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जेब में भरा हो माल तो जेल लगे ससुराल

जागरण संवाददाता फतेहपुर जेल का नाम सुनते ही मन में दहशत भर जाती है कड़ी मशक्क्त ल

By JagranEdited By: Published: Fri, 28 Jun 2019 11:21 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jun 2019 06:23 AM (IST)
जेब में भरा हो माल तो जेल लगे ससुराल
जेब में भरा हो माल तो जेल लगे ससुराल

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : जेल का नाम सुनते ही मन में दहशत भर जाती है, कड़ी मशक्क्त, लंबरदारों की डांट-फटकार, रूखा-सूखा खाना, अपनों से दूर तन्हाई का दर्द। जी हां जेल की चाहरदीवारी में पहुंचते ही आम बंदियों को दुश्वारियों से जूझना पड़ता है। हकीकत में यह सिक्के का एक ही पहलू है। दूसरी पहलू ठीक इसके विपरीत है। उसे नाम देते हैं वीआइपी सुख सुविधाओं का। जुगाड़ और नोट के दम पर जेल को ससुराल बनते देर नहीं लगती। चाहरदीवारी के अदंर ही मेहमानों जैसी सेवा मिलती है। मनचाहा भोजन, दिन भर की मौजमस्ती, बैरिक से बाहर घूमने की आजादी से लेकर हर आराम फरमाने के पूरे इंतजाम होते हैं।

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जिला कारागार में वर्तमान समय हत्या, डबल मर्डर, अपहरण, डकैती, राहजनी, दुष्कर्म समेत विभिन्न मामलों में करीब 1000 विचाराधीन व 300 सजायाफ्ता कैदी निरुद्ध हैं। इसमें 41 महिला व 20 बाल बंदी हैं। इन बंदियों को रखने के लिए जेल में 16 बैरिकों हैं।

बताते हैं कि जेल में निरुद्ध विचाराधीन बंदियों को कोई काम मशक्कत न करना पड़े इसके भी इंतजाम हैं लेकिन निर्धारित सुविधा शुल्क अदा करने के बाद। वह निर्धारित शुल्क अदा करने के बाद ही बंदी को जेल में कराए जाने वाले श्रम से मुक्ति (मशक्कत काटना) दे दी जाती है। जेल सूत्रों की माने तो उसका करीब डेढ़ हजार रुपये शुल्क निर्धारित है। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया से दूर रहने वाले विचाराधीन और सजा याफ्ता बंदी बंदियों का खाना तैयार करने से लेकर झाडू, पोंछा, साफ-सफाई, खेती ही नहीं करते बल्कि जेल परिसर में रहने वाले अधिकारियों के घरेलू काम भी निपटाने की जिम्मेदारी निभाते हैं।

घर जैसे खाने के भी हैं इंतजाम

आराम के अलावा निर्धारित शुल्क अदा करने पर बंदियों को मनपसंद खाना भी मिलने का प्रबंध है। जिसके लिए प्रतिमाह डेढ़ हजार रुपये रसोईया के पास जमा किया जाता है। इसमें जिस बंदी को जेल की सामान्य रसोई का खाना नहीं लेना होता है वह अपनी पसंद का भोजन रसोईया से तैयार करवाते हैं और उसके एवज में प्रतिमाह रुपये भी जमा करते हैं। मिलाई करके लौटे कुछ बंदियों के परिजनों ने की माने तो रोटी की जगह यदि पराठा खाना है तो विशेष रसोईया को कीमत अदा करके उसका भी स्वाद लेने की छूट रहती है। यानी केवल नाम के लिए ही जेल रहती है बाकी सब कुछ मन चाहा। बंदियों को काम के बदले मिलते रुपये

जेल अधीक्षक विनोद कुमार व जेलर डॉ. आलोक शुक्ला का कहना था कि जिन बंदियों से काम कराया जाता है उसमें तीन कटेगरी हैं। जिसमें 25, 30 व 40 रुपये निर्धारित किए गए हैं। कुशल बंदी को काम करने का प्रतिदिन 40 रुपये, अ‌र्द्धकुशल बंदी को 30 व अकुशल बंदी को 25 रुपये उनके व उनके परिजनों के खातों में प्रतिमाह भेजे जाते हैं।

बंदियों से काम न लेने के एवज में सुविधा शुल्क और मन चाहे भोजन के सवाल सुनते ही कहते हैं कि आरोप मनगढ़ंत हैं। न्यायिक व प्रशासनिक अफसर औचक निरीक्षण में आकर कैदियों से उनकी समस्याएं पूछते हैं। जेल प्रशासन पूरी तरह से पारदर्शिता बरत रहा है। मशक्कत का आरोप बेबुनियाद है।

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डिब्बी -

जिला कारागार की स्थिति पर नजर

विचाराधीन बंदी 1000

सजायाफ्ता कैदी 300

मशक्कत प्रतिमाह 1500 रुपये

बंदीरक्षक 52

सीसीटी कैमरे 30

सीटी जेड कैमरा 01

जेल पीसीओ 02


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