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मेडिकोलीगल को लेकर स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कालेज में घमासान

किशोरी का मेडिकल कराने पांच दिन भटकती रही पुलिस आयु संबंधी रिपोर्ट पर मुहर लगाने को तैयार नहीं थे डाक्टर।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 06:58 AM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 06:58 AM (IST)
मेडिकोलीगल को लेकर स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कालेज में घमासान
मेडिकोलीगल को लेकर स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कालेज में घमासान

जागरण संवाददाता, फिरोजाबाद: शादी का झांसा देकर ले जाई गई नसीरपुर की किशोरी ने बिना किसी अपराध का पांच दिन तक सजा भुगती। मेडिकोलीगल परीक्षण के साथ पांच दिन तक पुलिस सीएमओ कार्यालय और मेडिकल कालेज प्रशासन के बीच कठपुतली बनी रही। अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद रिपोर्ट मिल सकी। दरअसल मेडिकोलीगल परीक्षण के लिए स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कालेज में घमासान छिड़ गया है।

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दो अक्टूबर को नसीरपुर थाना में 17 वर्षीय किशोरी को भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज हुआ। 12 अक्टूबर को किशोरी मिल गई और पिता के साथ थाने पहुंची। किशोरी के बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने उसका शिकोहाबाद संयुक्त चिकित्सालय में मेडिकल करवाया, लेकिन उम्र तय करने की रिपोर्ट लेने में पांच दिन लग गए। पांच दिन तक किशोरी को लेकर भटकता विवेचक सोमवार को डीएम के पास गुहार लेकर पहुंचा। एडीएम और एसपी सिटी के हस्तक्षेप के बाद रिपोर्ट लग सकी। एसपी सिटी मुकेश मिश्रा का कहना है कि मेडिकल कालेज अस्पताल में मेडिकोलीगल परीक्षण की परेशानी आ रही है।

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मेडिकल कालेज और स्वास्थ्य विभाग में उलझी व्यवस्थाएं

अप्रैल 2018 को स्वशासी राजकीय मेडिकल कालेज शुरू होने के बाद जिला अस्पताल कालेज के अधीन आ गया। जिला अस्पताल में तैनात प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग (पीएमसी) डाक्टर स्वास्थ्य विभाग में चले गए। वहीं मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया(अब नेशनल मेडिकल कमीशन) द्वारा कालेज के लिए डाक्टरों की नियुक्ति की गई। एल-1 श्रेणी के इलाज की व्यवस्था स्वास्थ्य विभाग की होती है। इसके बाद मरीज को एल-2 श्रेणी के अस्पताल (मेडिकल कालेज) भेजा जाता है। स्थिति यह है कि जिला अस्पताल जाने के बाद स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्थाएं गड़बड़ा गई हैं। हालांकि कुछ डाक्टर अब भी मेडिकल कालेज में ही हैं।

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क्या है मेडिकोलीगल रिपोर्ट

वरिष्ठ अधिवक्ता अब्दुल सलाम बताते हैं मेडिकोलीगल परीक्षण समर्थन साक्ष्य होता है। इसमें घायल व्यक्ति की चोटों का परीक्षण होता है। यह वादी के पक्ष को साबित और झुठलाता है। ये फैसले में अतिमहत्वपूर्ण होता है। मेडिकल करने वाले डाक्टर का बयान महत्वपूर्ण होता है। यदि इसमें देरी हो तो केस प्रभावित होता है, देरी घटना पर संदेह पैदा करती है। महिला संबंधी अपराध और विशेषरूप से पोक्सो एक्ट के मामलों में देरी नहीं होना चाहिए।

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'मेडिकोलीगल की प्रक्रिया जिला अस्पताल में होती है। डाक्टर को कोर्ट में प्रस्तुत होना होता है, इससे मेडिकल कालेज में पढ़ाई प्रभावित होती है। विशेष परिस्थितियों में हम परीक्षण करवाते हैं। सीएमओ को अपनी व्यवस्था करनी चाहिए। सीएमओ व्यवस्था कराएं, इस संबंध में पत्र भेजा गया है।'

- डा. संगीता अनेजा, प्राचार्य मेडिकल कालेज

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स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत संचालित अस्पतालों में हड्डी रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। प्राचार्य से बात करने के बाद डाक्टर से रिपोर्ट लगवा दी गई थी। पीएमएस के छह डाक्टर मेडिकल कालेज में हैं, जिन्हें अब मेडिकल कालेज से वेतन मिलेगा। हमने एडी हेल्थ को पत्र भेजा है।'

- डा. दिनेश प्रेमी, सीएमओ


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