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हुनर को बनाया हथियार, थैला निर्माण से दूर भागी गरीबी

जागरण संवाददाता फतेहपुर जब हाथ का हुनर हथियार बन जाए तो तरक्की कदम चूमने लगती है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 03 Jan 2021 11:10 PM (IST)Updated: Sun, 03 Jan 2021 11:10 PM (IST)
हुनर को बनाया हथियार, थैला निर्माण से दूर भागी गरीबी
हुनर को बनाया हथियार, थैला निर्माण से दूर भागी गरीबी

जागरण संवाददाता, फतेहपुर: जब हाथ का हुनर हथियार बन जाए तो तरक्की कदम चूमने लगती है। घर गृहस्थी के कामों के लिए चंद पैसों के लिए स्वजनों का मुंह ताकने वाली महिलाओं ने हुनर के दम पर खुद को तरक्की की राह पर आगे बढ़ा दिया है। अब आलम यह है कि वह खुद घर गृहस्थी चलातीं हैं और बच्चों को अच्छे स्कूल शिक्षा दिला रही है। यह सब पॉलिथिन की पाबंदी के बाद बाजार में बढ़ी कपड़े के थैलों की मांग हुआ है।

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ऐरायां ब्लाक के बूढ़नपुर गांव के जमुना देवी की दो साल पूर्व तक गिनती गांव की सामान्य महिलाओं में थी। वर्ष 2019 में इन्होंने अपने सिलाई के हुनर को कमाई का जरिया बना लिया। पहले तो काम में दिक्कत आई लेकिन लगन और मेहनत से इन्होंने आजीविका मिशन के जरिए सरस्वती स्वयं सहायता समूह नामक समूह बनाकर कपड़े के थैले तैयार करने शुरू कर दिए। फिर क्या था तरक्की कदम चूमने लगी। पहले पांच महिलाएं साथ जुड़ी लेकिन अब समूह में सिलाई, मार्केटिग, बाजार से आर्डर लगाने वाली महिलाओं की अलग-अलग टीमें बन गयी हैं। करीब 40 महिलाओं को अपने साथ जोड़कर अब जमुना मुनाफा कमाकर समूह को जहां उंचाईयों तक पहुंचा रही हैं वहीं इनसे जुड़ने वाली हर महिला को जीविका के लिए काम मिल गया है। वह कहती हैं कि घर में जितने भी सदस्य हैं अगर सभी कमाई करें तो घर-परिवार परिवार को खुशहाली के चादर से ढका जा सकता है।

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लखनऊ, बनारस सप्लाई आरंभ

-सरस्वती स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने तरक्की की राह पर कदम खुद बढ़ाएं। यह महिलाएं लखनऊ-बनारस और कलिजर जैसे मेलों में भी अपने बिक्री स्टाल लगाती हैं। इन्हें जहां भी आयोजन व मेलों की जानकारी होती है वह अपनी सामग्री बिक्री के लिए स्टाल लगाती है।

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कानपुर से लाती हैं कच्चा माल

-जमुना बताती है कि शुरुआती दौर में तो वह बिदकी से ही झोले बनाने के लिए कच्चा माल लाती थी, लेकिन कारोबार बढ़ा तो उन्होंने कानपुर की बाजार से माल मंगाना शुरू कर दिया। अब पांच से दस रुपये के बिकने वाले थैले के निर्माण में आधा पैसा कच्चे माल में खर्च होता है लेकिन बिक्री पर आधा मुनाफा होता है।

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पिटठू, शॉपिग और फैंसी बैग बनने लगे

-समूह ने कपड़े के थैले बनाने के साथ ही अब अपने व्यापार को और बढ़ाना शुरू किया है। जिसके तहत वह महिलाओं के लिए चमड़े और रेक्सीन के बैग के साथ घर-गृहस्थी में उपयोगी बैग भी बनाने शुरू किए हैं। जिनकी कीमत 100 से 200 रुपये हैं। इन बैगों में पचास से 80 रुपये के बीच बचत होती है।

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एक वर्ष में बेंचे पांच लाख के झोले

-सरस्वती स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने बीते एक वर्ष में पांच लाख के झोले बाजार में बिक्री किए हैं। उपायुक्त स्वत: रोजगार लालजी यादव ने इसके लिए बीते वर्ष इन्हें बेहतर कार्य के लिए जिले स्तर पर आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित भी कराया था।


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