गाजियाबाद में दक्ष हो रहे दिल्ली पुलिस के जवान, दी जा रही राहत व बचाव कार्य की स्पेशल ट्रेनिंग, आपदा में बचाएंगे जान
कुछ साल पहले एनडीआरएफ की देश में कुछ ही बटालियन थीं। आपदा में राहत देने के लिए दूरदराज के इलाकों में इन बटालियन से रेस्क्यू टीम देर से पहुंचती थीं। ऐसे में बटालियन की संख्या बढ़ाकर 16 कर दी गई है
गाजियाबाद [आयुष गंगवार]। दिल्ली में इमारतों के गिरने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें दबकर लोगों की जान भी जा रही है। दिल्ली पुलिस मौके पर सबसे पहले पहुंचती है, लेकिन राहत व बचाव कार्य नहीं कर पाती। इसमें देरी होने से कई लोगों की मौत हो जाती है। अब दिल्ली आर्म्ड पुलिस के जवान ही आपदा में फंसे लोगों को बचाएंगे।
गाजियाबाद के कमला नेहरूनगर स्थित एनडीआरएफ की आठवीं बटालियन में दिल्ली पुलिस के जवानों को राहत व बचाव कार्य में दक्ष किया जा रहा है। 73 जवानों को छह सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
डीपीडीआरएफ के गठन की प्रक्रिया शुरू
कुछ साल पहले एनडीआरएफ की देश में कुछ ही बटालियन थीं। आपदा में राहत देने के लिए दूरदराज के इलाकों में इन बटालियन से रेस्क्यू टीम देर से पहुंचती थीं। ऐसे में बटालियन की संख्या बढ़ाकर 16 कर दी गई है और अब हर राज्य में पुलिस व पीएसी के जवानों को प्रशिक्षित कर स्टेट डिजास्टर रेस्पांस फोर्स (एसडीआरएफ) बनाई जा रही है।
इसीलिए दिल्ली पुलिस ने एनडीआरएफ के साथ दिल्ली पुलिस डिजास्टर रेस्पांस फोर्स (डीपीडीआरएफ) के गठन के लिए एमओयू हस्ताक्षर किया था। अब प्रशिक्षण शुरू हो चुका है।
मेडिकल फर्स्ट रेस्पांडर पर जोर
मेडिकल फर्स्ट रेस्पांडर यानी सबसे पहले चिकित्सीय मदद देने वाला, चूंकि आपदा में फंसे लोगों तक ये जवान ही सबसे पहले पहुंचते हैं, तो इनके चिकित्सीय प्रशिक्षण पर खास जोर है। मलबे में फंसे व्यक्ति को अचानक निकालने से उसकी जान जा सकती है। कैसे धीरे-धीरे वजन व दबाव कम कर उसे निकालना है। घायल के अस्पताल पहुंचने तक हालत स्थिर रखने में काम आने वाली चिकित्सीय प्रक्रिया और उपाय बारीकी से सिखाए जा रहे हैं।
दिए जा रहे हैं प्रशिक्षण
- मेडिकल फर्स्ट रेस्पांडर
- 12 दिन - 105 सत्र आपदा में फंसे लोगों को बाहर निकालने के बाद त्वरित प्राथमिक उपचार देना ताकि उनकी जान बचाई जा सके।
- कोलैप्स स्ट्रक्चर सर्च एंड रेस्क्यू
- 12 दिन - 108 सत्र भूकंप आने के बाद मलबे में कहां-कहां लोग फंसे हैं, उन्हें ढूंढ़ने और मलबे को उपकरणों से काट व तोड़कर घायलों को बाहर निकालना।
- फ्लड रेस्क्यू एंड मोटराइज्ड बोट हैंडलिंग
- छह दिन - 54 सत्र बाढ़ में मोटराइज्ड बोट से लोगों को ढूंढ़ना और लोगों को बचाना
- इक्विपमेंट मेंटेनेंस एंड रोप रेस्क्यू
- तीन दिन - 30 सत्र उपकरणों का रखरखाव और रस्सी के सहारे मदद वाले स्थान पर पहुंचना व लोगों को बचाकर लाना। - केमिकल बायोलोजिकल रेडियोएक्टिव न्यूक्लियर इमरजेंसी
- तीन दिन - 27 सत्र चारों तरह की आपदा में विशेष उपकरणों की मदद से इसमें फंसे लोगों को बचाना।
विपिन कुमार (असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर) का कहना है कि जान बचाने से बड़ा कोई कार्य नहीं है। खुद पर गर्व है कि जनता को सुरक्षा देने के साथ अब आपदा में भी लोगों को बचा पाऊंगा।
अंकित बैसला (हेड कांस्टेबल) का कहना है कि एनडीआरएफ के विशेषज्ञों ने बारीकी से चारों चरणों का प्रशिक्षण दिया है, जो ताउम्र आमजन की रक्षा करने में हमारे काम आएगा।
पीके तिवारी (कमांडेंट, आठवीं बटालियन, एनडीआरएफ) का कहना है कि दिल्ली पुलिस के जवानों का प्रशिक्षण चल रहा है। डीपीडीआरएफ का गठन भी एनडीआरएफ की तर्ज पर ही होगा।