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बर्बाद होते पानी की हर बूंद सहेजने का जुनून

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : ये पानी बचाने का जुनून है जो अशोक नगर के कारोबारी महेंद्र श

By JagranEdited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 11:07 PM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 11:07 PM (IST)
बर्बाद होते पानी की हर बूंद सहेजने का जुनून
बर्बाद होते पानी की हर बूंद सहेजने का जुनून

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : ये पानी बचाने का जुनून है जो अशोक नगर के कारोबारी महेंद्र शुक्ल के सिर चढ़कर बोलता है। नीर की पीर इस हद तक दिल में रहती है कि पानी की बर्बादी देख कदम खुद ब खुद रुक जाते हैं, वह झोले में टोंटी रखते हैं। कहीं भी पानी बहता देखते हैं तो प्लंबर बुलाकर टोंटी लगवाते हैं। बीते पांच साल में वह दो हजार से अधिक टोंटी लगवाकर लाखों लीटर पानी बर्बाद होने से बचा चुके हैं।

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प्यास की तड़प देखकर बदला मन

महेंद्र बताते हैं कि एक बार प्यास से तड़प रहे एक व्यक्ति को देखा तबसे उन्होंने बर्बाद हो रहे पानी को बचाने का संकल्प ले लिया। मोहल्ले के एक टोंटी विहीन सार्वजनिक नल में आपूर्ति आने पर पानी बहकर नाली में चला जाता था। सबसे पहले उसमें टोंटी लगाई। पानी की बचत करके मन को बड़ा सुकून मिला। फिर हर बहती बूंद को रोकने का जुनून आ गया। घर, परिवार व रिश्तेदारों को पानी के बचाने की सीख देने लगे। कारोबार के साथ जलसंरक्षण में उनकी संजीदगी का अब हर कोई कायल है। आस-पास के लोगों ने उनके टोकने के डर से पाइप से घर के बाहर पानी का छिड़काव बंद कर दिया।

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स्कूली बच्चों से गांव-गांव पहुंचा संदेश

उन्होंने स्कूली बच्चों के माध्यम से गांव व कस्बों में भी बहता पानी रोकने के लिए टै¨पग का अभियान चलाया। गाजीपुर, नहरखोर, पैनाकला, फुलवामऊ, हुसेनगंज आदि गांवों में बच्चों की टीम बिना टोंटी वाले नलों की खोजकर टैंपिग करती है। जरूरत पड़ने पर मौके पर प्लंबर को ले जाकर पानी रोकने का काम करते है। स्कूली बच्चे ग्रामीणों को रोजमर्रा के जीवन में पानी बचाने के तरीके भी सुझाते हैं।

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निश्शुल्क मुहैया कराते टोंटी

टोंटी के अभाव में पानी बर्बाद न हो, इसके लिए वह हर मांगने वाले को निश्शुल्क टोंटी उपलब्ध कराते हैं। टोंटियों से भरा थैला अपने पास ही रखते है। शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी उनसे टोंटी ले जाते हैं। कारोबारी कहते है कि उनका मकसद यह है लोग पानी के महत्व को समझे। बहते हुए पानी को संरक्षित करके कितने लोगों की प्यास मिटाई जा सकती हैं जब यह सोचते हैं तो लगता है कि इससे बड़ा पुण्य कार्य और कोई नहीं है। हमारे बुजुर्ग तो प्यासे को पानी मिलाने के लिए कुंआ, तालाब खोदवाते थे, हम टोंटी लगा पानी बचाकर वही काम कर रहे हैं।


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