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सफाई को वेतन से खर्च करती हैं सोनाली

जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद: अगर कोई बीड़ा उठा ले तो हालात बदलते देर नहीं लगती। कुछ यह

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Sep 2017 07:37 PM (IST)Updated: Mon, 25 Sep 2017 07:37 PM (IST)
सफाई को वेतन से खर्च करती हैं सोनाली
सफाई को वेतन से खर्च करती हैं सोनाली

जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद: अगर कोई बीड़ा उठा ले तो हालात बदलते देर नहीं लगती। कुछ यही स्थिति देखने को मिलती है गांव दरिगापुर भारौल में। दो-ढाई वर्ष पूर्व जूनियर हाईस्कूल में आईं शिक्षिका सोनाली यादव जब पहली बार स्कूल गई तो स्कूल जाने वाली सड़क पर पैदल चलने का रास्ता भी नहीं था। सोनाली ने स्कूल में सफाई का बीड़ा उठाया तो ग्रामीणों को भी समझाया। आज कई ग्रामीण भी घरों के बाहर कूड़ा नहीं फेंकते।

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सफाई का यह संदेश निकला था गांव की सरकारी पाठशाला से। प्राथमिक स्कूल कैंपस में ही दो कक्षों में संचालित होने वाले जूनियर हाईस्कूल में सहायक अध्यापिका सोनाली यादव 2015 में पहुंची। स्कूल में पहुंचने पर सोनाली ने सबसे पहले स्कूल को सुसज्जित करने पर जोर दिया। स्कूल के खाते में धनराशि इतनी नहीं थी। छह हजार रुपये में सामान्य पुताई भी मुश्किल थी, लेकिन सोनाली ने क्लास एवं दफ्तर में कलरफुल पेंट कराया। स्कूल शौचालय में सफाई के साथ में हॉर्पिक रखवाया तो बच्चों के हाथ धोने के लिए स्कूल में हैंडवॉश भी रखा है। बच्चों को स्वच्छ पानी मुहैया कराने के लिए अपने पैसे से वाटर कूलर रखा है। हर क्लासरूम में डस्टबिन रखा है, जिससे बच्चों को कूड़ा कूड़ेदान में ही डालने की आदत पड़ सके। बच्चों की यही आदत उनके घर तक पहुंचाने के लिए सोनाली अभिभावकों की बैठक कर उन्हें सफाई का संदेश देती है।

अकेले आठ कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाया :

प्राथमिक स्कूल में दो समायोजित शिक्षामित्र तैनात थे। शिक्षामित्रों को हटाने के बाद आंदोलन शुरू हुआ तो आठों कक्षाओं को पढ़ाने की जिम्मेदारी सोनाली पर आ गई। इसके बाद भी सोनाली ने हर क्लास के बच्चों को क्लास वर्क के साथ होमवर्क कराया।

फिल्म दिखाकर पढ़ाती हैं सफाई का पाठ :

सोनाली स्कूल में बच्चों को मोबाइल पर फिल्म दिखाकर सफाई का पाठ पढ़ाती है। खुले में शौच रोकने के लिए उन्होंने बच्चों को कई बार जागरुक किया तो अभिभावकों को भी समझाया कि इससे क्या नुकसान है। ग्रामीणों को बताती हैं कचरा नाली में फेंकने से नाली रुकती है तथा इससे मच्छर पैदा होते हैं। कई ग्रामीण उनकी सीख पर अमल भी कर रहे हैं।


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