Exclusive: अर्जुन अवार्डी संजीव बालियान ने बताया कैसे तय किया क्रिकेट से कबड्डी तक का सफर
भारतीय कबड्डी टीम के पूर्व कप्तान और अर्जुन अवार्डी संजीव बालियान ने खेल करियर की शुरुआत क्रिकेट से की थी। क्रिकेट का जुनून उनपर सिर चढ़कर बोलता था। उनका कबड्डी में आना एक इत्तेफाक रहा। संजीव ने जागरण से विशेष बातचीत की।
गाजियाबाद [शाहनवाज अली]। भारतीय कबड्डी टीम के पूर्व कप्तान और अर्जुन अवार्डी संजीव बालियान ने खेल करियर की शुरुआत क्रिकेट से की थी। क्रिकेट का जुनून उनपर सिर चढ़कर बोलता था। उनका कबड्डी में आना एक इत्तेफाक रहा। गांव में ही एक बार कबड्डी का अभ्यास किया, जिसे देखकर उनके ताऊ के लड़के बिजेंद्र बालियान ने उन्हें कभी क्रिकेट का बल्ला नहीं थामने दिया। स्कूल कबड्डी से भारतीय टीम की कप्तानी तक के सफर और एशियन कप से वर्ल्ड कप कबड्डी में भारतीय टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में उन्होंने महत्पूर्ण भूमिका निभाई। उनसे हुई विशेष वार्ता के प्रमुख अंश...
आप मूलरूप से मुजफ्फरनगर जिले के गांव मुंडभर से हैं और बचपन में आप स्थानीय स्तर के टूर्नामेंट में खूब क्रिकेट खेले। फिर कबड्डी में कैसे आए?
हां, यह बात बिल्कुल सही है मैंने क्रिकेट से ही खेल की शुरूआत की थी। गांव की जूनियर टीम में ही रहकर बल्लेबाजी करता था। गांव में कबड्डी भी खेली जाती थी। मेरे ताऊ के बेटे बिजेंद्र बालियान कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी थें। एक बार मैं उनके साथ कबड्डी का अभ्यास करने लगा। मेरी फुर्ती देख क्रिकेट बंद कराया। कभी क्रिकेट खेलने जाता तो वह मैदान में पहुंचकर स्टंप उखाड़ देते। फिर मेरे साथी खिलाड़ी ही मुझे यह कहकर कबड्डी खेलने भेज देते। उनके सानिध्य में बस कबड्डी ही खेला।
खेलों में परिवार की क्या भूमिका रही। क्या आपके माता-पिता ने आपको खेल में आगे बढ़ाया ?
मेरे पिता मांगेराम बालियान काफी सख्त मिजाज रहे। खेलने के नाम पर गुस्सा होते थे। वह घर के बाहर ही गांव के अन्य लोगों के साथ बैठते थे। उस समय खेलने के लिए घर के पीछे की दीवार या छत से कूदकर जाना पड़ता था। पिताजी की मार का हमेशा डर रहता था। इस बीच घर आकर मां से पूछते थे तो वह झूठ बोलकर पिताजी की डांट से बचाती थीं।
क्रिकेट से कबड्डी में भारतीय टीम के कप्तान तक सफर के बारे में बताइये ?
मैंने पहले स्थानीय स्तर पर वर्ष 1991 से कबड्डी खेलना शुरू किया। स्कूल से प्रदेश स्तर तक खेला। स्थानीय स्तर पर पास के गांव बुटराडा के निकट हुए कबड्डी टूर्नामेंट में भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की टीम भी आई थी। मेरा खेल देखकर टीम कोच ने टीम में लेने और आईटीबीपी में नौकरी का प्रस्ताव दिया। वर्ष 1993 में आईटीबीपी ज्वाइन कर टीम से खेला। इसके बाद भारतीय टीम से एशियन और वर्ल्ड कप में बतौर कप्तान खेला। देश के लिए कई स्वर्ण पदक जीते।
क्या आप मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में खेलों की दशा पड़ोसी राज्य दिल्ली और हरियाणा से खराब है ?
ऐसा नहीं है कि हमारे यहां गांव देहात या शहरों में प्रतिभाओं की कहीं कोई कमी है, लेकिन हमारे यहां ग्रामीण क्षेत्रों में खेल के मैदानों पर कब्जे हैं और इसे लेकर सरकार की ओर से कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। वहीं, जहां स्टेडियम हैं वहां खेल प्रशिक्षक नहीं हैं। खेल प्रतिभाएं बिना प्रशिक्षकों के कैसे निखरेंगी। प्रशिक्षक हैं, लेकिन उनकी नियुक्तियों का रास्ता साफ होना चाहिए।
प्रमुख उपलब्धियां
- वर्ष 1993 में खेल देखकर आइटीबीपी में मिली नौकरी
- वर्ष 1996 में रेलवे टिकट निरीक्षक
- वर्ष 1998 में एशियन कबड्डी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
- वर्ष 2002 में एशियन कबड्डी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
- वर्ष 2004 में कबड्डी वर्ल्ड कप में भारतीय टीम के कप्तानी, मैन आफ द टूर्नामेंट के साथ स्वर्ण पदक
- वर्ष 2004 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित
- वर्ष 2006 में लक्ष्मण अवार्ड से सम्मानित
- वर्ष 2008 में एशियन कबड्डी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
- मौजूदा समय में रेलवे में वरिष्ठ टिकट निरीक्षक के पद पर तैनात
- प्रो कबड्डी लीग में पिंक पैंथर्स जयपुर टीम के मुख्य कोच
- रेलवे कबड्डी टीम के मुख्य कोच
कभी न भूलने वाला यादगार पल
भारतीय कबड्डी टीम के कप्तान रहे संजीव बालियान को खेल जीवन के सबसे अनमोल पल के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उनकी खेल उपलब्धियों पर पूर्व राष्ट्रपति स्व. एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2004 में अपने हाथों से अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया था। यह उनके जीवन का सबसे यादगार पल था। उन जैसा सादा मिजाज उच्च पद पर आसीन व्यक्ति पहली बार देखा।