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बेबसी की दास्तान: न किस्मत ने दिया साथ न सिस्टम आया काम

बेबसी की दास्तान न किस्मत ने दिया साथ न सिस्टम आया काम

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 11:42 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 11:42 PM (IST)
बेबसी की दास्तान: न किस्मत ने दिया साथ न सिस्टम आया काम
बेबसी की दास्तान: न किस्मत ने दिया साथ न सिस्टम आया काम

संवाद सहयोगी टूंडला(फीरोजाबाद): रेलवे पटरी पर ट्रेन दौड़ती रही और बेबस परिवार बिखलता रहा। मासूम का नाना कभी रेलवे कंट्रोल रूम के फोन लगाता तो कभी ट्रेन की चेन खींचता। गोद में मासूम को लिए मां बिलखती रही। कभी भगवान से दुआ करती तो कभी सहयात्रियों से मदद मांगती। ट्रेन चलती रही और बुखार से तपते मासूम ने दम तोड़ दिया। ट्रेन में मासूम की मौत कई सवाल खड़े कर रही है। क्वारंटाइन सेंटर में नाना यह कहते हुए बिलख रहा है कि यदि कंट्रोल रूम का फोन उठ जाता तो बच्चे की जान बच जाती।

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शुक्रवार शाम चार बजे दिल्ली से बिहार जाने के लिए दादरी से ट्रेन में सवार हुआ परिवार मन ही मन खुश हो रहा था, लेकिन खुशी कुछ देर बाद ही परेशानी में बदल गई। ट्रेन के चलने के थोड़ी देर बाद ही बच्चे की तबियत बिगड़ने लगी। बुखार कम होने का नाम नहीं ले रहा था। पानी की पट्टी भी काम नहीं आई। मासूम के नाना देवलाल ने बताया कि सहयात्रियों ने उनसे कहा कि रेलवे कंट्रोल रूम का नंबर लगाओ, ट्रेन को अलीगढ़ में रोककर मदद मिल जाएगी। मगर पूरे रास्ते में एक बार भी फोन नहीं उठा। यूपी डायल 112 का नंबर भी लगाया, लेकिन वहां सिर्फ घंटी बजती रही। जब भी कोई स्टेशन नजर आता, वे चेन पुलिग करने की कोशिश करते। साथ वालों ने भी चेन खींची, लेकिन गाड़ी रुकी ही नहीं। बाद में पुलिस की ओर से मदद का फोन आया, और कहा गया कि टूंडला में ट्रेन के रुकते ही मदद मिल जाएगी, डॉक्टर आ जाएगा। मगर उससे पहले बच्चे ने बुखार से दम तोड़ दिया।

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-नौ सौ किमी के लिए सिर्फ आधा लीटर पानी

रेल यात्रा के दौरान सरकार की ओर से की जाने वाली व्यवस्था में महज आधा लीटर पानी ही था। देवलाल ने बताया कि ट्रेन में चढ़ते समय हर सदस्य को आधा लीटर पानी की बोतल दी गई थी। उन्हें नौ सौ किमी की यात्रा करना थी। खाने के नाम पर कुछ नहीं दिया गया था। खाने के सामान के बारे में पूछा तो किसी ने कुछ नहीं कहा।

पांच घंटे में तय की ढाई घंटे की दूरी दिल्ली से टूंडला की दूरी लगभग 200 किमी है। आम एक्सप्रेस ट्रेनें यह दूरी ढाई घंटे से तीन घंटे में तय करती हैं। श्रमिक स्पेशल ने यह सफर पांच घंटे में तय किया, जबकि इसका कोई स्टॉपेज नहीं था। यदि ट्रेन तय समय में सफर तय करती तब भी बच्चे की जान बच जाती। -गुमसुम है मां, बिलख रहे नाना-नानी बच्चे की मौत के बाद बिखलती मां सदमे में आ गई है और गुमसुम है। बीरी सिंह कॉलेज में ठहराए गए नाना नानी बिलख रहे हैं। उनका कहना है कि बेटी छह माह से उनके पास थी। उसका बेटा कमजोर था, लिहाजा उसकी सेवा करने के लिए रोक लिया था, उन्हें क्या पता था कि बच्चा घर नहीं पहुंच पाएगा। अब वे यह कलंक कैसे मिटाएंगे। वे बच्चे का शव गांव ले जाना चाहते हैं।


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