गेहूं के निर्यात पर पाबंदी से किसानों में निराशा
जागरण संवाददाता मोदीनगर हाल ही में सरकार ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। सरक
जागरण संवाददाता, मोदीनगर: हाल ही में सरकार ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। सरकार के इस कदम से जहां किसानों में निराशा देखने को मिल रही है। वहीं, आम आदमी ने इससे राहत की सांस ली है। उनकी मानें तो सरकार के इस निर्णय से आम आदमी की थाली से रोटी दूर नहीं होगी। किसानों का कहना है कि निर्यात पर पाबंदी लगने से किसानों को गेहूं का कम भाव मिलेगा। सरकार ने इस बार गेहूं का समर्थन मूल्य 2015 रुपये प्रति क्विटल घोषित किया है। पिछले कई सालों में जहां सरकारी क्रय केंद्रों पर गेहूं की लक्ष्य से अधिक खरीद हुई थी। लेकिन इस बार अभी तक लक्ष्य को छूने की बात तो दूर, लक्ष्य से आधा गेहूं भी नहीं खरीदा जा सका है। विपणन विभाग के अधिकारियों का दावा है कि इस बार गेहूं बाहर की मंडी में ढाई से तीन सौ रुपये क्विटल तक महंगा बिक रहा है। ऐसे में सरकारी केंद्र पर बेचने में किसान रूचि नहीं दिखा रहे हैं। मंडी में आम ग्राहक को गेहूं 2300 से 2500 रुपये प्रति क्विटल में साधारण गेहूं मिल रहा था। लगातार इसकी कीमत में इजाफा हो रहा था। हालांकि, पाबंदी के बाद गेहूं के भाव में 50 से 100 रुपये प्रति क्विटल तक की गिरावट भी देखने को मिल रही है। खास बात यह है कि कुछ किसानों ने तो भाव और बढने की उम्मीद में गेहूं का स्टाक भी कर लिया। इसी बीच सरकार ने निर्यात पर पाबंदी लगा दी तो किसानों में निराशा देखने को मिली।
-इनकी सुनो:
निर्यात पर पाबंदी लगने से गेहूं की बढती कीमतों पर काफी हद तक विराम लगेगा। सरकार ने महंगाई को नियंत्रित करने की दिशा में यह कदम उठाया है। आम आदमी को भी इससे फायदा होगा। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए सरकार का यह कदम किसी संजीवनी से कम नहीं है। हालांकि, वह किसान जिन्होंने अपना गेहूं अभी तक नहीं बेचा, उनको थोड़ा नुकसान होगा।
-अंकुर नेहरा, आयात निर्यात मामलों के जानकार। मौसम के प्रतिकूल रवैये के कारण इस बार गेहूं का उत्पादन घटा है। सरकार को निर्यात पर पाबंदी नहीं लगाई चाहिए थी। नुकसान से उबरने का किसानों के पास यह सही मौका था, जो सरकार ने छीन लिया।
-रामअवतार त्यागी, किसान नेता। सरकार के इस निर्णय से आम आदमी को बड़ा फायदा होगा। जिस तरह से गेहूं की कीमतें बढ रही थी, उससे आम आदमी खास तौर से आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग की थाली से रोटी गायब होने की स्थिति बन रही थी। लेकिन अब हर तबके को राहत मिलती दिख रही है।
-ईश्वरपाल, शकूरपुर।