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यही सवाल हर बार, कब मिलेगा 'शिक्षा' का अधिकार

आवास-विकास कालोनी के एक कोने में झोपड़ी में रहने वाले पिकू और सोनू को भी शिक्षा के अधिकार पर हक है लेकिन पेट पालने की मजबूरी है। पढ़ने के बजाय कबाड़ बीनकर लाता है। पिता का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की ताकत नहीं। यही हाल अमृतपुर के राजू सिंह का है। गांव में प्राथमिक विद्यालय है लेकिन वह कई मुश्किलों का सामना करने के बाद वह निजी विद्यालय में बच्चे को पढ़ा रहे हैं। यदि प्राथमिक विद्यालय में बेहतर पढ़ाई होती तो शायद उनकी मुश्किल कम हो जाती। ऐसे ही न जाने कितने अभिभावकों का दर्द है। संसाधन होने के बावजूद प्राथमिक विद्यालयों का शैक्षिक स्तर बेहतर नहीं है। प्राथमिक शिक्षा का यह मुद्दा कभी भी राजनीतिक मुद्दा नहीं बन सका।

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 10:55 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 06:10 AM (IST)
यही सवाल हर बार, कब मिलेगा 'शिक्षा' का अधिकार
यही सवाल हर बार, कब मिलेगा 'शिक्षा' का अधिकार

धीरज अग्निहोत्री, फर्रुखाबाद

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आवास विकास कॉलोनी के किनारे बनी झोपड़ियों में से एक में रहने वाले छोटू और मोनू (काल्पनिक नाम) ने आज तक स्कूल देखा ही नहीं। ये पढ़ना चाहते हैं, बढ़ना चाहते हैं, लेकिन नियति को ये मंजूर नहीं। पेट पालना मजबूरी है सो सुबह ही हाथ में बोरी लेकर निकल जाते हैं। पूछने पर इनके पिता का तर्क है कि पढ़ने से फायदा क्या? सरकारी स्कूल में पढ़ाई तो होती नहीं। समय बर्बाद होता है। प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं। ठीक यही हाल अमृतपुर के रहने वाले राजू का है। गांव में प्राथमिक विद्यालय हैं लेकिन वह अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। कहते हैं कि अगर सरकारी स्कूलों में बेहतर पढ़ाई होती तो उन्हें बच्चों की पढ़ाई पर अतिरिक्त धन खर्च नहीं करना पड़ता।

सुनकर अजीब लगा न? लगना भी चाहिए। इसलिए क्योंकि हर साल जिस सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर करोड़ों रुपये उड़ाए जाते हैं। वह अब तक लोगों का भरोसा ही नहीं जीत पाई। जीते भी कैसे, अकेले फर्रुखाबाद में ही सैकड़ों ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं जो सुविधाओं और संसाधनों के अभाव में चल रहे हैं। यहां शिक्षा का स्तर दिन-ब-दिन गिर रहा है और बच्चों की संख्या भी कम हो रही है। कहने को तो सरकार बड़ी-बड़ी योजनाएं चलाती है, लेकिन धरातल पर उसका असर कम से कम फर्रुखाबाद जिले में तो नहीं दिखता। 2010 में शुरू हुआ शिक्षा का अधिकार कानून भी ठेंगा दिखाता है। सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या का इजाफा न होना इस बात का संकेत है। इसीलिए पब्लिक स्कूलों की बाढ़ आ गई है। आंकड़ों की बात करें तो 2014 में जिले के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में दो लाख बच्चों का पंजीकरण था। वर्ष 2019 में छात्र संख्या कम होकर 1.66 लाख पर आ गई है। शिक्षकों की संख्या में भी भारी कमी हुई है। निजी स्कूलों के हाथों में कैद देश का भविष्य

जिले के सात ब्लाकों के अलावा फर्रुखाबाद नगर क्षेत्र में लगभग 565 जूनियर और करीब 1290 प्राइमरी विद्यालय हैं। इनमें 4500 शिक्षक-शिक्षिकाएं और डेढ़ हजार से ज्यादा शिक्षामित्र-अनुदेशक तैनात हैं। 4000 रसोइया मिड-डे मील बनाते हैं। बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ जूता-मोजा, कापी किताबें, भोजन और स्वेटर आदि सुविधाएं मिलती हैं। इसके बावजूद निजी स्कूलों और उनमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या कहीं ज्यादा है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के मुताबिक जिले भर में 3500 से ज्यादा प्राइवेट स्कूल हैं। 50 स्कूल एडेड भी हो चुके हैं। अधिकतर स्कूलों में अनट्रेंड शिक्षक-शिक्षिकाएं पढ़ाते हैं। स्कूल में बच्चों की संख्या कम नहीं हुई। पहले कुछ बच्चों के फर्जी प्रवेश थे, जो कि जांच के बाद हट गए। शायद यही कारण है कि बच्चों की संख्या कम हो गई। परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

- राम सिंह, बेसिक शिक्षा अधिकारी। वर्ष 2014 में तैनात शिक्षक- 4900

वर्ष 2019 में तैनात शिक्षक- 4500

वर्ष 2014 में पंजीकृत बच्चे- दो लाख

वर्ष 2019 में पंजीकृत बच्चे- 1.66 लाख

नोट- अनुमानित आंकड़े शिक्षा विभाग के अनुसार हैं।


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