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वाह री मानवता : चिलचिलाती धूप में श्रमिकों को गेस्टहाउस से निकाला

जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद कोरोना महामारी में रोजी रोटी गंवाने के बाद मुसीबतों को झे

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 04:57 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 06:09 PM (IST)
वाह री मानवता : चिलचिलाती धूप में श्रमिकों को गेस्टहाउस से निकाला
वाह री मानवता : चिलचिलाती धूप में श्रमिकों को गेस्टहाउस से निकाला

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : कोरोना महामारी में रोजी रोटी गंवाने के बाद मुसीबतों को झेलते हुए घरों को लौट रहे प्रवासी श्रमिकों की व्यवस्था में लगे राजस्व कर्मी मानवता ही भूल बैठे हैं। गुरुवार को मसेनी चौराहा - कादरीगेट मार्ग स्थित उर्मिला गेस्टहाउस में राजस्व कर्मियों ने राशन व खाने के पैकेट देने के बाद श्रमिकों को बसों के आन से घंटों पूर्व चिलचिलाती धूप में बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया गया। बेचारे मजदूर भीषण गर्मी में महिलाओं व बच्चों के साथ एक पेड़ के नीचे रोडवेज बस का इंतजार करते रहे।

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जयपुर से आए 45 श्रमिकों को बुधवार रात यहां गेस्ट हाउस में लाया गया। इनमें महिलाओं व बच्चों की संख्या अधिक थी। श्रमिकों ने सुबह बाहर से चाय, बिस्किट लेकर काम चलाया। इसके बाद राजस्व कर्मचारियों ने जिला मुख्यालय से आए लंच पैकेट व राशन देकर श्रमिकों को सामान समेटकर गेस्टहाउस से बाहर निकलने का निर्देश दिया। थाना कायमगंज के गांव मऊरशीदाबाद के मोहल्ला गऊटोला निवासी नाजिया, शमशाबाद के मोहल्ला सैदवाड़ा निवासी मंजूर, कोतवाली मोहम्दाबाद के गांव जैतपुर निवासी धीरेंद्र सिंह ने बताया कि उन लोगों ने अनुरोध किया कि रोडवेज बस आने तक गेस्टहाउस में ही बैठने दे। बिजली आने पर पंखा की हवा व पानी मिल जाता है, लेकिन लेखपाल ने एक नहीं सुनी। इससे वह लोग बाहर पेड़ के नीचे समय काट रहे है। कई घंटे बाद रोडवेज बस आने पर श्रमिकों की जान में जान आयी। गेस्ट हाउस में मिले तहसील सदर के संविदा कंम्प्यूटर आपरेटर उपेंद्र ने बताया कि वह सूची बनाने आए थे। लेखपाल रघुवंशी की ड्यूटी थी। वह पहले ही चले गए। बेटी की शादी को कमाने गयी थी मां परदेश, लौटी खाली हाथ

मऊरशीदाबाद निवासी नाजिया ने बताया कि पति अब्दुल की नजर कमजोर है। वह गांव में रहते है। वह तीन बेटियों व पुत्र के साथ जरदोजी करने जयपुर गयी थी। बेटी आयशा की शादी तय है। सोचा था कुछ कमा लेंगे, लेकिन लॉकडाउन के चलते खाली हाथ लौटना पड़ा। वहां स्वसेवी संस्थाओं का खाना खाकर समय काटा। शमशाबाद के मंजूर ने बताया कि मजबूरी में परिवार सहित लौटना पड़ा। हालात सही होने पर मजबूरी में ही वापस भी जायेंगे। यहां घर तो है पर काम नहीं है।


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