कोरोना के खौफ से ज्यादा अपनों तक पहुंचने की ललक, सैंकड़ों मील लंबे रास्ते पर चेहरों पर नहीं है शिकन
लॉकडाउन है और कोरोना से बचाव के लिए लोगों को सरकार की ओर से घरों व जो जहां रह रहा है वहीं रहने की सलाह दी गई है। बावजूद इसके सड़कों पर भीड़ है। लोग घर जाना चाह रहे हैं।
गाजियाबाद (शाहनवाज अली)। कोरोना के खौफ ने पलायन का गणित पलटकर रख दिया है। लॉकडाउन ने दिल्ली और एनसीआर में अलग-अलग प्रदेशों से आए दिहाड़ी मजदूरों को घर लौटने पर विवश कर दिया है। वह भूखे प्यासे गर्मी, बारिश,के बीच बस अपनों के बीच लौट जाना चाहते हैं। हजारों लोग सिर पर सामान उठाए गोद में बच्चों को लिए बिना ट्रेन और बस की सुविधाओं के निकल पड़े हैं।
सिर पर बोझ लिए हजारों लोगों के कदम सैंकड़ों मील लंबे सफर की दुश्वारियों की माथे पर कोई शिकन नहीं दिखाई देती। एक लंबे अरसे पहले अकेले और फिर परिवार के साथ यह कदम दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद की ओर बढ़ रहे थे। इनके कदम को कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के चलते अपने घर और गांव की ओर मोड़ दिया है। इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्वी जनपदों के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड़ व नेपाल तक के लोग शामिल हैं। लोग साथियों और परिवार के साथ हाइवे और रेल पटरियों से लौट रहे थे। उन्हें जैसे ही पता चला कि आनंद विहार, कौशांबी और लाल कुआं पर बसों की व्यवस्था है, तो इस ओर काफी संख्या में लोग गाजियाबाद की ओर से पैदल यहां तक पहुंचे। बसों के इंतजार में बैठे लोगों को जैसे ही पता चलता की बस आ गई तो वह बसों की ओर दौड़ पड़ते। व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस को कई बार लाठियां भी फटकारनी पड़ी। सभी का यही कहना था कि वह किसी भी सूरत में बस घर अपनों के बीच पहुंच जाना चाहते हैं।
सरकार से खाना नहीं घर भेजने की मांग
पैदल ही हाइवे पर जा रहे लोगों से जब यह पूछा गया कि सरकार ने उन्हें राशन देने का वादा किया है। तो उनका कहना था कि सरकार उन्हें खाना देने की बजाए हमारे घर लौटने के लिए व्यवस्था करा दे। हम कई-कई लोग यहां कई-कई दिन से कमरे में कैद हैं। खाने के लाले पड़ गए हैं। उन्हें अपने घरों को लौटना है वहां जैसे-तैसे रुखी-सूखी खा लेंगे।
मरने से तो अच्छा है कि धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ेंगे। कोरोना का खतरा बढ़ रहा है। घर पर लोग परेशान हैं। काम धंधा भी रहा नहीं तो अपने घरों की ओर लौटना बेहतर है।
- संजय, बरेली
हमें अपनी थकान और भूख से ज्यादा परिवार की फिक्र है। जैसे-तैसे हम लोग घर तक पहुंच जाएं फिर सोचेंगे कि हमे यहां आना है नहीं। खाने के लाले पड़ जाएंगे ऐसा नहीं सोचा था।
- महेश गोस्वामी, इटावा
काफी समय से यहां काम कर रहे हैं। इस तरह के हालात में कैद होकर रहने से बेहतर है कि अपने घर लौट जाएं। यहां खाने-पीने के अलावा रहने की भी परेशानी होने लगी है।
- विष्णु, नानपारा
घर पहुंचना है रात से बस के इंतजार में बैठे हैं। घर पहुंचना है इसके लिए कितना भी इंतजार या परेशानी उठानी पड़ेगी उठाएंगे।
- राजेंद्र सिंह, इटावा
बसों में सवार लोगों को खतरा
लॉकडाउन है और कोरोना से बचाव के लिए लोगों को सरकार की ओर से घरों व जो जहां रह रहा है वहीं रहने की सलाह दी गई है। बावजूद इसके अचानक सड़कों पर साज-ओ सामान के साथ पैदल लोगों का हुजूम निकलता दिखाई दिया। पैदल चलने में आ रही दुश्वारियों को देखते हुए सरकार की ओर से उन्हें घरों तक पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था करनी पड़ी, लेकिन बिना किसी चेकअप के एक बस की सीट से लेकर छत तक सवार लोगों का बिना दूरी के जाना खतरे को न्यौता है। इनमें संदिग्ध से लेकर कोरोना पीडि़त भी हो सकते हैं, जो बसों में अन्य सवारियों के अलावा जहां जा रहे हैं वहां के लिए भी खतरा बन सकते हैं।
इंदिरापुरम गुरुद्वारा सिंह सभा की ओर से एनएच 9 पर खाने का सामान बांटा गया।