Move to Jagran APP

कोरोना के बाद गांव की कहानी: परदेस हुआ बेगाना तो गांव बनाया नया ठिकाना

कोरोना के बाद गांव की कहानी परदेस हुआ बेगाना तो गांव बनाया नया ठिकाना

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Jun 2020 11:30 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 06:08 AM (IST)
कोरोना के बाद गांव की कहानी: परदेस हुआ बेगाना तो गांव बनाया नया ठिकाना
कोरोना के बाद गांव की कहानी: परदेस हुआ बेगाना तो गांव बनाया नया ठिकाना

पुनीत रावत, टूंडला(फीरोजाबाद): कोरोना के काल ने परदेश को बेगाना मर दिया। रोजगार छिनने के बाद छत और रोटी के लिए मोहताज हुए प्रवासी पैदल सफर तय करके गांव तो पहुंच गए, लेकिन यहां अंतरद्वंद छिड़ा है। जहां नौकरी करने वाले कई वापस चल पड़े हैं, तो मजदूरी करने वालों ने गांव को ही अपना स्थाई ठिकाना बना लिया है। कोई सब्जी की ठेल चला रहा है तो कोई मिठाई बनाकर अपनी रोजी-रोटी जमाने लगा है।

loksabha election banner

टूंडला तहसील के गांव श्रीनगर की तस्वीर है। यहां रहने वाले भोले शंकर, जयप्रकाश, गीतम सिंह, विशाल गुरुग्राम में एक नामचीन मिठाई की दुकान पर हलवाई का काम करते थे। लॉक डाउन में दुकान का शटर गिरा तो रोटी के इंतजाम भी डाउन होने लगे। मुसीबतें झेलकर किसी तरह परिवार को लेकर घर लौटे। कुछ दिनों के विश्राम के बाद रोजगार के लिए हाथ-पैर मारना शुरू कर दिए। अनलॉक हुआ तो काम की तलाश भी पूरी हो गई। जयप्रकाश और गीतम गांव में हलवाई की दुकान पर मिठाई बनाने लगे। वहीं गुरुग्राम से लौटे ओमशंकर व दीपक ने ठेल पर सब्जी बेचना शुरु कर दिया। दीपक बताते हैं कि तीन बच्चों व पत्नी का गुजारा आराम से हो रहा है। हालात सामान्य होंगे तो फिर से काम पर लौटेंगे।

-हिम्मतपुर में दिख रही नई हिम्मत गांव हिम्मतपुर में तीन दिन पहले पश्चिम बंगाल के लौटे 11 लोगों में शामिल प्रवीन सिंह, कुलदीप सिंह, सोनपाल सिंह, विश्वदीप सिंह व अजय कुमार सोलर पैनल का काम करते थे। फिलहाल ये सभी होम क्वारंटाइन पर है। युवा प्रवासियों का कहना है कि अपने गांव और अपने शहर में ही रोजगार की तलाश की जाएगी। हम हुनरमंद है तो काम भी मिल जाएगा। फिलहाल वापस लौटने का कोई इरादा नहीं है। वहीं गुरुग्राम की फैक्ट्री में बतौर इलैक्ट्रीशिन काम करने वाले चंपक राम के हौसले भी बुलंद नजर आ रहे हैं। चंपक बताते हैं कि रोजी रोटी लायक काम तो गांव और आसपास मिल गया। यदि अपने शहर में जाकर बिजली का काम करेंगे, तभी भी अच्छा हो जाएगा। हमने जो भोगा है उसके बाद वापस क्यों जाएं? -चंडिका गांव में मनरेगा ने दिया सहारा

गुजरात के ईट भट्टे पर काम करने वाले मजदूरों को गांव में मनरेगा का सहारा मिल गया। गांव वापस लौटे युवाओं दिलीप कुमार, राहुल, अंकुर और राजेश समेत कई मनरेगा में सड़क के काम में लगे हैं। इनका कहना है कि रोटी का इंतजाम हो गया है, अब बाहर जाने का फिलहाल नहीं सोचा है।

बोले प्रवासी..

-यदि आपके पास हुनर है तो काम की कहीं कोई कमी नहीं है। संकट के समय में गांव में भी रोजी-रोटी का पूरा इंतजाम हो सकता है। सरकार कितने दिन तक हमें देगी। हजार रुपये में बच्चे थोड़ी पलेंगे। पेट तो मेहनत की रोटी से ही भरता है।

पंकज कुमार, हिम्मतपुर -हमें सोलर लाइट का काम आता है। पश्चिमी बंगाल में भी वही कर रहे थे। कोरोना का संकट बढ़ा तो अपनों के बीच आ गए। अब हालात सामान्य होने लगे हैं। यहां भी काम का जुगाड़ हो रहा है। बीमारी खत्म होने के बाद शहर जाने की सोचेंगे।

संदीप तोमर, हिम्मतपुर क्या कहते हैं अधिकारी

प्रवासी मजदूरों को गांव-गांव काम दिया जा रहा है। पहचान पत्र देकर युवा अपना जॉब कार्ड बनवा सकते हैं। यहां हर हाथ को काम देने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार की मंशा सभी को रोजगार देने की है।

नरेश कुमार, बीडीओ, टूंडला


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.