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गांव की ओर जाते हुए पैरों में पड़े छाले, मदद कर रहे शहरवाले

रात नौ बजे से दस बजे का समय और यूपी गेट से लालकुआं तक हजारों की संख्या में एनएच नौ पर पैदल अपने गांव की ओर जाते लोगों को देखकर आसपास की सोसायटियों के लोग सिहर उठे। आलम यह था कि सैकड़ों किलोमीटर दूर जाने के लिए अपने ठिकानों से निकले लोगों के पैरों में सफर की शुरूआत में ही छाले पड़ने लगे। इन लड़खड़ाते कदमों को सहारा देने के लिए शहर में अलग अलग जगह पर रहने वाले लोग अपने घरों और आसपास की दुकानों से राहत सामग्री ले आए। जिसे पाकर लोगों को थोड़ी राहत मिलती रही और वह आगे चलते रहे। इनमें कई लोग ऐसे थे जो कि कंधे पर बच्चों को और कमर पर सामान बांधकर जाते दिखे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Mar 2020 11:28 PM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2020 06:01 AM (IST)
गांव की ओर जाते हुए पैरों में पड़े छाले, मदद कर रहे शहरवाले
गांव की ओर जाते हुए पैरों में पड़े छाले, मदद कर रहे शहरवाले

अभिषेक सिंह, साहिबाबाद: रात नौ बजे से दस बजे का समय और यूपी गेट से लालकुआं तक सैकड़ों की संख्या में एनएच नौ पर पैदल अपने गांव की ओर जाते लोगों को देखकर आसपास की सोसायटियों के लोग सिहर उठे। आलम यह था कि सैकड़ों किलोमीटर दूर जाने के लिए अपने ठिकानों से निकले लोगों के पैरों में सफर की शुरूआत में ही छाले पड़ने लगे। इन लड़खड़ाते कदमों को सहारा देने के लिए शहर में अलग-अलग जगह पर रहने वाले लोग अपने घरों और आसपास की दुकानों से राहत सामग्री ले आए। जिसे पाकर लोगों को थोड़ी राहत मिली। इनमें कई लोग ऐसे थे जो कि कंधे पर बच्चों को और कमर पर सामान बांधकर जाते दिखे। पैदल चलने वालों में नन्हे बच्चों से लेकर महिलाएं, युवा और बुजुर्ग सभी लोग शामिल थे। इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे लोग शामिल थे, जिनके पास अब घर तक पहुंचने के लिए बस का किराया भी नहीं है। रास्ते में खाने-पीने का जो सामान मिल रहा था, उसको ही यह लोग बचाकर रख रहे थे कि भूख लगने पर बच्चों को खिला देंगे या खुद खा लेंगे। लोगों का कहना था कि बस किसी तरह से घर पहुंच जाएं। यहां पर रुके तो जीना मुश्किल हो जाएगा। रुकने की अपील करते रहे लोग: विजयनगर के पास लोगों को राहत सामग्री बांट रहे चार दोस्त इन लोगों से अपील कर रहे थे कि लंबा सफर है। रुक जाइए, आपकी मदद के लिए सरकार और हम लोग हैं। घबराइए नहीं, सब कुछ जल्द ही ठीक हो जाएगा। सरकार के साथ ही कई सामाजिक संस्थाएं और सोसायटी से लेकर कॉलोनियों तक में रहने वाले लोग अपने घर से मदद करने के लिए तैयार हैं लेकिन राहगीरों का कहना था कि वह रुक नहीं सकते, हर हाल में गांव जाना चाहते हैं। माता, पिता और गर्भवती पत्नी को ठेले पर ले जा रहा नदीम: सीलमपुर में फल की ठेली लगाने वाले नदीम का घर उत्तर प्रदेश के बरेली में है। करीब ढाई सौ किलोमीटर से अधिक दूरी का सफर है लेकिन परिवार के पास बस वालों को किराया देने के लिए पैसे नहीं है। इस वजह से नदीम अपने माता, पिता, छोटे भाई-बहनों और तीन माह की गर्भवती पत्नी को उसी फल बेचने वाले ठेले पर बैठाकर बरेली जा रहे हैं। ठेली उनको खींचना पड़ता है, भाई-बहन भी ठेले को धक्का लगाते हैं।

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हम लोग रोजाना सुबह और शाम के वक्त पैदल जाने वाले लोगों को राहत सामग्री बांटते हैं। इन लोगों की मदद करना ही इस समय इंसानियत है।

- अजय पाल हम लोगों पैदल जाने वाले लोगों से अपील करते हैं कि यहीं रुक जाओ। सरकार और सामाजिक संस्थाओं के लोग आपकी मदद करेंगे। लोग नहीं मानते, ऐसे में राहत सामग्री बांटकर ऐसे लोगों की मदद करता हूं।

-अंकित


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