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42 साल से समां रही जमीन, आंसू बहा रहे कोर्राकनक के किसान

संवाद सूत्र बहुआ (फतेहपुर) असोथर ब्लाक के कोर्राकनक ग्रामसभा के किसान खुद नहीं समझ पा

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Aug 2021 07:17 PM (IST)Updated: Fri, 13 Aug 2021 07:17 PM (IST)
42 साल से समां रही जमीन, आंसू बहा रहे कोर्राकनक के किसान
42 साल से समां रही जमीन, आंसू बहा रहे कोर्राकनक के किसान

संवाद सूत्र, बहुआ (फतेहपुर) : असोथर ब्लाक के कोर्राकनक ग्रामसभा के किसान खुद नहीं समझ पा रहे हैं कि कलकल बहकर जीवन देने वाली कालिदी (यमुना नदी) ने उन्हें क्यों अभिशापित कर रखा है। 42 साल के कटान का दर्द सीने में समेटे किसान आंसू बहा रहे हैं। कोर्ट से लेकर जन प्रतिनिधियों का दरवाजा खटखटाया और धरना-प्रदर्शन किया लेकिन कहीं से राहत नहीं मिल पाई है। साल दर साल किसान बेघर होते जा रहे हैं, नए आशियानों में छप्परों के नीचे गुजर बसर करना पड़ रहा है तो खेती किसानी की जमीन हाथों से फिसलती जा रही है। किसानों की जुबानी और राजस्व अभिलेख गवाही दे रहे हैं कि 13 हजार बीघा जमीन किसानों के हाथों से फिसल चुकी है। इस बार भी बाढ़ के प्रकोप से यह ग्रामसभा अछूती नहीं रही है।

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असोथर ब्लाक की सबसे बड़ी ग्रामसभा कोर्राकनक में यमुना की कटान का कहर वर्ष 1978 से शुरू हुआ है जो प्रतिवर्ष चल रहा है। इस बार भी यमुना उफनाई तो लोगों के कच्चे घर और खेती वाली जमीन यमुना में समाहित हो गई। रात में उफनाई यमुना में होने वाली कटान से लोगों के दिल धक-धक करने लगते हैं। इसलिए होती है कोर्राकनक में कटान

असल में मध्य प्रदेश से निकली केन और यमुना कोर्राकनक गांव के पहले मिलती है। दो नदियों में एक साथ जब पानी बढ़ता है तो धारा तेज बहाव के साथ गांव की सरहद से टकराती हैं। तेज धारा में ऊंचाई में बसे गांव की जमीन का कटान होता है। लंबाई में पांच किमी के दायरे में कटान परेशानी का सबब बनी हुई है। अब तक हुए यह प्रयास

वर्ष 1978 से हो रही कटान को लेकर गांव के लोगों ने खूब प्रयास किए हैं। तमाम बुजुर्गों ने प्रशासन से गुहार लगाई है। 80 के दशक में एक मुकदमा सिविल कोर्ट में दायर किया गया है। जिसे बुजुर्गों के बाद बेटे और नाती अभी भी लड़ रहे हैं। फैसला नहीं हो पाया है। कोर्ट में तारीख दर तारीख पड़ रही है। वर्ष 2015 में हुआ था अनिश्चतकालीन धरना

भाजपा नेता अरविद बाजपेयी की अगुवाई में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव और शासन तक मामला पहुंचाने के लिए 22 दिन का अनिश्चतकालीन धरना दिया गया था। सांसद केंद्रीय मंत्री साध्वी ने धरना खत्म करवाया था। सीएम अखिलेश यादव से लेकर केंद्रीय बाढ़ मंत्रालय तक पैरवी की थी। 2017 में केंद्रीय बाढ़ मंत्रालय की टीम ने दिल्ली से आकर मुआयना किया था। बचाव का विकल्प पिचिग (पत्थर की दीवार) बनाने का सुझाव केंद्र और प्रदेश सरकार को दिया था। कच्चे मकान समाहित, छप्पर में गुजर बसर

कोर्राकनक गांव के मजरों में अन्य गांवों की तरह ही कच्चे मकान हैं। यमुना की तलहटी में बसंत सिंह जैसे ग्रामीणों के मकान यमुना की बाढ़ में जा चुके हैं। अब छप्पर आदि डालकर जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसे गांव में करीब 30 लोग है जिनके घर यमुना में समाहित हुए तो नई जगहों में छप्पर डाले गए हैं। क्या बोले ग्रामीण

गांव से शहर तक धरना प्रदर्शन, कोर्ट कचहरी की गयी लेकिन रूठी किस्मत की सुनवाई कहीं नहीं हुई।

दिनेश सिंह पूर्व प्रधान कोर्राकनक जब विपक्ष में राजनीतिज्ञ रहे तब हौसला भरते रहे। अब सत्ता में हैं तो मुंह चुरा रहे हैं। इसी से राजनीतिज्ञों ने छलने का काम किया है।

राम प्रकाश हाड़ा, मैनाही कोरे आश्वासन मिल रहे हैं। यमुना में न तो कटान रोकी जा सकी है और न हीं बांदा जनपद की तरफ पांच किमी तक फैली जमीन ही किसानों को मिली है

बबलू सिंह, डंडियार दर्द किसी ने नहीं सुना मीडिया आवाज बनकर उभरी तो दिल्ली से टीम आई और जांच कराकर सरकार भूल गई।

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केंद्र और प्रदेश सरकार को भली भांति प्रकरण को जानकारी दी। उनके वश में जो था उन्होंने किया है। प्रकरण भूली नहीं हैं। सीएम योगी से भी इस संबंध में वार्ता हुई थी और फिर वार्ता करूंगी। यमुना की कटान भी रुकवाएंगी और जमीन भी दिलावाने में कोई कोर कसर नहीं रखेंगी।

साध्वी निरंजन ज्योति, सांसद/ केंद्रीय राज्यमंत्री


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