नीचे डराती नदी की जलधार, ऊपर मझधार में जान
खागा/जागरण संवाददाता फतेहपुर देश भले ही तरक्की की राह पकड़े हुए है लेकिन विजयीपुर ब्लाक की ग्रामसभा रारी को एक अदद पक्का पुल नहीं नसीब हो पाया है। मुख्य गांव रारी के साथ उपगांव रघुराजपुर के लोग बरसात के दिनों में बांस के पुल पर ही आश्रित हैं। बरसात से पूर्व नदी में बांस के पुल का निर्माण करते हैं और आवाजाही करते रहते हैं। गांव वालों की मानें तो बरसात के दिनों में यह जोखिम भरा सफर बीते दशकों से चला आ रहा है। कई बार पक्का पुल बनवाने की मांग ने जोर पकड़ा और समय बीतने के बाद ठंडे बस्ते में चला जाता है।
जागरण संवाददाता, खागा : देश भले ही तरक्की की राह पर है, लेकिन कई ग्रामीण क्षेत्रों तक अभी विकास की किरण नहीं पहुंची है। विजयीपुर ब्लाक की ग्रामसभा रारी इनमें से एक है। यहां के ग्रामीणों को ससुर खदेरी नदी पर पक्का पुल नहीं नसीब हो पाया। मुख्य गांव रारी के साथ उपगांव रग्घूपुर के लोग बरसात के दिनों में बांस के पुल से होकर गुजरने को विवश हैं। हर साल बारिश से पहले बांस का पुल बनाते हैं। ग्रामीण कई बार मांग कर चुके हैं लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
ग्रामसभा रारी और रग्घूपुर गांव की आबादी लगभग छह हजार है। गांव में प्राथमिक स्कूल छोड़कर अन्य सुविधाओं के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। कस्बे जैसे गांव रक्षपालपुर, खखरेड़ू, गढ़ा आदि एक से चार किमी. दायरे में हैं। जहां इंटर से लेकर डिग्री कॉलेज, स्वास्थ्य केंद्र, बाजार आदि हैं। वहीं इस रास्ते के बजाय जब दूसरे रास्ते से लोग जाते हैं तो 18 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है। आम दिनों में नदी सूखी रहती है तो दिक्कत नहीं होती है। मगर, बारिश के मौसम में नदी में पानी आ जाता है। ऐसे में ग्रामीण बरसात के पहले नदी में बल्लियों के ऊपर बांस का पुल बना लेते हैं। इसी पुल से खखरेड़ू, एकडला, गढ़ा, चचीड़ा, नंदापुर, सूदनपुर, सोथरापुर, सलवन आदि गांव जाने के लिए ग्रामीण पैदल, साइकिल और बाइक आदि से यात्रा करते हैं।
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वास्तव में पुल की दरकार है। शासन में इस संबंध में बात की गई है। शार्टकट के चक्कर में लोग बांस का पुल बनाते हैं। दूसरा रास्ता भी सुगम है बस दूरी अधिक है। प्रयास करके पुल निर्माण करवाया जाएगा।
-कृष्णा पासवान, खागा विधायक
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पुल बन जाए तो मिल जाए सहूलियत
ससुर खदेरी नदी पर पुल बनवाने की मांग काफी पहले पहले से होती रही है। चुनाव के दौरान वादे होते हैं, लेकिन जीतने की बाद कोई ध्यान नहीं देता।
-राजकुमार सिंह कई बार जनप्रतिनिधियों को पुल बनवाने का मांग पत्र सौंपा गया लेकिन कोई पुल नहीं बनवा रहा है। बरसात के दिनों में पुल ही सहारा बनता है।
-सूरजपाल सिंह बरसात के दिनों में यह जोखिम भरा सफर दशकों से चला आ रहा है। प्रतिदिन करीब 300 लोगों का आना-जाना बांस के पुल से होता है।
-रामचंद्र कई बार पक्का पुल बनवाने की मांग ने जोर पकड़ा लेकिन समय बीतने के बाद ठंडे बस्ते में चला जाता है। बांस के पुल से गुजरने में भय लगता है।
-रघुवीर