को बदलने वालों को हमेशा कुछ अलग करना पड़ा है। मुङो गर्व है कि मुझे देश के ग्रास रूट लेवल पर काम करने का मौका मिला है। उन लोगों के विकास के लिए हर संभव प्रयास करूंगा जो समाज का एक अलग-थलग हिस्सा हैं। उन्हें मुख्य धारा में लाने का प्रयास जारी रहेगा।

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यह कहना है कि गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी मनुज जिंदल का। मनुज वर्तमान में महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित जिले गढ़चिरौली की इतापल्ली और भामरागढ़ दो तहसील के एसडीएम हैं। कोरोना महामारी के दौरान जहां पूरा देश रुका हुआ था, वहीं मनुज ने दोनों तहसील के 296 गांव के करीब दो लाख लोगों को वन अधिकार दिलाए। दोनों तहसील महाराष्ट्र में सौ फीसद वन अधिकार देने वाली तहसील बन गईं हैं। वर्ष 2017 बैच के आइएएस मनुज जिंदल इंदिरापुरम की शिप्रा कृष्णा विस्टा सोसायटी के निवासी हैं। उनके पिता थान सेन जिंदल सिंडिकेट बैंक से रिटायर्ड हैं। दो छोटे भाई हैं और दोनों शिक्षा क्षेत्र का एक स्टार्टअप चला रहे हैं, जिसमें वह लाखों बच्चों को पढ़ा रहे हैं। मनुज ने अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स ऑनर्स किया। मल्टीनेशनल बैंक में इन्वेस्टमेंट बैंकर बन गए।

जीवन का टर्निंग प्वाइंट: वर्ष 2015 में मनुज कुछ सामाजिक संस्थाओं के साथ जुड़े और झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने लगे। इस दौरान कुछ बच्चों के माता-पिता से मिले तो उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने से इनकार कर दिया, क्योंकि आय के लिए वे बच्चों से काम करवाना चाहते थे। मनुज बताते हैं तभी से वंचितों के लिए कुछ करने का मन बनाया। जब मैंने ठाना कि मैं आइएएस की परीक्षा दूंगा और उसको पास करूंगा, क्योंकि वो जुनून था जिसके कारण मैं यहां पहुंच सका। नवंबर 2019 में उन्हें पहली पोस्टिंग महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावी गढ़चिरौली जिले में मिली। उन्हें भामरागढ़ और इतापल्ली दो तहसील का एसडीएम बनाया गया। दोनों ही नक्सल प्रभावित इलाका है।

बच्चा भी बदल सकता है सिस्टम: मुझे लगता है कि सिस्टम में हर नागरिक बदलाव ला सकता है। अब इसे ही लीजिए। एक ऐसा बच्चा, जिसने आदिवासी स्कूल में पढ़ाई की है। बिना प्रशिक्षण के उसने राष्ट्रीय स्तर की चित्रकारी प्रतियोगिता जीत ली।

ऐसे रहे गढ़चिरौली के अनुभव: बकौल मनुज गढ़चिरौली में मैंने हमारे देश व सभ्यता के बारे में तो जाना ही, आदिवासियों की समस्याएं, उनके निवारण और नक्सल समस्या के बारे में बहुत कुछ सीखा। पढ़ाई का स्तर कैसे बढ़ाना है? स्वास्थ्य सेवाएं कैसे पहुंचानी है? वन अधिकार दिलाना पहला लक्ष्य था, सफलता पाकर अच्छा लग रहा है।

अभी भी कई गांव नहीं देख पाया: मनुज बताते हैं कि 26 जनवरी को मैं बिनगुंडा गांव जाना चाहता था, लेकिन वहां नक्सलियों की मौजूदगी के कारण में नहीं जा पाया। इसी तरह से बहुत सारे गांव ऐसे हैं जहां मैं जाना चाहता था, लेकिन नहीं जा सका। अभी भी कई गांव देख नहीं पाया हूं। उम्मीद है वहां भी पहुंच पाऊंगा। वन पट्टों की स्थिति: आदिवासियों की मुख्य अड़चन है कि जिन जंगलों में वह हजारों सालों से रहते हैं, जो जंगल उनका घर है, उन्हीं जंगलों की संपदा का उपयोग नहीं कर पाते, क्योंकि उस पर काफी प्रतिबद्धताएं हैं। वर्ष 2005 में भारत सरकार ने वन पट्टों को लेकर अधिनियम पास किया था। इसके अनुसार उनको सामूहिक वन पट्टे अगर मिल जाए तो जंगल में होने वाली काफी सारी जड़ी बूटी, बांस, वहां पर ही तालाबों में होने वाली मछली इत्यादि का प्रयोग कर वे अपनी आजीविका चला सकते हैं। पोस्टिंग की शुरुआत में ही यही सबसे बड़ी समस्या दिखी तो फाइलें खंगाली और लोगों को इसका लाभ दिलवाने का प्रयास शुरू किया। सामूहिक वन पट्टे का काम जारी है। भामरागढ़ और इतापल्ली में वन पट्टों का काम सौ प्रतिशत पूरा हो गया है।

चुनौतियों तो मिली हिम्मत: मनुज कहते हैं बैंकर रहते हुए एयर कंडीशंड कमरों से सीधे नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली की पोस्टिंग मिलना जीवन बदलने जैसा था। दिल-दिमाग ने यही कहा कि इसे ही जीवन का सबसे बड़ा मौका बनाकर सफलता हासिल करनी है।

फिल्म न्यूटन जैसा अनुभव: मनुज ने कहा कि मुझे याद है जब यहां पहली बार ग्राम पंचायत के चुनाव हुए थे तो मेरे सामने यह समस्या थी कि बहुत सारे गांव ऐसे थे जहां आजादी के बाद एक बार भी मतदान नहीं हुआ। नक्सली गांव के लोगों को चुनाव लड़ने और मतदान करने नहीं देते थे। प्रशासन ने जान पर खेलकर हर गांव में चुनाव करवाया। मुझे लगता है कि इससे अच्छा अनुभव तो जीवन में नहीं मिल सकता, क्योंकि हमने संविधान को मजबूत बनाने का बेहतरीन प्रयास किया। यह अनुभव न्यूटन मूवी जैसा रहा।

फलबाग व मुर्गी फार्म बनाना: ऐसा बाग हो, जिसमें आदिवासी फलों की फार्मिग करेंगे। इन्हीं फलों को बाजार में बिक्री कर आजीविका कमा सकेंगे। मुर्गी फार्म भी बनवाए जा सकते हैं। आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स का ट्रेनिंग सेंटर जैसे कई प्रोजेक्ट का लक्ष्य है।


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