Move to Jagran APP

धौलाना में 14 देशभक्तों को मिली थी फांसी

By Edited By: Published: Tue, 10 May 2011 08:22 PM (IST)Updated: Thu, 17 Nov 2011 12:12 AM (IST)
धौलाना में 14 देशभक्तों को मिली
 थी फांसी

-10 मई 1857 में मेरठ में हुई थी सैनिकों की सशस्त्र क्रांति

loksabha election banner

-मंगल पांडे मेरठ कभी आए ही नहीं

हापुड़, जागरण संवाद केंद्र : आजादी के इतिहास में 10 मई 1857 में मेरठ में हुई सैनिकों की सशस्त्र क्रांति का पिलखुवा-हापुड़ क्षेत्र के अनेक गांवों में भी प्रभाव पड़ा था। इसके बाद धौलाना के राष्ट्रभक्त ग्रामीणों ने थाना जला डाला था। बाद में अंग्रेजों ने जब मेरठ पर पुन: कब्जा कर लिया, तब उन्होंने इस क्षेत्र के गांवों पर डटकर कहर बरपाया। इतना ही नहीं, धौलाना में 14 देशभक्त ग्रामीणों को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया। अंग्रेजों ने हापुड़, पिलखुवा में भी निरीह नागरिकों का उत्पीड़न कर तमाम जमीन जब्त कर ली थी। यहां तक कि मोहल्ला गढ़ी के शिव मंदिर में नागा बाबा की अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इन सब घटनाओं का वर्णन इतिहासकार-पत्रकार शिवकुमार गोयल ने क्रांति दिवस के अवसर पर प्रकाशित अपनी नई पुस्तक क्रांतिकारी आंदोलन में विस्तार से किया है।

पुस्तक में इस भ्रम को निराधार बताया गया है कि मंगल पांडे को मेरठ में फांसी दी गई थी। पुस्तक के अनुसार मंगल पांडे कभी मेरठ आए ही नहीं थे। उन्हें बंगाल की बैरकपुर छावनी में ही अप्रैल में फांसी दे दी गई थी। गोयल के अनुसार मेरठ में 85 हिंदुस्तानी सैनिकों को जेल से छुड़ाने में मेरठ के राष्ट्रभक्त कोतवाल धन सिंह गुर्जर का सर्वाधिक योगदान था। पुस्तक में दिए गए तथ्यों के अनुसार कोतवाल धन सिंह को जब यह पता लगा कि अप्रैल में बैरकपुर छावनी में मंगलपांडे नामक सिपाही ने गाय की चर्बी लगे कारतूसों का बहिष्कार कर परेड में गोरे अफसरों पर हमला बोल दिया, जिस पर उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया है तो उसने अपने गांव पांचली, बागपत में ग्रामीणों से संपर्क कर मेरठ में विदेशी सत्ता के विरुद्ध समय पर हथियार उठाने की प्रेरणा दी थी। तब मेरठ में 85 हिंदुस्तानी सैनिकों ने कारतूस लेने से इंकार कर विद्रोह का बिगुल बजाया तो उन्हें कोर्ट मार्शल के बाद बेड़ियों में जकड़ कर जेल भेज दिया गया। कोतवाल धन सिंह ने रातोंरात गांवों के राष्ट्रभक्त ग्रामीणों को संदेश भिजवा दिया कि वे 10 मई को चुपचाप मेरठ पहुंच जाएं। गांवों से पहुंचे हजारों ग्रामीणों ने ही 10 मई को क्रांति का बिगुल बजाकर तहलका मचाया था।

गोयल कहते हैं कि 10 मई को सायंकाल पांच बजे हजारों ग्रामीणों तथा सिपाहियों ने गिरजाघर में प्रार्थना का घंटा बजते ही अचानक मेरठ की सड़कों पर ललकारने लगे कि मारो फिरंगियों को। जेल पर धावा बोलकर 85 सिपाहियों की बेड़ी काटकर उन्हें जेल से मुक्त कराने में सफलता प्राप्त कर ली। गिरजाघर में रविवार की प्रार्थना के लिए इकट्ठे हुए अंग्रेजों पर भी आक्रमण कर उन्हें निशाना बना डाला। देखते ही देखते 10 मई की रात तक पूरे मेरठ पर राष्ट्रभक्त विद्रोहियों का कब्जा हो गया। विद्रोहियों ने ग्यारह पलटनों के कर्नल लेफ्टिनेंट हंडरसन, ले.पेंट आदि को मृत्यु के आगोश में पहुंचा डाला। योजनानुसार मेरठ पर कब्जा करने के बाद हजारों विद्रोही दिल्ली की ओर रवाना हो गए।

विद्रोह में भाग लेने वाले सैनिकों का अन्य हजारों ग्रामीणों ने पूरा साथ दिया। रास्ते में वे तमाम बाधाएं दूर करते हुए दिल्ली तक पहुंचने में सफल हो गए। दिल्ली से भी अंग्रेज गोरे सैनिकों को खदेड़ने के बाद बहादुरशाह जफर को सत्ता सौंपकर दिल्ली को आजाद घोषित किया गया। बाद में गोरे सैनिकों के बल पर पुन: मेरठ आदि पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों ने कोतवाल धन सिंह गुर्जर व अन्य ग्रामीणों को फांसी पर लटकाया। डासना, सीकरी, मोदीनगर, पसौंडा, मालगढ़, मुकीमपुर आदि गांवों में भी लोगों पर मनमाने अत्याचार किए गए थे।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.