लांस नायक सतपाल सिंह ने लिया था पाक घुसपैठियों से लोहा, इस चोटी पर लहराई थी विजय पताका
लांस नायक सतपाल सिंह ने कारगिल के युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लिया। उन्होंने लड़ते-लड़ते अपने प्राणों को देश के लिए न्यौछावर कर दिया था।
गढ़मुक्तेश्वर [प्रिंस शर्मा]। जिले के गांव लुहारी निवासी लांस नायक सतपाल सिंह ने कारगिल के युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लिया। उन्होंने लड़ते-लड़ते अपने प्राणों को देश के लिए न्यौछावर कर दिया था। आज भी गांव में उनकी प्रतिमा को देखकर ग्रामीणों का सीना फख्र से चौड़ा हो जाता है। बड़े सम्मान से गांव में शहीद का नाम लिया जाता है।
कारगिल की विजयगाथा को शायद ही कोई भूल पाए। इस युद्ध में भारत मां के सपूतों ने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। कारगिल के इस युद्ध में गढ़ क्षेत्र के एक जवान ने भी अपनों प्राणों को न्यौछावार कर दिया था, जिन्हें आज भी तीर्थ नगरी के हर एक युवा से लेकर बुजुर्ग तक सलामी देते हैं।
गांव लुहारी निवासी दलेल सिंह के चार पुत्र थे। इनमें बड़े पुत्र गजेंद्र सिंह फौज में थे। उनसे छोटे पुत्र धर्मवीर सिंह, सतवीर सिंह और सतपाल सिंह किसान थे। बड़े भाई गजेंद्र सिंह को भारत मां की सेवा करते देख सतपाल सिंह ने भी देश की सेवा करने के लिए सेना में भर्ती होने की ठान ली और वे भी सेना में भर्ती हो गए। सेना में भर्ती होने के बाद उनकी शादी मेरठ निवासी बबीता से हो गई।
कारगिल युद्ध में पाकिस्तान ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को टाइगर हिल चौकी को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन इस चौकी को पाकिस्तान से कब्जामुक्त कराने के लिए भारत के 11 जवानों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। इनमें से सतपाल सिंह भी थे। उनकी पत्नी बबीता बताती हैं कि सतपाल जनवरी 1999 में अवकाश बिताकर ग्वालियर पहुंचे तो वहां से उनका तबादला जम्मू के लिए हो गया।
बटालियन जम्मू पहुंची ही थी कि इसी बीच कारगिल युद्ध शुरू हो गया। उनकी बटालियन सेकेंड राजपूताना राइफल्स को फौरन कारगिल पहुंचने के आदेश हुए। सतपाल सिंह युद्ध में गए हैं, इसकी जानकारी उनके घर पर किसी को नहीं थी। इसी बीच उनकी यूनिट के तीन साथी सैदपुर गुलावठी के चमन, सुरेंद्र और जसवीर कारगिल के शहीद होने की सूचना पूरे इलाके में फैल गई। जैसे ही ये सूचना लुहारी में पहुंची तो सतपाल सिंह के परिवार में सभी को उनकी चिंता होने लगी।
दो जुलाई 1999 को गांव में बहादुरगढ़ थाने का एक सिपाही लांस नायक सतपाल सिंह के घर पहुंचा। सिपाही को देख परिवार के लोग बेचैन हो गए। सिपाही ने बताया कि सेना मुख्यालय से खबर है कि 28 जून को लांस नायक सतपाल सिंह द्रास सेक्टर में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए हैं। सूचना मिलते ही पूरे गांव में हाहाकार मच गया।
युद्ध जीतने के बाद किया था घर आने का वादा
उनकी पत्नी बबीता बताती हैं कि परिवार के लोगों ने चिट्ठी लिखी तो सतपाल सिंह का जवाब आया कि उन्होंने तोलोलिंग चोटी जीत ली है, लेकिन दुश्मन अभी बहुत सारी चोटियों पर कब्जा किए बैठे हैं। ऐसे में युद्ध खत्म होने से पहले नहीं आ सकता। चिंता मत करना। मैं बिल्कुल ठीक हूं। इसके बाद कोई सूचना नहीं आई।
फूलों की वर्षा से दी अंतिम विदाई
जब सतपाल सिंह का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव लुहारी पहुंचा तो उनके अंतिम दर्शन के लिए लोग टकटकी लगाए बैठे थे। शव पर जगह-जगह राष्ट्रीय राजमार्ग फूलों की बारिश होती रही। शहीद का शव गांव पहुंचा तो उनके परिवार सहित गांव के हर एक व्यक्ति की आखों में आंसू तो था लेकिन सपूत पर गर्व था।
पत्नी ने पिता की कमी बच्चों को नहीं महसूस होने दी
सतपाल के शहीद होने के समय उसके पुत्र पुलकित की उम्र साढ़े तीन वर्ष और पुत्री दिव्या की उम्र ढाई वर्ष थी, लेकिन बबीता ने कभी भी दोनों बच्चों को पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। उनको आज काबिल बना दिया। शहीद सतपाल के पुत्र पुलकित और बेटी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। सतपाल सिंह के शहीद होने के बाद उनका अंतिम संस्कार गांव में ही किया गया। जिससे उसके अंतिम संस्कार स्थल पर प्रशासन के द्वारा शहीद पार्क का निर्माण करा दिया गया।
बेटा पुलकित बोला, पापा पर गर्व होता है पापा पर गर्व होता है
शहीद सत्यपाल सिंह के बेटे पुलकित और बेटी दिव्या कहती हैं कि उन्होंने तो पापा को सही प्रकार से नहीं देखा, लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से सुनकर गर्व होता है।
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