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आपातकाल में मानव अधिकार छीनकर की गई थी लोकतंत्र की हत्या

धनंजय वर्मा साहिबाबाद वैशाली सेक्टर-तीन स्थित अपेक्स अकाचिया वैली सोसायटी में रहने वाले 80 वष

By JagranEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 07:47 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 07:47 PM (IST)
आपातकाल में मानव अधिकार छीनकर की गई थी लोकतंत्र की हत्या
आपातकाल में मानव अधिकार छीनकर की गई थी लोकतंत्र की हत्या

धनंजय वर्मा, साहिबाबाद :

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वैशाली सेक्टर-तीन स्थित अपेक्स अकाचिया वैली सोसायटी में रहने वाले 80 वर्षीय लोकतंत्र सेनानी तेजपाल सेठी आपातकाल की खौफनाक प्रताड़ना को भूले नहीं हैं। उनका कहना है कि आपातकाल में तानाशाही का विरोध करने वाले लाखों लोगों को लोकतंत्र की हत्या कर सलाखों के पीछे डालकर प्रताड़ित किया गया था। सभी लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प लें यही लोकतंत्र सेनानियों का सच्चा सम्मान है। बृहस्पतिवार को भाजपा नेताओं ने लोकतंत्र सेनानी तेजपाल सेठी के घर पहुंचकर उनका अभिनंदन किया।

लोकतंत्र सेनानी तेजपाल सेठी का कहना है कि वर्ष 1975 में वह नेहरू नगर स्थित सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य थे। इमरजेंसी लगने के बाद 26 नवंबर 1975 को घर से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बिना किसी गुनाह के उन्हें इसलिए जेल भेज दिया गया कि वह सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य थे और यह स्कूल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध है। जब उन्हें जेल भेजा गया तो उनके बेटे गगन सेठी एक साल के थे। उनका पूरा परिवार मुसीबत में आ गया। चार माह तक बिना किसी गुनाह के जेल में सजा काटने पड़ी थी। तेजपाल सेठी का कहना है कि उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था। कहीं से न्याय मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही थी। आपातकाल में लोगों के सभी अधिकार छीन लिए गए थे। जेल में लोगों को बर्फ की सिल्ली पर लिटाया जाता था। लोगों के नाखून खींच दिए जाते थे। आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की हत्या कर बुरी तरह लोगों को प्रताड़ित किया गया था। इससे ज्यादा शर्मनाक दौर उसके बाद अब तक न आया और न ही कभी आए। भाजपाइयों ने किया सम्मान :

लोकतंत्र सेनानी तेजपाल सेठी के घर बृहस्पतिवार दोपहर भाजपा महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा, पूर्व महानगर उपाध्यक्ष अमित त्यागी, महानगर महामंत्री पप्पू पहलवान पहुंचे। तेजपाल सेठी को संजीव त्यागी ने शॉल ओढ़ाकर व पुष्प देकर सम्मानित किया। वहीं, संजीव शर्मा ने कहा कि आपातकाल के खिलाफ लोकतंत्र के रक्षकों ने आवाज न उठाई होती तो लोकतंत्र इतिहास में ही दर्ज होकर रह जाता।


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