किसानों के माइक पर सियासी रोटियां सेंकने में पीछे नहीं है छुटभैया
जासं गाजियाबाद यूपी गेट पर चल रहे किसानों के आंदोलन में छुट भैया नेता भी सियासी रोटिया
जासं, गाजियाबाद : यूपी गेट पर चल रहे किसानों के आंदोलन में छुट भैया नेता भी सियासी रोटियां सेंकने में पीछे नहीं हैं। वह किसानों के बीच माइक पर खड़े होकर जमकर राजनीति चमका रहे हैं। अपने भाषण फेसबुक पर लाइव करा रहे हैं। तल्ख और आपत्तिजनक टिप्पणियां कर खूब तालियां बटोर रहे हैं।
आंदोलन को समर्थन देने के नाम पर दूर-दूर से लोग किसानों के पास भाषण देने पहुंच रहे हैं। भाषण देने से पहले उन्हें अपना नाम डायरी में दर्ज कराना होता है। भाषण देने वालों की कतार लंबी है। आंदोलन में राजनीतिक पार्टियों के ज्यादातर कुछ भैया नेता पहुंच रहे हैं। यह नेता किसानों से भाषण देने की इच्छा व्यक्त करते हैं और अपनी बारी का इंतजार करते हैं। धरनास्थल पर आने से पहले यह नेता भाषण का होम वर्क भी कर रहे हैं। अपने भाषण को फेसबुक पर लाइव कराने के लिए एक व्यक्ति की ड्यूटी लगा देते हैं। फेसबुक के अलावा अपनी वीडियो को वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्वीटर आदि सोशल साइट्स पर अपलोड कर खुद को किसानों का मसीहा बता रहे हैं। धरने पर मौजूद किसान इसका विरोध भी कर रहे हैं।
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आपत्तिजनक भाषणों पर सख्ती से नहीं पाबंदी
किसान बार-बार कहते हैं कि वह अपने मंच का इस्तेमाल राजनीतिक भाषणों के लिए नहीं होने देंगे। मगर सख्ती से इसका पालन नहीं हो रहा है। धरनास्थल पर बैठे किसान गजेंद्र सिंह ने सोमवार को कहा कि कुछ राजनीतिक लोग दस मिनट के लिए भाषण देने धरनास्थल पर आते हैं और फेसबुक लाइव कर चले जाते हैं। यह मंच राजनीति के लिए नहीं है। यदि वास्तव में नेताओं को हमारी फिक्र है तो उन्हें हमारे साथ यहां पर रात गुजारनी चाहिए। गजेंद्र की नसीहत के बाद छुट भैया नेताओं ने राजनीतिक भाषण देना शुरू कर दिया।
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रोके से नहीं रुके कांग्रेस नेता
मेरठ के खरखोदा निवासी कांग्रेस नेता हरिओम त्यागी रविवार को कुछ देर के लिए किसानों के बीच भाषण देने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने किसानों के मंच को राजनीति के लिए खूब इस्तेमाल किया। उन्होंने कई कांग्रेस नेताओं की तारीफों के पुल बांध दिए। इस दौरान एक किसान ने उन्हें इस तरह के भाषण देने से रोकने की कोशिश की। मगर सख्ती से नहीं रोकने की वजह से वह भाषण देते रहे। बाद में पता चला कि हरिओम त्यागी कांग्रेस पार्टी में पीसीसी सदस्य हैं। जिसके बाद किसानों ने उन्हें लताड़ा और आंदोलन के मंच को सियासत के लिए इस्तेमाल न करने की नसीहत दी।