सुरजीत ने कर दीं दुगना की खुशियां चौगुना
आंगबाड़ी कार्यकर्ता के बेटे ने सिविल सेवा में फिर पाई सफलताआइआइटियंस बनकर पहले बना आइआरएस अब 725 वीं रैंक।
जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद: छोटा सा गांव है दुगना। इस दुगना का सही अर्थ समझकर किसान के बेटे ने सपने देखे थे। जब सपने पूरे हुए तो उसे गांव के नाम पर उन्हें दुगना करने की चाहत बढ़ती गई। पहले आइआइटी की फिर आइआरएस बना। एक बार फिर सिविल सर्विस में 725 वीं रैंक हासिल कर ओहदा बढ़ाकर गांव का नाम रोशन किया है।
पिता कालीचरन गौतम किसान और मां शांतिदेवी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। बेटे सुरजीत ने दोनों को हमेशा काम करते देखा था। गांव से पांचवीं पास की और फिर दसवीं के लिए पड़ोस के गांव निकाऊ जाना पड़ा। 12 वीं के लिए सुरजीत शहर के ब्रजराज सिंह इंटर कॉलेज आए तब पता चला कि नौकरी पाना है तो आइआइटी से बीटेक कर लो। कोटा में तैयारी की और यह सपना पूरा हो गया। आइआइटी कानपुर में दाखिला मिला और अच्छे नंबरों से डिग्री भी ले ली, लेकिन चाहत फिर दुगनी हो गई। दिल्ली का सफर किया, पढ़ते-पढ़ाते सुरजीत ने दूसरे प्रयास में 2016 में यूपीएससी परीक्षा में 927 वीं रैंक हासिल कर आइआरएस मिला। अबकी रैंक सुधरी और आइपीएस मिलने की उम्मीद है। मुकाम अभी भी आइएएस है, फिर परीक्षा दूंगा।
- मां की पहचान है आंगनबाड़ी..
पांच भाई बहनों में सबसे बड़े सुरजीत सफलता का श्रेय माता-पिता को देते हैं। कहते हैं कि खेत में काम करते वक्त हाईस्कूल पास पिता उन्हें प्रेरक कहानियों के जरिए सपने दिखाते थे। मां आंगनबाड़ी में काम कर मजबूत इरादों की नींव बनाती थीं। मां की नौकरी पर वे कहते हैं कि हम नारी सशक्तीकरण की बात करते हैं। मेरी मां की पहचान आंगनबाड़ी है तो वे नौकरी क्यों छोड़ेंगी। बात पैसों की नहीं काम की होती है।
- छोटा भाई भी जाएगा तैयारी करने.
सुरजीत के छोटे भाई मनमोहन का बीएससी करने के बाद कांस्टेबिल में चयन हुआ, लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं कराया। बल्कि बड़ी चाहत की सलाह दी। अब वह भी दिल्ली जाएगा। सुरजीत कहते हैं कि शिक्षा से सब संभव है। गांव में शिक्षा का बड़ा सेंटर खोलने का सपना है जो पूरा करना है।