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सेवाभाव का जज्बा: न ¨हदू न मुसलमान, इनके लिए सिर्फ इंसान

फीरोजाबाद, कार्तिकेय नाथ द्विवेदी। मैं न ¨हदू न मुसलमान..। दो दोस्तों में सेवाभाव का जज्बा है। उनके लिए न कोई हिंदू है और न मुसलमान। वह तो सिर्फ इंसानियत के शवों का अंतिम संस्कार कराते हैं। पिता से मिली सीख के बाद इसे अपने जीवन में उतार लिया है। इसके लिए कमेटी बनाई है। एक शव के अंतिम संस्कार पर तीन हजार रुपये का खर्च आता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 11:44 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jan 2019 11:44 PM (IST)
सेवाभाव का जज्बा: न ¨हदू न मुसलमान, इनके लिए सिर्फ इंसान
सेवाभाव का जज्बा: न ¨हदू न मुसलमान, इनके लिए सिर्फ इंसान

कार्तिकेय नाथ द्विवेदी, फीरोजाबाद: मैं न ¨हदू न मुसलमान..। इस मशहूर गजल का फलसफा राजू को देखकर समझ आता है। पिता से मिली सीख को उन्होंने जीवन में इस कदर अपना लिया कि उनकी धारणा ही बदल गई। लावारिस शव की जानकारी मिलते ही वो अपने दोस्तों संग पहुंच जाते हैं। विधिक प्रक्रिया के बाद उसका अंतिम संस्कार कर देते हैं।

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सद्भाव की मिसाल पेश कर रहे हैं नालबंदान क्षेत्र के निवासी राजू। उन्होंने एक वाकया सुनाया। करीब दो दशक पहले उनके पिता अहमद खान सोफीपुर में यमुना किनारे से जा रहे थे। उनकी निगाह यमुना में तैर रहे उस शव पर पड़ी, जिसे पक्षी और जानवर नोंच रहे थे। इसके बाद से उनके पिता ने सुहागनगरी में मिलने वाले लावारिस शवों का दाह संस्कार कराने का बीड़ा उठाते हुए ऑल इंडिया लावारिस अंतिम संस्कार कमेटी का गठन किया और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने लगे। करीब डेढ़ साल पहले पिता का इंतकाल होने के बाद अब इस पुनीत कार्य को उनके पुत्र राजू कर रहे हैं।

बकौल राजू, सुहागनगरी में जहां भी कोई लावारिस शव की जानकारी होती है, वे अपने दोस्तों संग पहुंच जाते हैं। ¨हदू है तो विधि विधान से अंतिम संस्कार कराते हैं, मुसलमान है तो सुपुर्द-ए-खाक करते हैं। वह अब तक 90 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं। इसलिए रखा ऑल इंडिया लावारिस अंतिम संस्कार कमेटी नाम

राजू ने बताया कि सुहागनगरी होने की वजह से पूरे देश के लोगों का यहां आना लगा रहता है। ऐसे में कोई भी कहीं भी दम तोड़ सकता है। इसलिए कमेटी का नाम ऑल इंडिया लावारिस अंतिम संस्कार कमेटी पिता ने रखा था। दान मिल जाए तो ठीक वरना जेब से करते हैं खर्च

उन्होंने बताया कि ईद, बकरीद और अलविदा जुमा के मौके पर कुछ दानदाता इस नेक कार्य के लिए दान भी देते हैं, लेकिन दान की राशि 15-16 हजार रुपये ही होती है। बाकी खर्च वह और साथी जेब से करते हैं। एक शव के अंतिम संस्कार में करीब तीन हजार रुपये व्यय होता है।


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