Move to Jagran APP

.. वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : साल भर उपेक्षा और बेरुखी का शिकार रहने वाली शहीद मणींद्र

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 06:41 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 06:41 PM (IST)
.. वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
.. वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : साल भर उपेक्षा और बेरुखी का शिकार रहने वाली शहीद मणींद्र नाथ बनर्जी की मूर्ति पर साल में एक बार मेला जरूर लगता है। उनकी शहादत की वर्ष गांठ पर जेल प्रशासन की ओर से मूर्ति पर रंग रोगन के बाद कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। शायद इसी के पूर्वाभास के तौर पर दशकों पूर्व जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी ने कहा था कि 'शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा'।

loksabha election banner

बुधवार को भी जिलाधिकारी मोनिका रानी ने शहीद की मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इसके बाद गोवा मुक्ति आंदोलन के सिपाही कैसर खां की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में क्रांतिकारियों के बलिदान को याद किया गया।

कभी गोवा मुक्ति आंदोलन में सक्रिय योगदान करने वाले वयोवृद्ध सेनानी कैसर खां ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी अपनी याददाश्त का पिटारा खोला तो जैसे आजादी का वह मंजर सामने आ गया। जिलाधिकारी ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन तक बलिदान कर देने वाले क्रान्तिकारियों से प्रेरणा लेने और उनकी कोशिशों से मिली आजादी की हिफाजत के लिए सजग रहने का संदेश दिया। इस अवसर पर जिलाधिकारी ने 'कीर्तिगाथा : मुक्तिसंग्राम की' स्मारिका के छठे अंक का विमोचन किया। केन्द्रीय कारागार के अन्दर शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी के नाम से पुस्तकालय का शुभारंभ भी किया। सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक व वर्तमान में डीआइजी के पद पर प्रोन्नत वीके त्रिपाठी ने स्वतंत्रता संग्राम और फतेहगढ़ सेंट्रल जेल के इतिहास के संबंध को रेखांकित किया। जिलाधिकारी ने डिप्टी जेलर केपी चंदीला को प्रशस्तिपत्र भी भेंट किया।

संचालन इतिहासवेत्ता तथा साहित्यकार डा. रामकृष्ण राजपूत ने मणींद्र नाथ बनर्जी के बारे में प्रकाश डालते हुए बताया कि शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 13 जनवरी 1907 को मां सुनयना देवी की कोख से वाराणसी में हुआ। इनके चिकित्सक पिता ताराचन्द्र बनर्जी प्रसिद्ध होम्योपैथ थे। उनके पितामह हरिप्रकाश बनर्जी डिप्टी कलक्टर रहे और सन् 1966 में ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ क्षुब्ध होकर बदायूं से अपना त्यागपत्र देकर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। काकोरी कांड में राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी की सजा दिलाने में भूमिका निभाने वाले सीआईडी के डिप्टी एसपी अपने मामा जितेन्द्र नाथ बनर्जी की गोदौलिया, वाराणसी में 13 जनवरी 1928 को गोली मारकर उन्होंने अपने साथी की मौत का बदला ले लिया। उन्हें 10 वर्ष की सजा और 3 माह की तन्हाई कैद की सजा देकर फतेहगढ़ की केन्द्रीय कारागार में बंद कर दिया गया। 20 मार्च 1928 को उन्हें वाराणसी केन्द्रीय कारागार से केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ भेजा गया। जहां उन्होंने अन्य राजनैतिक बन्दियों को उच्च श्रेणी दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। 20 जून 1934 को सायंकाल आठ बजे कारागार के चिकित्सालय में उन्होंने अंतिम सांस ली।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.