अठखेलियां करती 'जल की रानी', साफ हुआ गंगा का पानी
जयकेश कुमार पांडेय फतेहपुर धार्मिक आस्था के साथ गंगा की गोद में मछलियों के बच्चे डालने
जयकेश कुमार पांडेय, फतेहपुर
धार्मिक आस्था के साथ गंगा की गोद में मछलियों के बच्चे डालने का सिलसिला शुरू किया तो साथियों ने भी इस नेक कार्य में हाथ बंटाया और अब गंगा की गोद में मछलियों की अठखेलियां देख मन आह्लादित हो उठता है। गंगा में मछलियां छोड़ने से बीमार पत्नी स्वस्थ हो जाएगी, एक ग्रामीण का सुझाव पहले तो किसान राजेंद्र सिंह को अटपटा लगा। मार्ग में कदम बढ़ाए तो पत्नी स्वस्थ हुई यह धार्मिक अनुष्ठान जीवन का अंग बन गया है। वहीं पतित पावनी गंगा के अविरल और प्रदूषण मुक्त प्रवाह की वैज्ञानिक दृष्टिकोण की खोजबीन दिमाग पर पड़ी तो इसे आजीवन संकल्प के रूप में अंगीकार कर लिया।
गोमुख जैसी पवित्र नदी जिले के आगे भी बनी रहे कुछ इसी उद्देश्य को जीवन में उतारकर मलवां ब्लाक के भदबा गांव निवासी किसान राजेंद्र सिंह मछलियों को छोड़ने के अभियान में जुटे हुए हैं। 13 अगस्त 2008 से मछलियों को अमावस्या की तिथि में गंगा नदी में छोड़ने का अभियान ओढ़े हुए हैं। लगातार 13 साल से सिलसिला अनवरत चलाते हुए पुण्य के भागीदार बने हुए हैं। एक अभियान में दस हजार रुपये की लागत वाली मछलियों को गंगा नदी में छोड़ रहे हैं। बताते हैं कि औसत दर्जे की छोटी मछलियों को छोड़ने का ही मन बनाया जाता है। कारण कि छोटी मछलियों की वजन में ज्यादा संख्या होती है। मछलियों की संख्या अधिक होने पर माता गंगा ज्यादा प्रदूषण मुक्त होंगी। उन्होंने बताया कि पत्नी बीमार हुईं तो सब जगह दिखाया, लाभ नहीं मिला। धर्म-कर्म में आस्था रखने वाले गांव के सुभाष शुक्ला ने उन्हें यह युक्ति बताई। पहले तो सहसा विश्वास नहीं हुआ लेकिन बात में विश्वास करके इसे शुरू किया। पत्नी स्वस्थ हुई तो मां गंगे के प्रताप से बिगड़े हुए काम भी बनने लगे। बताते हैं कि मछलियां कारोबारियों के यहां से खरीद कर लाई जाती हैं। इससे मछलियों की हत्या भी रुकती है और गंगा नदी स्वच्छ होती है।
तीन साथी बने आजीवन सदस्य
13 साल से मछलियों को गंगा नदी में छोड़कर प्रदूषण से मुक्त रखने का अभियान छेड़ने वाले अगुवाकार किसान बताते हैं कि टोली में सदस्यों की संख्या घटती बढ़ती रहती है। जिसके आधार पर छोड़ी जाने वाली मछलियों का वजन कम ज्यादा होता रहता है। संकल्प यह भी है कि किसी भी दिशा में छोटे बच्चे होने पर भी 21 किग्रा से कम नहीं होना चाहिए। इस पुण्य भरे काम में उनके अलावा राजेश सिंह, एसएस त्रिवेदी हैं जो कि आजीवन संकल्प ले चुके हैं कि मछलियों को छोड़ेंगे।
तरक्की और खुशहाली संग मिलती आत्म संतुष्टि
टोली के अगुवा राजेंद्र सिंह बताते हैं कि गंगा नदी में मछलियां छोड़ने से तरक्की और खुशहाली का रास्ता प्रशस्त होता है। यह उनके खुद के साथ और जुड़े लोगों के साथ हुआ है। इसके साथ ही गंगा नदी हमारी धरोहर है। जिसमें जलीय जंतु रहते हैं। वैज्ञानिकों के प्रयोगों में सिद्ध हुआ है कि मछलियां गंगा नदी को प्रदूषण से मुक्त करती हैं। मछलियां छोड़ने से बड़ी ही आत्म संतुष्टि मिलती है।
मछलियों की रुकती हत्या, नदी होती प्रदूषण मुक्त
किसान के इस अभिनव प्रयोग को देखें तो पता चलता है कि धार्मिक कार्य से जुड़े इस काम में भारतीय संस्कृति के तहत जीव हत्या रुकती है। मछली व्यापारियों के यहां से लोग भोजन में उपयोग करने के लिए होता है। व्यापारियों के यहां से मछलियों को खरीदे जाने से उनकी जीवन रक्षा होती है और नदी प्रदूषण से मुक्त इसलिए होती है कि नदी के अपशिष्ट को खाकर मछलियां उसके जल को शुद्ध करती हैं।