प्रवासियों का कहना है, अब घर पर ही रहना है
पूरी नहीं आधी रोटी खाएंगे अब घर से कहीं नहीं जाएंगेपूरी नहीं आधी रोटी खाएंगे अब घर से कहीं नहीं जाएंगेपूरी नहीं आधी रोटी खाएंगे अब घर से कहीं नहीं जाएंगेपूरी नहीं आधी रोटी खाएंगे अब घर से कहीं नहीं जाएंगेपूरी नहीं आधी रोटी खाएंगे अब घर से कहीं नहीं जाएंगे
संवाद सूत्र, आटा : कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने देशवासियों को लॉकडाउन में रहने को तो विवश कर दिया लेकिन इस लॉकडाउन ने न केवल श्रमिकों को बेरोजगार किया बल्कि उनको वह दिन दिखाए, जो उन्होंने स्वप्न में भी नहीं सोचे थे। अव्यवस्था, भूख-प्यास, गर्मी और लू के थपेड़ों को बर्दाश्त करते हुए प्रवासी येन केन प्रकारेण अपने घर को लौट रहे हैं। हालात ने उम्मीदों को ऐसा तोड़ा कि अब लोग बाहर जाने से तौबा कर रहे हैं। प्रवासियों का कहना है कि रोजगार के लिए बाहर जाने की अपेक्षा उन्हें यहीं पर अपनी खेती या फिर मजदूरी करना मंजूर है।
बोले प्रवासी----
मैं चित्तौड़गढ़ राजस्थान में खाद बनाने की कंपनी में काम करतेा था। मेरे साथ मेरी पत्नी सीमा और बेटा शिरीष दुबे भी था। लॉकडाउन के बाद अब नौकरी करने दूसरी जगह नहीं जाएंगे। अपने घर पर रहकर खेती और कोई छोटा धंधा करेंगे, जिससे हमारा जीवनयापन चलता रहे। एक की जगह आधी खाएंगे लेकिन घर से कहीं नहीं जाएंगे।
- रविशंकर दुबे, ग्राम अकबरपुर इटौरा
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बड़ोदरा गुजरात में एक बेल्डिग कंपनी में काम करता था। लॉकडाउन हुआ तो घर आ गया। आधा भुगतान कंपनी मालिक ने किया आधा रोक दिया। अब घर से तो कहीं नहीं जाएंगे बल्कि यहीं आसपास मजदूरी करके अपनी आवश्यकताएं पूरी करेंगे।
- अमित कुमार, ग्राम भदरेखी
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मैं सिलवासा के दादार नागर हवेली में एक मार्बल कंपनी में काम करता था। पहले कंपनी मालिक मुझे 14000 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से भुगतान करते थे लेकिन लॉकडाउन के बाद मालिक तीन हजार रुपये प्रतिमाह के हिसाब से भुगतान करंगे। फिलहाल अब चाहे जो भी हो यहीं पर कोई काम कर लेंगे और कम में गुजारा करेगे।
- सुरेंद्र सिंह, आटा